गीत संजीवनी-1

गुरुवर ने सौंपी पीर

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गुरुवर ने सौंपी पीर, कि जिसने रखा उन्हें अधीर।
हमें प्राणों से प्रिय वह पीर, जिसे हम भुला न पायेंगे॥
उनने जीवन भर ही की, युग पीड़ा की अनुभूति।
वह ही युग की पीर बन गई, उनकी एक विभूति॥
रखेंगे प्राणों बीच सम्भाल, ताकि संवेदन भरे उछाल।
दर्द से भरी कथाएँ सुना, किसे हम रुला न पायेंगे॥
उस विभूति को हम धारण कर, करें आत्म विस्तार।
ताकि हमारा संवेदन, पाए दुखिया संसार॥
यही संवदेन है आधार, इसी से होगा, हृदय उदार।
इसी पूँजी द्वारा, भावों का वैभव हम पा जायेंगे॥
दीनों के हम दुःख बटाएँ, तो हल्का हो भार।
सुख बाँटे हम सबको, सारी दुनियाँ है परिवार॥
करें सब ही आपस में प्रीति, यही है स्वर्ग सृजन की रीति।
ऐसे ही अपनी धरती पर, हम फिर स्वर्ग सजायेंगे॥
पर पीड़ा को क्या पहिचाने, जो होगा पाषाण।
हममें तो लहराते रहते, महाप्राण के प्राण॥
हरेंगे हम दुनियाँ की पीर, बँधाएँगे दीनों को धीर।
इसी संवेदन से दीनों के, दुःख और दर्द मिटाएँगे॥
मुक्तक-
गुरुवर ने मानवता की- पीड़ा सौंपी है।
संवेदन की पौध, मनो में रोपी है॥
दीनों दुखियों की पीड़ा नहीं बँटा पाए।
फिर गुरु निष्ठा की बात व्यर्थ है, थोथी है॥    
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