सृष्टि के कण-कण में रंगों का अद्भुत संसार बिखरा पड़ा है जो मनुष्य जीवन में रंग भरकर उसे सरस एवं जीवंत बनाए हुए हैं। प्रकृति के संवर्ग में ये रंग ही जिन्दगी में सतरंगी छटा-सा सृजन करते हैं। रंगों के अभाव में जीवन की कल्पना करने पर घोर अंधकार के सिवा और कुछ नहीं बचता। इस रंगों के रंगीन संसार की अपनी भाषा व अपना विज्ञान है, जिसे समझकर हम अपने व्यक्तित्व को सँवार सकते हैं। रंगों की अपनी प्रकृति व गुणधर्म है, जिसे यदि समुचित रीति-नीति से अपनाया जा सके तो अपने शारीरिक, मानसिक एवं भावनात्मक जीवन को अधिक अवस्थित-सन्तुलित एवं पुष्ट बनाया जा सकता है।
रंगों का प्रकाश से अभिन्न सम्बन्ध है। इसमें भी सूर्य प्रकाश का बसे प्राकृतिक एवं विशुद्ध क्षेत्र है। सात रंग की सात किरणों का सृजेता होने की वजह से इसे सप्तरश्मि भी कहा गया है। प्रकाश सात रंगों से मिलकर बनता हैं। जिन्हें हम प्रिज़्म के माध्यम से देख सकते हैं। भौतिक विज्ञान में इसके लिए एक विशिष्ट शब्द है। ‘विबग्योर’, जो क्रमशः बैगनी, आसमानी, नीला, हरा, पीला, नारंगी और लाल रंग को प्रकट करता है। सत्य तो यह है कि किसी वस्तु का वास्तव में अपना कोई विशिष्ट रंग नहीं होता है। उसका रंग क्या होगा? यह उस पर पड़ने वाले प्रकाश के परावर्तन पर निर्भर करता है। जब किसी वस्तु पर प्रकाश की किरणें पड़ती है तो व उक्त वस्तु से परावर्तित होकर हमारी आँखों से टकराती है और हमें यह वस्तु दिखाई देती है। अब वस्तु का रंग इस बात पर निर्भर करता है कि वह प्रकाश में विद्यमान सात रंगों में से किस को अवशोषित करती है और किसको परावर्तित। जब वस्तु सभी रंगों को अवशोषित करती है तो वह काली दिखाई देती है। जब वह सभी रंगों को परावर्तित करे तो वह सफेद दिखाई देती है। जब वह किसी एक रंग को परावर्तित कर तो वैसे रंग की दिखाई पड़ती है।
इनमें से प्रत्येक रंग की अपनी अलग-अलग भाषा है। वे किसी विशेष गुणधर्म को प्रकट करते हैं व सभी की अपनी-अपनी प्रभावोत्पादक शक्ति होती है। ये रंग इनको पसन्द करने वाले व्यक्ति के व्यक्तित्व पर भी समुचित प्रकाश डालते हैं। उदाहरण के लिए, लाल रंग उग्रता का प्रतीक है। यह उग्र विचार, उग्र प्रेम एवं तीव्र भावुकता को व्यक्त करता है। यह रंग शौर्य, वीरता, संघर्ष एवं उत्साह को भी प्रकट करता है। प्राचीनकाल में सैन्य झण्डे और वस्त्र लाल रंग के होते थे। क्रान्तिकारी उग्र आन्दोलनों में भी लाल रंग के प्रतीक झण्डों का उपयोग अधिक हुआ करता है। इसी तरह तीव्र भावुकता व्यक्त करने के उद्देश्य से शादी-विवाह में दुल्हन को लाल रंग के वस्त्र पहनाए जाते हैं। लाल रंग को शुभ भी माना गया है। लाल रंग के प्रति लगाव रखने वाले व्यक्ति उग्र, महत्त्वाकाँक्षी व उत्साही होते हैं। साथ ही इनमें शीघ्र उत्तेजित होने व झगड़ालू प्रवृत्ति की भी सम्भावना बनी रहती है। वे दृढ़ता के साथ कार्य करने में विश्वास रखने वाले होते हैं। वे जो सोचते हैं व जो काम हाथ में लेते हैं, उसे पूरा करके ही दम लेते हैं।
नारंगी रंग को जीवनशक्ति, ऊर्जा, त्याग और बलिदान का प्रतीक माना गया है। यह वास्तव में लाल और पीले रंग के संयुक्त प्रभाव को प्रकट करने वाला है। इसीलिए इसे प्रफुल्लता, ताजगी, शक्ति, ऊर्जा और उत्साह का प्रतीक माना गया है। नारंगी रंग को पसन्द करने वाला व्यक्ति खुले दिमाग तथा तीक्ष्ण बुद्धि का स्वामी होता है। प्रत्येक कार्य पूरे मनोयोग से करता है। प्रायः आकर्षक व्यक्तित्व का स्वामी होता है। प्रायः लेखकों, कवियों तथा कल्पनाशीलों व विचारवानों को यह रंग पसन्द होता है। ऐसे व्यक्ति ज्यादातर स्वप्नद्रष्टा व जीवन के प्रति आशावान् होते हैं।
पीला रंग ज्ञान, आध्यात्मिकता व कुलीनता आदि को व्यक्त करता है। इस रंग को भी शुभ माना गया है। पर्व-त्योहार धार्मिक अनुष्ठान आदि में इसका उपयोग विशेष रूप से किया जाता है। किन्तु यदि पीला रंग साफ एवं स्वच्छ न होकर मैलापन लिये हो तो हृदय के उत्साह को मार देता है। पलायनवाद, कायरता व दुर्बुद्धि को भी जगाता है। पीले रंग के प्रति लगाव रखने वाले व्यक्ति की बुद्धि व स्मरणशक्ति तीव्र होती है। वे कड़ी मेहनत में विश्वास रखते हैं, साथ ही हँसमुख व मिलनसार होते हैं, परिस्थितियों से घबराते नहीं। प्रत्येक स्थिति के अनुसार ढलने की उनमें अद्भुत क्षमता होती है। ऐसे व्यक्ति जीवन के हर क्षेत्र में आशावादी होते हैं।
हरे रंग को द्वैत रंग अर्थात् दो विचारों वाला रंग कहा गया है। हल्का हरा रंग बौद्धिक क्षमताओं को सक्रिय कर शान्ति देता है, जबकि हरा रंग यदि मैलापन लिए हो तो मन के विचारों को दूषित कर देता है। गहरे हरे रंग को शक, ईर्ष्या, द्वेष आदि से जोड़ा जाता है। विक्षोभ, थकान, ताजगी, चंचलता, स्फूर्ति व आराम दोनों का अद्भुत संगम इस रंग में देखा जाता है। यह रंग वातावरण को शान्त बनाने में सहायक होता है। जो लोग हरा रंग पसन्द करते हैं वे प्रकृति - प्रेमी होते हैं। वे प्रकृति के सान्निध्य में शान्ति व सुरक्षा की अनुभूति करते हैं।
नीला रंग एक आध्यात्मिक रंग है। यह शान्ति, सहिष्णुता, शुद्धता, सात्विक स्नेह और वैराग्य का प्रतीक है। यह गहराई, विशालता और अनवरत शान्ति को दर्शाता है। आसमान, सागर एवं शान्त झील के सान्निध्य में इस रंग की छटा निहार सकते हैं। इसको पसन्द करने वाले स्थिरचित्त और शान्तिप्रिय होते हैं, जीवन के किसी भी पहलू के प्रति गम्भीर दृष्टि रखते हैं, और किसी भी समस्या को शान्तिपूर्ण सुलझा लेते हैं। इनकी बुद्धि तीक्ष्ण व हृदय कोमल होता है। अपने हितों में ये समर्पित व ईमानदार होते हैं।
गहरा नीला रंग, हल्के नीले रंग के विपरीत प्रवृत्तियों को इंगित करता है। इस रंग के चितेरे को लगता है कि वह पूरे संसार में अकेला है। परिणामतः वह अपने में मग्न विलीन रहता है। उसे एकान्तवास प्रिय होता है। प्रायः उसमें आत्मविश्वास की कमी रहती है। बाहरी दुनिया, बाह्याडम्बरों एवं बनावटीपन से उसे घृणा होती है।
बैंगनी रंग रहस्यात्मक आचरण वालों को बेहद प्रिय होता है। इनके व्यवहार एवं स्वभाव में एक विचित्र-सी रहस्यात्मकता जुड़ी होती है। इन्हें शीघ्र पहचानना बड़ा कठिन होता है।
सफेद रंग शाँत स्वभाव, सादगी, विचारों की उच्चता, तेजस्विता और सात्विकता का प्रतीक है। इस रंग के प्रति लगाव वाले व्यक्तियों में जटिलता नहीं पायी जाती है। वे शान्त, सात्विक और स्पष्टवादी प्रवृत्ति के होते हैं। आदर्शवादी होते हैं। कभी उत्तेजित नहीं होते और लड़ाई-झगड़े से बचकर रहना चाहते हैं। धूसर, मटमैला रंग गम्भीरता, विनम्रता, सौजन्यता और लज्जा के साथ - साथ कर्मठ - क्रियाशीलता का प्रतीक है। किन्तु बाह्य उत्प्रेरक न मिले तो यह निर्बल रंग है। भूरा रंग एकता की भावना, ईमानदारी, अच्छाई, भलाई और उच्चभावना के साथ सहयोग का भाव जगाता है। इस रंग को पसन्द करने वाले व्यक्ति अपने मित्रों, परिवारजनों व कार्य के प्रति पूरी तरह से समर्पित होते हैं। यह रंग स्थिरता और अच्छे व्यवहार का संकेत देता है।
काले रंग को भारतीय परम्परा में अशुभ रंग माना गया है। धार्मिक अनुष्ठानों में इसका प्रयोग वर्जित है। यह रंग शोक दुःख जैसे भाव जगाने वाला है। यह विस्तार व विकास के विपरीत है तथा संकीर्ण मनोवृत्ति का द्योतक है। यह रंग व्यक्ति को स्वार्थी, आत्मकेन्द्रित, पलायनवादी व अन्तर्मुखी बनाता है। साथ ही निराशा व पतन को दर्शाता है। यदि इसे अन्य अच्छे और स्वच्छ रंगों से मिला दिया जाए तो यह बेहद व्यवहारकुशल रूप अपना लेता है। इसे पसन्द करने वाले व्यक्ति दृढ़ निश्चयी होते हैं। साथ ही ये भावनारहित व निरंकुश होते हैं।
गुलाबी रंग सौम्य, सरल स्वभाव का द्योतक है। आयु अधिक होने पर भी ये बचपन को दर्शाता है। परिणाम स्वरूप इस रंग को पसंद करने वालों की हरकतें, आचार-विचार बच्चों जैसे होते हैं। फिरोजी रंग भावनात्मक रूप से स्थिरता प्रदान करने में सहायक है।
इन दिनों रंगों की प्रभावोत्पादक क्षमता पर व्यापक शोध प्रयास चल रहे हैं। जर्मनी के विख्यात मनीषी डॉ. मैक्समूलर ने रंगों पर गहन अध्ययन किया है। उन्होंने अपने निष्कर्ष ‘द लूशर कलर टेस्ट’ नामक पुस्तक में दिए हैं। उनके अनुसार नीला रंग पूर्ण शान्ति का, हरा राजसी ठाठ का और निरंकुश प्रकृति का, लाल रंग शक्ति और स्फूर्ति का तथा पीला रंग रंग सन्तुष्टि की भावना का द्योतक है। थियोमिक्वेल अपनी पुस्तक ‘हीलिंग विद कलर एण्ड लाइट’ में लिखते हैं कि हम रंगों से तीन स्तर पर प्रभावित होते हैं - शारीरिक, मानसिक एवं भावनात्मक। शारीरिक स्तर पर लाल रंग का भाग शरीर को तनावग्रस्त करता है, जबकि नीला भाग शरीर को विश्राम देता है। मानसिक स्तर पर हमारी दृष्टि को प्रभावित करता है। जैसे कि एक लाल कमरा एक नीले कमरे की अपेक्षा छोटा दिखाई देता है। भावनात्मक स्तर पर रंग हमारे मनोभावों को प्रभावित करते हैं। लाल रंग उत्तेजना पैदा करता है तो नीला शाँतिदायक होता है।
व्यक्ति की मनःस्थिति पर रंगों के सीधे एवं गहरे प्रभाव को देखते हुए आज मनोविज्ञान के क्षेत्र में भी रंग चिकित्सा का प्रयोग हो रहा है। रंग मनोचिकित्सक तथा ‘कलर योर लाइफ’ को लेखिका डोरथी रुन का माना है कि नारंगी एवं हल्का पीला रंग व्यक्ति में नई आशा का संचार करते हैं तथा व्यक्ति के चिन्तन को अधिक स्पष्ट करते है। डोरथी का कहना है कि कई व्यक्ति केवल इसीलिए अधिक गलतियां करते हैं क्योंकि वे काले रंग का प्रयोग अधिक करते हैं। हालाँकि वे स्वीकार करती हैं कि आज फैशन में काले रंग का प्रचलन अधिक चल पड़ा है और इसे पहनने से कई व्यक्ति अधिक आकर्षक दिखते हैं। वे कहती हैं कि जो लोग काला रंग अधिक पसन्द करते हैं, वे अधिकतर किसी होते काम को रोकने वाले, दुःखी तथा दूसरों से अलग-थलग रहने वाले होते हैं।
विशिष्ट रंगों के प्रति लगाव व्यक्ति के व्यक्तित्व पर समुचित प्रकाश डालते हैं। अत्यधिक मिलनसार व सामाजिक व्यक्ति अपने कमरों को चटकीले रंगों से सजाते हैं व चमकीले रंग के वस्त्र पहनते हैं। जबकि शान्त एवं अन्तर्मुखी लोग भूरा, मटमैला या सफेद रंग पसन्द करते हैं। रंगों के गुण-धर्म व शरीर मनोभावों पर पड़ने वाले प्रभाव के अनुरूप आवश्यक सावधानी बरतकर हम इनका अधिक लाभ ले सकते हैं। जब कोई व्यक्ति आलस और सुस्ती महसूस कर रहा हो या बेहद निराश व हताश हो तो रंगों का अद्भुत प्रभाव आजमाकर स्वयं में स्फूर्ति व नव उत्साह का संचार कर सकता है। लाल रंग के कपड़े जीवन्तता व चुस्ती का अहसास देते हैं। सर्दी लगने पर लाल रंग के दस्ताने, जुराब व स्कार्फ गर्मी का अहसास दिलाते हैं। यदि गर्मी अधिक हो या फिर क्रोध आता हो तो इस रंग से बचना चाहिए। शयनकक्ष में नीले या फिरोजी जैसे शीतल रंगों का प्रयोग अधिक उपयुक्त रहता है। क्योंकि हाल रंग अनिद्रा को प्रोत्साहित करता है। इस तरह हम अपने स्वभाव, रुचि एवं आवश्यकता के अनुरूप रंगों का चयन कर स्वयं के जीवन में रंग भर सकते हैं व उसे अधिक सुखी व स्वस्थ बना सकते हैं।