गीत संजीवनी-1

गुरुवर हम शिष्य कहाते हैं

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गुरुवर हम शिष्य कहाते हैं- पर फर्ज निभाना बाकी है।
तुमसे अगणित अनुदान मिले- वह कर्ज चुकाना बाकी है॥
तुमने हमको सद्ज्ञान दिया- सद्भाव दिया सम्मान दिया।
यह है सब जग कल्याण हेतु- हमने रख कर अभिमान किया॥
जन- जन तक वह पहुँचाने का- अभियान चलाना बाकी है॥
तुमने गुरु बन कर हम सबके- पापों का बोझ उठाया है।
तप, प्राण, पुण्य देकर हमको- तुमने युगधर्म सिखाया है॥
जो तुम्हें समर्पित हो जाये- ईमान जगाना बाकी है॥
हे वेदमूर्ति तुमने जनहित- युगज्ञान ज्योति शुभ विकसाई
हे तपोनिष्ठ निज कर्मों से- संजीवन विद्या सिखलाई॥
वह ज्योति और विद्या पावन- घर पहुँचाना बाकी है॥
हे! विश्ववन्द्य, हे! विश्व रूप- तुमने नवयुग का बोध दिया।
बन महाकाल के युग प्रतिनिधि- उज्ज्वल भविष्य का घोष किया॥
उज्ज्वल भविष्य की जन- जन को- शुभ राह दिखाना बाकी है॥
हम अपने तन,मन,प्राणों को- प्रभु के चरणों पर धर देंगे।
उज्ज्वल भविष्य के सपनों को- साकार शीघ्र हम कर देंगे॥
बलिदानी वीर कहाने का- उत्साह हमें भी काफी है॥
मुक्तक- झोलियाँ भर दीं हमारी आपने अनुदान से,
कर दिया हमको लबालब आपने वरदान से।
अब चुकाने की हमें सामर्थ्य भी तो दीजिये।
हम समर्पित हैं चुकाने के लिये जी जान से।









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