गीत संजीवनी-1

गिरजा गिरे न मस्ज़िद

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गिरजा गिरे न मस्जिद टूटे- वह मन्दिर निर्माण करें।
प्रतिमा करें प्रतिष्ठित जिसमें- मानवता के प्राण भरें॥

पिता हिमालय की गोदी से, गंगा चली लहर खाती।
सबने स्वागत किया जाह्नवी, जहाँ- जहाँ होकर जाती॥
हिन्दू,मुस्लिम, सिक्ख, पारसी, का न, भेद मन में लाती।
बालक हो अथवा नर नारी, बड़े प्रेम से नहलाती॥
हरिद्वार से कलकत्ता तक- गंगा जन कल्याण करे।
बिना किसी दैहिक विभेद के, सारे जग का त्राण करे॥

सूर्य देव उगते प्राची में, फिर आगे बढ़ते जाते।
भारत वर्ष यमन, इज़राइल, रूस चीन भी हैं जाते॥
अमरीका, इंग्लैण्ड, फ्राँस में, भी प्रकाश वे फैलाते।
कोई भेद न भाव सूर्य, भगवान तभी तो कहलाते॥
प्यार करें हम भी रवि सा(जैसा)धरती में पावन प्राण भरें।
जहाँ दिखे दुःख कष्ट प्राणियों के पीड़ा और त्राण हरें॥

दीपक एक जलाकर रख दो, गिरिजा या गुरुद्वारा हो।
वन हो या पर्वती गुफा हो, ऊसर या गलियारा हो॥
जल- जल ज्योति सदा फैलाता, जहाँ- जहाँ अँधियारा हो।
हम भी वैसे जलें कि जिससे- घर आँगन उजियारा हो॥
जीवन में निष्काम कर्म का- अब तो शिरस्त्राण हरें
महापुरुष पथ चले उसी पर- जन पुण्य प्रयाण करें॥
बहुत सताई गई मनुजता, उसने चोट बहुत खाई।
अब तो उसे पुनर्जागृत, करने की पुण्य घड़ी आई॥
युग निर्माण योजना वह, संदेश मनोरम है लाई।
मन्दिर है तैयार प्रतिष्ठा, की बेला भी बन आई॥
हो मंगल अभिषेक दूर- अब तो सारे विष बाण टरें
यह प्रभु करुणा का सागर है- उसे नहीं पाषाण करें॥    
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