गीत संजीवनी-1

जब- जब पीड़ित पाप- पतन

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जब- जब पीड़ित पाप पतन से, यह धरती हो जाती।
तब- तब नये रूप धर- धरकर, ईश चेतना आती॥
करने हल्का भू का भार, आते धरती पर अवतार॥
पीड़ित हुई आज मानवता, चिन्तन में विकृतियाँ आई।
अन्धकार में भटका मानव, भीषण विपदायें गहराई॥
करूणा से हो उठी द्रवित फिर, युग सृष्टा की छाती॥
बालक श्रीराम शर्मा में, वह विशेषता दी दिखलाई।
स्वयं हिमालय की ऋषि सत्ता, आत्म बोध कराने आई॥
गुरु रूप में रही उन्हें वह, चौबीस वर्ष तपाती॥
गायत्री को साध्य बनाकर, अविरल ज्योति अखण्ड जलाई।
युग का अन्धकार हरने की, उसने सतत प्रेरणा पाई॥
बन कर ज्योति अखण्ड रही वह, ज्ञान क्रान्ति चलवाती॥
युग निर्माण योजना द्वारा, परिवर्तन प्रक्रिया चलाई।
अन्धविश्वासों आडम्बर से, जन मानस को मुक्ति दिलाई।
उनकी ज्ञान मशाल विश्व को, नूतन पथ दिखलाती॥
जाति पाँति का भेद मिटाकर, गायत्री सब तक पहुँचाई।
ऊँच- नीच का भाव मिटाकर, यज्ञाहुति सबसे डलवाई॥
युग ऋषि के सन्मुख जन श्रद्धा, नत मस्तक हो जाती॥    
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