हृदय - परिवर्तन (Kahani)

September 1998

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एक व्यापारी ने बहुत धन कमाया। उसे अपने धन पर इतना गर्व था कि वह अपने घर के लोगों पर ऐंठा करता था। फल यह हुआ कि उसके लड़के भी उद्दण्ड और अहंकारी हो गये। पिता-पुत्रों में ही ठनने लगीं घर नरक बन गया।

उद्विग्न व्यापारी ने महात्मा बुद्ध की शरण ली और कहा - “भगवन्! मुझे इस नरक से मुक्ति दिलाइए, मैं भिक्षु होना चाहता हूँ।” तथागत ने उत्तर दिया - “भिक्षु बनने का अभी समय नहीं है। तात्! तुम जैसा संसार चाहते हो वैसा आचरण करो, तो घर में ही स्वर्ग के दर्शन कर सकोगे।”

व्यापारी घर लौट आया और विनम्रता बरतने लगा। उससे सारे घर के लोगों का हृदय - परिवर्तन हुआ। सुख शान्ति के दर्शन होने लगे।


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