एक अन्धा था। किसी अपराध में आजीवन कारावास का भागी बना। बहुत दुःखी रहता। राजा को दया आयी। वे दण्ड मुक्त तो नहीं कर सकते थे, पर इतनी व्यवस्था कर दी कि यदि यह जेल द्वार से अनायास ही निकले तो उसे कोई रोके नहीं।
अन्धा इतने से भी प्रसन्न हुआ। उसने जेल की दीवार पकड़ी आर फाटक की तलाश में उसके सहारे चलने लगा। फाटक पर सुन्दर उद्यान था, शीतल वातावरण।
अन्धे के सिर में खाज थी। ठण्डक पाकर वह और जोर से खुजलाने लगी अन्धे ने दीवार छोड़ दी और दोनों हाथों से गंज खुजलाने लगा। चलने से रुका नहीं और फाटक निकल गया। वह फिर उसी कुचक्र में परिभ्रमण करने लगा।
हर बार यही हुआ। बार-बार फाटक आया और गंजा खुजलाने के कारण वह बार-बार उसी प्रकार भटकता रहा। बाहर निकलने का अवसर पा नहीं सका।
चौरासी लाख योनियों का परिभ्रमण एक कारावास है। जीव अन्धा, वह चाहे तो मनुष्य जन्म फाटक से बाहर निकल सकता है पर जब वह सुयोग आता है तो विषय विकारों की गंज खुजलाने लगती है और बार-बार फिर उसी कोल्हू में घूमता रहता है। फिर गंज खुजलाने पर नियन्त्रण कर सके तो पार होने का सहज सुयोग हाथ से क्यों जाये?