कर्मकाण्ड भास्कर

महाशिवरात्रि पर्व

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माहात्म्य बोध- महाशिवरात्रि पर्व भगवान् शिव की प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए प्रसिद्ध है। शिव का अर्थ होता है- शुभ, भला। शंकर का अर्थ होता है- कल्याण करने वाला। निश्चित रूप से उन्हें प्रसन्न करने के लिए मनुष्य को उनके अनुरूप ही बनना पड़ता है। सूत्र है- ‘शिवो भूत्वा शिवं यजेत्’ अर्थात् शिव बनकर शिव की पूजा करें, तभी उनकी कृपा प्राप्त हो सकती है। यह भाव गहराई से साधकों को हृदयंगम कराया जा सके तथा शिव की विशेषताओं को सही रूप से ध्यान में लाया जा सके, तो वास्तव में साधना के आश्चर्य जनक परिणाम मिलने लगें।

शिवजी के प्रति जन साधारण में बहुत आकर्षण है; किन्तु उनके सम्बन्ध में भ्रान्तियाँ भी खूब हैं, इसलिए शिव की साधना के नाम पर ही अशिव आचरण होते रहते हैं। शिवरात्रि पर्व पर सामूहिक आयोजन के माध्यम से फैली भ्रान्तियों का निवारण करते हुए शिव के गरिमा के अनुरूप उनके स्वरूप पर जन आस्थाएँ स्थापित की जा सकती हैं। ऐसा करना व्यक्तिगत पुण्य अर्जन और लोककल्याण दोनों दृष्टियों से बहुत महत्त्व रखता है।

शिव का अर्थ है- शुभ, शंकर का अर्थ है कल्याण करने वाला। शुभ और कल्याणकारी चिन्तन, चरित्र एवं आकांक्षाएँ बनाना ही शिव आराधना की तैयारी अथवा शिवा सान्निध्य का लाभ है। शिवलिंग का अर्थ होता है- शुभ प्रतीक चिह्न- बीज। शिव की स्थापना लिंग रूप में की जाती है, फिर वही क्रमशः विकसित होता हुआ सारे जीवन को आवृत कर लेता है। शिवरात्रि पर साधक व्रत- उपवास करके यही प्रयास करते हैं। शिव अपने लिए कठोर दूसरों के लिए उदार हैं। यह अध्यात्म साधकों के लिए आदर्श सूत्र है। स्वयं न्यूनतम साधनों से काम चलाते हुए ,, दूसरों को बहुमूल्य उपहार देना, स्वयं न्यूनतम में भी मस्त रहना, शिवत्व का प्रामाणिक सूत्र है।

नशीली वस्तुएँ आदि शिव को चढ़ाने की परिपाटी है। मादक पदार्थ सेवन अकल्याणकारी हैं, किन्तु उनमें औषधीय गुण भी हैं। शिव को चढ़ाने का अर्थ हुआ- उनके शिव- शुभ उपयोग को ही स्वीकार करना, अशुभ व्यसन रूप का त्याग करना। ऐसी अगणित प्रेरणाएँ शिव विग्रह के साथ जुड़ी हुई हैं। त्रिनेत्र विवेक से कामदहन, मस्तक पर चन्द्रमा मानसिक सन्तुलन, गङ्गा- ज्ञान प्रवाह, भूत आदि पिछड़े वर्गों को स्नेह देना आदि प्रकरण युग निर्माण साहित्य में जहाँ- तहाँ बिखरे पड़े हैं, उनका उपयोग विवेकपूर्वक प्रेरणा- प्रवाह पैदा करने में किया जा सकता है।

॥ पूर्व व्यवस्था॥

शिवरात्रि पर्व के लिए सामूहिक आयोजन में मंच पर शिव के चित्र सजाएँ। कामदहन, गंगावतरण, विषपान जैसे चित्रों का उपयोग किया जा सकता है। शिव पंचायतन, जिसमें शिव परिवार तथा गण भी हों, ऐसा चित्र मिल सके, तो और भी अच्छा है। पूजन सामग्री के साथ पूजन के लिए किसी प्रतिनिधि को बिठाया जाए इस पुस्तक के सामान्य प्रकरण से षट्कर्म, सर्वदेव नमस्कार, स्वस्तिवाचन आदि कृत्य पूरे कर लिए जाएँ। तत्पश्चात् भगवान् शिव, उनके परिवार और गणादि का आवाहन- पूजन किया जाए।

॥ शिव आवाहन॥

ॐ रुद्राः स सृज्यपृथिवीं, बृहज्ज्योतिः समीधिरे। तेषां भानुरजस्रऽ,इच्छुक्रो देवेषु रोचते॥ - ११.५४
ॐ याते रुद्र शिवा तनूः, शिवा विश्वाहा भेषजी। शिवा रुतस्य भेषजी, तया नो मृड जीवसे॥
ॐ श्री शिवाय नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥ -१६.४९

॥ शिव परिवार आवाहन॥

शिवजी का परिवार आदर्श परिवार है, सभी अपने- अपने व्यक्तित्व के धनी तथा स्वतन्त्र रूप से उपयोगी हैं। अर्धांगिनी- असुरनिकन्दिनी, भवानी, ज्येष्ठ पुत्र देव सेनापति कार्तिकेय तथा कनिष्ठ पुत्र प्रथम पूज्य गणपति हैं। शिव के आराधक को शिव परिवार जैसा श्रेष्ठ संस्कार युक्त परिवार निर्माण के लिए तत्पर होना चाहिए। भावना करें कि पारिवारिक आदर्श का प्रवाह हमारे बीच प्रवाहित हो रहा है।

॥ भवानी॥

ॐ हिमाद्रि तनयां देवीं, वरदां शंकरप्रियाम्। लम्बोदरस्य जननीं, गौरीमावाहयाम्यहम्॥
ॐ श्री गौर्यै नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि।
॥ स्वामी कार्तिकेय॥

ॐ यदक्रन्दः प्रथमं जायमानऽ, उद्यन्त्समुद्रादुत वा पुरीषात्। श्येनस्य पक्षा हरिणस्य बाहू, उपस्तुत्यं महिजातं ते अर्वन्॥- २९.१२
ॐ श्री स्कन्दाय नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि।
॥ गणेश॥

ॐ लम्बोदर! नमस्तुभ्यं, सततं मोदकप्रिय। निर्विघ्नं कुरु मे देव, सर्वकार्येषु सर्वदा॥
ॐ श्री गणेशाय नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि।
॥ गण आवाहन॥

शिवजी के गण उनके कार्य के लिए समर्पित व्यक्तित्व हैं। उनमें भूत- पिशाच पिछड़े वर्ग के भी हैं और देव वर्ग के भी। प्रधान गण हैं वीरभद्र। वीरता अभद्र न हो, भद्रता डरपोक न हो, तभी शिवत्व की स्थापना होगी। भले काम के लिए देव- पिशाच सभी एक जुट हो जाएँ, यही प्रेरणा शिवजी के गणों से प्राप्त होती है। भावना करें कि शिवजी के अनुयायी बनने योग्य प्रवृत्तियों का प्रवाह उमड़ रहा है। हमारे द्वारा पूजित होकर वह हमारे लिए उपयोगी बनेंगे।

ॐ भद्रो नो अग्निराहुतो भद्रारातिः, सुभग भद्रो अध्वरः। भद्राऽउत प्रशस्तयः॥ -१५.३८
ॐ सर्वेभ्यो गणेभ्यो नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि।

तदनन्तर भगवान् शिव उनके परिवार और गणादि का पुरुषसूक्त से षोडशोपचार पूजन करें। पूजन मन्त्र पृष्ठ ९६ में उद्धृत किया जा चुका है। फिर त्रिपत्र युक्त बिल्व पत्र भगवान् शिव को निम्न मन्त्र बोलते हुए चढ़ाएँ।

ॐ त्रिदलं त्रिगुणाकारं, त्रिनेत्रं च त्रिधायुधम्। त्रिजन्मपापसंहारं, बिल्वपत्रं शिवार्पणम्॥
दर्शनं बिल्वपत्रस्य, स्पर्शनं पापनाशनम्। अघोरपापसंहारं, बिल्वपत्रं शिवार्पणम्॥
तत्पश्चात् सभी लोग हाथ जोड़कर देवाधिदेव की प्रार्थना करें।
ॐ नागेन्द्र हाराय त्रिलोचनाय, भस्मांगरागाय महेश्वराय।
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय, तस्मै ‘न’ काराय नमः शिवाय॥
मन्दाकिनी- सलिलचन्दन- चर्चिताय, नन्दीश्वर- प्रमथनाथ- महेश्वराय।
मन्दारपुष्पबहुपुष्प- सुपूजिताय, तस्मै ‘म’ काराय नमः शिवाय।
शिवाय गौरी- वदनाब्जवृन्द, सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय।
श्री नीलकण्ठाय वृषध्वजाय, तस्मै ‘शि’ कराय नमः शिवाय। वशिष्ठ कुम्भोद्भवगौतमार्य- मुनीन्द्रदेवार्चितशेखराय।
चन्द्रार्कवैश्वानरलोचनाय, तस्मै ‘व’ काराय नमः शिवाय॥
यज्ञस्वरूपाय जटाधराय, पिनाकहस्ताय सनातनाय।
दिव्याय देवाय दिगम्बराय, तस्मै ‘य’ काराय नमः शिवाय॥
॥ अशिवत्व त्याग संकल्प॥

अशुभ तत्त्वों का भी शुभ योग सम्भव है। कुछ ओषधियों में मादकता और विषैलापन भी होता है, उसे व्यसन न बनने दें। औषधियों का प्रयोग तक उनकी छूट है। व्यसन बन गये हों, तो उन्हें छोड़ें, शिवजी को चढ़ाएँ। सङ्कल्प करें कि इनका अशिव उपयोग नहीं करेंगे। मन्त्र के साथ अशिव पदार्थ छुड़वाए जाएँ, बाद में इन्हें जमीन में गाड़ दिया जाए- ॐ अमङ्गलानां शमनं, शमनं दुष्कृतस्य च। दुःस्वप्ननाशनं धन्यं, प्रपद्येऽहं शिवं शुभम्॥

तत्पश्चात् अशिव त्याग सङ्कल्प करें-

.........नामाहं शिवरात्रिपर्वणि भगवतः शिवप्रीतये तत्सन्निधौ अशिव- चिन्तन निष्ठापूर्वकं संकल्पमहं करिष्ये। तत्प्रतीकरूपेण ..........दोषं त्यक्तुं संकल्पयिष्ये। सङ्कल्प के अक्षत- पुष्प सभी लोग पुष्पाञ्जलि के रूप में भगवान् को चढ़ाएँ, बाद में दीपयज्ञ, यज्ञादिकृत्य सम्पन्न करके क्रम समाप्त किया जाए।
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