गीत संजीवनी-1

गुरु बिन ज्ञान नहीं

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गुरु बिन ज्ञान नहीं- नहीं रे
अंधकार बस तब तक ही है, जब तक है दिनमान नहीं रे॥

मिले न गुरु का अगर सहारा, मिटे नहीं मन का अंधियारा
लक्ष्य नहीं दिखलाई पड़ता, पग आगे रखते मन डरता।
हो पाता है पूरा कोई, भी अभियान नहीं, नहीं रे॥

जब तक रहती गुरु से दूरी, होती मन की प्यास न पूरी।
गुरु मन की पीड़ा हर लेते, दिव्य सरस जीवन कर देते।
गुरु बिन जीवन होता ऐसा, जैसे प्राण नहीं, नहीं रे॥

भटकावों की राहें छोड़ें, गुरु चरणों से मन को जोड़ें।
गुरु के निर्देशों को मानें, इनको सच्ची सम्पत्ति जानें।
धन, बल, साधन, बुद्धि, ज्ञान का, कर अभिमान नहीं नहीं रे॥

गुरु से जब अनुदान मिलेंगे, अति पावन परिणाम मिलेंगे।
टूटेंगे भवबन्धन सारे, खुल जायेंगे,प्रभु के द्वारे।
क्या से क्या तुम बन जाओगे, तुमको ध्यान नहीं, नहीं रे॥
मुक्तक-
गुरु ही ज्ञान ध्यान जप पूजा, गुरु विद्या विश्वास।
जो गुरु के गुण गौरव जाने, गोविन्द उनके पास॥    
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