चलेंगे हम जगज्जननी, तुम्हारे ही इशारों पर, न है चिंता कि डूबें, या पहुँच जायें किनारों पर।
भटकते ही रहे अब तक, अँधेरी वीथियों में हम, रहे बस खोजते मोती, तटों की सीपियों में हम,
बड़े सौभाग्य से आये, यहाँ माँ के दुआरों पर। तुम्हारे शब्द में हमने, सुनी गुरुदेव की वाणी,
तुम्हारे स्नेह में देखी, गुरु की दृष्टि कल्याणी, उसी से पार होंगे हम, समय की तेज धारों पर।
हमारे कान में गुरु की, तुम्हीं ने बात दुहरायी, शिथिलता के पलों में माँ, तुम्हीं से प्रेरणा पायी,
हमारी हर प्रगति होगी, तुम्हारे ही सहारों पर। करें हम काम गुरुवर का, हमें वह शक्ति दे दो माँ,
दुखी-असहाय मानव में, हमें अनुरक्ति दे दो माँ, करें हर सुख समर्पित हम, हजारों बेसहारों पर।
कृपा हम पर करो जिससे, सहज संवेदना जागे, घृणा-संकीर्ण स्वार्थों की, हृदय से भावना भागे,
मनुज गौरव करे फिर से, यहाँ सत्संस्कारों पर। सुनिश्चित पतझड़ों के बाद, है मौसम बहारों का,
उमस संकेत कल की सुखद, शीतल फुहारों का, कि कायाकल्प निर्भर है, मनुज के सद्विचारों पर।
सुसंस्कृति की सुरक्षा को, विवेकानंद हम होंगे, कि बंदा बैरागी से हम, जरा भी तो न कम होंगे, जमाना नाज कर लेगा, पुनः इन पंच प्यारों पर।
-शचीन्द्र भटनागर