सफर लम्बा था। रास्ते में कई विराम करने थे। एक जगह उनने प्यासे गधे को देखा जो मरणासन्न स्थिति में पड़ा था। उस क्षेत्र में कहीं दूर-दूर तक पानी था नहीं।
एकनाथ जी को दया आई। प्यासे गधे को देखकर उनने गंगाजल का एक घड़ा गधे के मुँह में डाल दिया। पीकर वह खड़ा हो गया, और बोला दूसरा घड़ा भी पिला दें तो बड़ी कृपा होगी। इसके बिना इस रेगिस्तान से पार नहीं जा सकूँगा।
सन्त ने दूसरा घड़ा भी पिला दिया और खाली काँवर एक ओर पटककर वापस चलने लगे। भगवान पर जल चढ़ाने का पुण्य न मिला, तो न सही एक प्यासे की जान तो बच गई।
गधा लौट पड़ा। बोला, सन्त आओ गले मिलें और एक दूसरे को निहाल करने पर प्रसन्नता व्यक्त करें।
आश्चर्यचकित सन्त का समाधान करते हुये गधे ने कहा-मैं रामेश्वरम् हूँ। सच्चे भक्त का दर्शन करने हेतु इस मार्ग पर पड़ा रहता था। पुजारी बहुत निकलते थे, पर दयालु सन्त आप ही मिले, मेरा दर्शन मनोरथ पूर्ण हो गया।
एकनाथ ने पीड़ित के रूप में भगवान् को देखकर नमन किया। बोले, अब में सदा आपके दरिद्रनारायण स्वरूप की ही पूजा करूंगा और पीड़ितों-पतितों की सेवा में निरत रहकर आपकी सच्ची भक्ति में संलग्न रहूँगा।