चमत्कार बनाम अविज्ञात का रहस्योद्घाटन

May 1983

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बालकों का मस्तिष्क अविकसित तथा अपरिपक्व होता है। उनमें सहज जिज्ञासा, दृश्य संसार के रहस्यों को जानने की पायी जाती है। जिन गुत्थियों को वे सुलझा पाने में असमर्थ होते हैं, वे उन्हें चमत्कार लगती हैं। रेलगाड़ी, वायुयान मोटर, राकेट कारखानों आदि का चलना भी छोटे बच्चों को अचम्भित करता है पर बड़े होने तथा बुद्धि के विकसित होते ही उनके चलने का सिद्धान्त समझते ही वे सहज- साधारण कृत्य जान पड़ते हैं। चमत्कार जैसी उनमें कोई बात नहीं दिखायी पड़ती।

बालकों में ही नहीं, अविकसित मानसिक स्तर की जनता में भी चमत्कारों के प्रति बहुत आकर्षण होता है। बाजीगरी, नट विद्या, अजाबघर, चिड़ियाघर, सरकस आदि अनेकों आविष्कार मनुष्य के इस कौतुक-कौतूहल अथवा चमत्कार की आकाँक्षा रखने वाली बुद्धि को तृप्त करने के लिए ही हुए हैं। पर तथ्यों को वैज्ञानिक कसौटी पर कसने पर उनमें चमत्कार जैसी कोई बात अंततः सामने नहीं आती। हाथ की सफाई विशेष करतब का अभ्यास जैसी विशेषताएँ ही बाजीगरी, नट विद्या की सफलता के कारण हैं।

चमत्कारों का तावित्क विश्लेषण करने पर जो निष्कर्ष सामने आता है वह यह है कि बुद्धि की पकड़ सीमा में जो घटनाएँ नहीं आतीं वे चमत्कार मालूम पड़ती हैं अथवा जो बातें आमतौर पर प्रचलन में नहीं हैं, तब तक चमत्कारी प्रतीत होती हैं। जैसे ही उनका रहस्य प्रकट होता है, उनमें कोई आश्चर्यजनक बात नहीं जान पड़ती। वैज्ञानिक आविष्कारों के आरम्भिक दिनों में रेल, तार, टेलीफोन, वायुयान, मोटर आदि का नया-नया प्रचलन हुआ था। तब लोग इन्हें देखने के लिए सौ दो सौ मील पैदल चलकर आते थे, पर धीरे-धीरे जब ये वस्तुएँ नित्य के व्यवहार में सर्वत्र प्रयोग में आने लगीं तो कुछ दिनों में उनका आकर्षण जाता रहा- वह चमत्कार समाप्त हो गया। पहली बार जब डायनामाइट का विस्फोट हुआ तो उसे एक अचरज की घटना मानी गयी। विस्फोट का सूत्र हाथ लगते ही वह एक सामान्य बात हो गयी है। जो परमाणु बम की बनावट तथा नाभिकीय विस्फोट के सिद्धान्त से अपरिचित हैं, उनके लिए वह एक असाधारण घटना मालूम पड़ती है, पर भौतिक शास्त्र के ज्ञाताओं के लिए वह उतनी आश्चर्यजनक नहीं। मानव विहीन उपग्रहों का, धरती का गुरुत्वाकर्षण चीरकर अन्तरिक्ष की कक्षा में प्रतिष्ठापित होकर चक्कर काटने लगना अज्ञ मस्तिष्कों को हैरत में डाल सकती है पर विज्ञ उसे तकनीकी ज्ञान की एक विशेष विधा भर मानते हैं।

मानवी मन की बनावट ही ऐसी है कि वह असामान्य वस्तुओं अथवा घटनाओं को देखकर उनके पीछे किसी अविज्ञात गुप्त शक्ति की कल्पना करता है। बिजली चमकने जैसी प्राकृतिक बात का ठीक कारण न मालूम होने से यह मान्यता मन में बिठाली गयी कि इन्द्र के हाथ में वज्र चमकता है जो शरीर शास्त्र तथा आरोग्य विज्ञान से अनभिज्ञ हैं अथवा जिन क्षेत्रों में आधुनिक प्रगति नहीं हुई है, उनमें आज भी यह विश्वास प्रचलित है कि बीमारियाँ, महामारियाँ किसी देवी देवता के प्रकोप से पैदा होतीं तथा उनकी अनुकम्पा से ही दूर हो सकती हैं। विभिन्न प्रकार के रोगों के उपचार के लिए उनमें भूतों, जिन्नों, प्रेतों, देवियों को भगाने वाले ओझा अभी भी पिछड़े हुए समाजों में पाये जाते हैं, पर विज्ञान की कसौटी पर उनकी मान्यताओं को मूर्खतापूर्ण माना जाता है तथा यह समझा जाता है कि उस समाज में घटनाओं की समीक्षा करने की बुद्धि संगत कसौटी का अभाव है। पर विज्ञ समाज में ये अन्धविश्वास नहीं पाये जाते।

अभी कुछ दशकों पूर्व तक प्रकृति की अनेकानेक घटनाएँ रहस्यमय बनी हुई थी, जिसे भारी आश्चर्य की दृष्टि से देखा जाता रहा है बारमूड़ा त्रिकोण की घटना अभी कल परसों की है जहाँ कि सैकड़ों जलयान, वायुयान यात्रियों समेत गायब होते रहें हैं जिनका कोई अता-पता अब तक नहीं मिल सका है। उसके साथ अनेकों किम्वदंतियां जुड़ गयीं। किसी अन्यान्य ग्रह के लोगों के कारनामे, देवता का प्रकोप आदि मानकर सन्तोष किया जाता रहा, पर विज्ञान की नवीनतम खोजों ने उन सभी मान्यताओं को झुठलाकर यह सिद्ध कर दिया कि वह भी एक प्रकार का ‘ब्लैक होल’ है। ऐसे केन्द्र एक ही सीध में पृथ्वी पर आठ स्थानों पर हैं, उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव पर भी दो केन्द्र हैं। अन्तरिक्ष में असंख्यों की संख्या में ब्लैक होल मौजूद हैं। इनकी आकर्षण शक्ति अत्याधिक प्रचण्ड है। हाथी जैसे विशालकाय जीव भी उसके आकर्षण से तिनके की तरह खिंचते हुए चले आते हैं। उस प्रचण्ड आकर्षण शक्ति के कारण ही जलयान, वायुयान बारमूडा त्रिकोण नामक स्थान पर जाकर गायब होते रहे। ऐसे प्रकृति रहस्यों की संख्या असंख्यों है, जिनके विषय में आधुनिक विज्ञान को भी कुछ ज्ञान नहीं है, पर समझा जाता है कि उनके रहस्योद्घाटन में लगे वैज्ञानिक उन रहस्यों को उजागर करने में अगले दिनों समर्थ होंगे। पर जब तक कि प्रकृति की उन विलक्षणताओं का कारण नहीं ज्ञात हो जाता, तब तक के लिए वे रहस्य हैं।

सृष्टि का दूसरा घटक चैतन्य है, वह जड़ प्रकृति की तुलना में कहीं अधिक सामर्थ्यवान अधिक विलक्षण है। जीवधारियों के भीतर उस चेतना का छोटा अंश कार्य करता, अनेकों प्रकार के अचम्भित करने वाले करतब दिखाता देखा जा सकता है। प्रकृति की तुलना में चेतना के अन्तराल में बहुमूल्य उपलब्धियों के भाण्डागार मौजूद हैं, जिन्हें प्राप्त करके असम्भव समझे जाने वाले कार्यों को भी सम्भव बनाया जा सकता है।

उपलब्धियों को करतलगत करने की एक सशक्त प्रयोगशाला मानवी काया के रूप में हर व्यक्ति को मिली हुई है। वह इतनी विलक्षण तथा उपयोगी यन्त्रों से सुसज्जित है, जितनी प्रकृति की अन्य कोई भी संरचना नहीं है। शरीर, बुद्धि, मन अन्तःकरण में से प्रत्येक को विभिन्न आयाम समझा जा सकता है। अभी मानवी विकास की सीमा मैटर तक सीमित है। शरीर और बुद्धि भी इसी सीमा के अंतर्गत आते हैं। बुद्धि का वह हिस्सा जो अधिक समर्थ है- चैतन्य है जिसे वैज्ञानिक 93 प्रतिशत मानते हैं, इन्ट्यूशन प्रज्ञा का है, वह अविज्ञात का क्षेत्र है, सात प्रतिशत का ही समस्त व्यापार अनेकानेक वैज्ञानिक उपलब्धियों के रूप में परिलक्षित हो रहा है। बोलचाल की भाषा में जिसे मन कहा जाता है, उसकी अति नगण्य जानकारी मनुष्य को है। आधुनिक मनोविज्ञान को भी अपनी खोजों द्वारा जो प्राप्त हुआ है, वह अत्यल्प है। उसकी गहरी परतों की सामर्थ्यों का कुछ भी ज्ञान मनोविज्ञान को नहीं है। इसी क्षेत्र में अगणित रहस्यों की चाबी छुपी हुई है। अतींद्रिय सामर्थ्य के रूप में प्रख्यात शक्तियाँ इसी के अन्तराल में उपजती तथा किन्हीं-किन्हीं महापुरुषों में प्रकट होती दिखायी पड़ती हैं। इच्छा शक्ति के चमत्कृत कर देने वाले, कौतूहलवर्धक कृत्य आये दिन देखे जाते हैं। वह और कुछ भी नहीं मन की एकाग्रता का एक छोटा-सा पक्ष है। इसी की एक छोटी सामर्थ्य हिप्नोटिज्म को पश्चिमी मनःशास्त्रियों ने भी मान्यता दे दी है, उसके अभ्यास एवं सामर्थ्य के विकास के लिए कितने ही विद्यालय भी खुल गए हैं।

अमरीका के विस्कासिन विश्वविद्यालय में हिप्नोटिज्म योग की विधिवत् शिक्षा दी जाने लगी है। वाशिंगटन विश्वविद्यालय में अतीन्द्रिय सामर्थ्य पर शोध कार्य चल रहा है। बोस्टन के एक महाविद्यालय में एक रहस्य विद्या पढ़ायी जा रही है- ‘द रिटोरिक ऑफ डस्क’ ओकलैण्ड विश्वविद्यालय में इच्छा शक्ति तथा प्राण शक्ति के प्रयोग उपचार चल रहे हैं। कैलीफोर्निया विश्वविद्यालय के प्रो. इडेन का मत है कि भोगवादी संस्कृति से ऊबा हुआ मनुष्य राहत के लिए किसी अतिमानवी सामर्थ्य की खोज में भटक रहा है। पश्चिम के व्यक्ति में एक ऐसी व्याकुलता पैदा हो गयी है जो अनायास ही उसे पूरब की आध्यात्मिक विशेषताओं की ओर आकर्षित कर रही है।

मूर्धन्य मनःशास्त्रियों तथा कुछ वैज्ञानिकों ने भी परामानसिक शक्तियों का अस्तित्व स्वीकार कर लिया है। न्यूयार्क विश्वविद्यालय के मनःशास्त्री डा. मेहलान वैगनर ने एक सर्वेक्षण रिपोर्ट तैयार की है, जिसमें उल्लेख है कि अमरीका के 9 प्रतिशत विचारशील व्यक्ति अतीन्द्रिय शक्ति को एक वास्तविकता, 45 प्रतिशत एक प्रबल सम्भावना मानते हैं। फ्राँस, हालैण्ड, रूस, चेकोस्लाविया जर्मनी आदि के वैज्ञानिक भी परामानसिक शक्ति को एक सच्चाई के रूप में स्वीकार करने लगे हैं। प्रिंसटन विश्व विद्यालय के डा. राबर्ट डीन मानसिक शक्ति का पदार्थों पर प्रभाव का अध्ययन गम्भीरता से कर रहे हैं। नोबुल पुरस्कार विजेता डा. ब्रायन जोसेफसन के अनुसार परामनोविज्ञान के नये क्षेत्र के आविष्कार के बाद भौतिकी की नयी परिभाषा देनी होगी रूसी प्रोफेसर लियोनिद वासिलयेव ने हिप्नोटिज्म तथा टेलीपैथी पर अनेकों प्रकार के प्रयोग किये हैं। अपने अनुसन्धान निष्कर्ष में उन्होंने बताया है कि सुविकसित मानव मस्तिष्क विचार प्रसारण केन्द्र की सफल भूमिका सम्पन्न कर सकता है।

अति मानसिक शक्तियों के प्रति बढ़ती हुई मानवी अभिरुचि मनुष्य की उस सहज जिज्ञासा का परिचय देती है तो मात्र उथली बुद्धि के सहारे चेतना क्षेत्र के रहस्यों को जानना एवं पाना चाहती है। उन्हें चमत्कारिक इसलिए भी समझा जाता रहा है क्योंकि विज्ञान की यान्त्रिक तथा बुद्धि की पकड़ सीमा से वे बाहर हैं। उन्हें जानने, सामर्थ्यों को करतलगत करने की विद्या बुद्धि तथा उसके द्वारा आविष्कृत विज्ञान के पास नहीं है, हो भी नहीं सकती। कारण कि बुद्धि का क्षेत्र तर्क, विज्ञान का मैटर है। पदार्थ एवं तर्क से परामानसिक शक्तियाँ परे हैं। उनका भी एक विज्ञान है, वह विज्ञान भौतिक विज्ञान के नियमों पर नहीं, चेतना विज्ञान के नियमों पर आधारित है। ‘साइन्स ऑफ सोल’ आत्म विज्ञान के नाम से वह अध्यात्म जगत में जाना जाता है।

एक तथ्य सुनिश्चित रूप से जानना आवश्यक है कि पदार्थ विज्ञान की तरह चेतना विज्ञान के भी निश्चित नियम एवं विधान हैं। चमत्कार जैसी किसी कला का उस विधा में कोई स्थान नहीं है। बुद्धि उन्हें समझ नहीं पाती, इसलिए वह चमत्कार प्रतीत होता है। अन्यथा सब कुछ एक निर्धारित सिद्धान्त से परिचालित है। साथ ही यह बात भी हृदयंगम करने योग्य है कि हाथ पर सरसों जमाना, वस्तुएँ मँगा देना, बाल से भभूत निकालना जैसी बाल-क्रीड़ाओं का अतीन्द्रिय सामर्थ्य से कोई सम्बन्ध नहीं है। बाजीगरी के वे कृत्य सिद्धियों के नाम पर जहां कहीं भी आते हों, समझना चाहिए वहां अवश्य ही धूर्तता का समावेश है। अतीन्द्रिय सामर्थ्य का प्रत्यक्ष स्वरूप बढ़े हुए संकल्पबल, प्राण शक्ति, वाक् शक्ति के रूप में उभर कर सामने आता तथा परिष्कृत-प्रखर व्यक्तित्व के रूप में अपना परिचय देता है। प्राण बल, संकल्पबल, विचारबल ही समीपवर्ती तथा दूरवर्ती वातावरण तथा सम्बद्ध व्यक्तियों को प्रभावित करता उन्हें जबरन अभीष्ट दिशा में चल पड़ने को बाध्य करता है। ऐसे व्यक्तित्वों के अन्तःकरण उस निर्झर की तरह होते हैं जिनसे निस्सृत भाव सम्वेदनाएँ असंख्यों मुरझाये हृदयों को अपने अमृत रस से परितृप्त करती है। परिष्कृत, प्रखर उदात्त व्यक्तित्व ही अध्यात्म जगत की सर्वोपरि सिद्धि है- सबसे बड़ा चमत्कार है।


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