प्राण संचार- पात्रता (kavita)

May 1983

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प्राणवान जन पा पाते हैं, प्राणों का उपहार निष्प्राणों में हो पाता कब, महाप्राण संचार॥1॥

निश्चय ही महाप्राण के अनुदानों की बेला। महाप्राण को जीवित रहना भाता नहीं अकेला।

महाप्राण से स्रोत प्राण के अविरल फूट रहे हैं, वह उतना सहे जले जिससे जितना जाये झेला।

महाप्राण से सतत् प्रवाहित है प्राणों की धार। प्राणवान जन पा पाते हैं, प्राणों का उपहार॥2॥

भोग, वासनाओं में अपने प्राण न क्षरित करें। संयम और साधना द्वारा प्राण बलिष्ठ करें।

महाप्राण के प्राण सहेंगे, जागे वह क्षमता, महाप्राण के स्वर, प्राणों में हम प्रतिध्वनित करें।

महाप्राण के अनुदानों का तब होगा अधिकार। निष्प्राणों में हो पाता कब, महाप्राण- संचार॥3॥

प्राण-ऊर्जा अन्तरिक्ष का करे प्रदूषण दूर। यह तब ही सम्भव, जब हमें हों प्राणों से भरपूर।

घुटे जा रहे विकृतियों से मानवता के प्राण, वातावरण विषाक्त हुआ है और हुआ है क्रूर।

प्राणवान बन, करना है मानवता का उद्धार। प्राणवान जन पा पाते हैं, प्राणों का उपहार॥4॥

निष्प्राणों सी जीवनचर्या का कर डालें त्याग। प्राणवान बन, महाप्राण से चलो! करें अनुराग।

महाप्राण का और प्राण का संगम ही हो लक्ष्य, सुप्त प्राण में ऐसी अनुपम जीवट जाये जाग।

महाप्राण के अनुदानों से हो युग का श्रृंगार। निष्प्राणों में हो पाता कब, महाप्राण संचार॥5॥

*समाप्त*


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