गीत संजीवनी-1

गुरुसत्ता का मिला हमें

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गुरु (ऋषि) सत्ता का मिला हमें जो प्यार है।
बँधा इसी से गायत्री परिवार है॥
कर्तव्यों का भाव नहीं हम त्यागेंगे।
बच्चों जैसे नहीं खिलौने माँगेंगे॥
हममें से हर परिजन जिम्मेदार है।
बँधा इसी से गायत्री परिवार है
हम अपने भीतर की ओर निहारेंगे।
अपनी जीवन- शैली स्वयं सँवारेंगे॥
प्रथम स्वयं का करना हमें सुधार है।
बँधा इसी से गायत्री परिवार है॥
अपने लिए कठोर सर्वदा होंगे हम।
किन्तु दूसरों पर विनम्र होंगे हरदम॥
क्योंकि हमारा गुरु भी बहुत उदार है।
बँधा इसी से गायत्री परिवार है॥
नहीं सिर्फ अपने घर दीप जलाएँगे।
औरों का अँधियारा दूर भगाएँगे॥
कहीं न है सुख- शान्ति, विकल संसार है।
बँधा इसी से गायत्री परिवार है॥
मुक्तक-
गायत्री परिवार अनूठा, हर जन जिसको प्यारा है।
स्नेह डोर में बँधे सभी हैं, सबसे बढ़कर न्यारा है॥    
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