स्वप्नों में अतीत के संचय वर्तमान स्तर का पर्यवेक्षण

April 1983

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जो यथार्थ नहीं है, उसे सत्य की तरह प्रत्यक्ष देखने का नाम स्वप्न है। यों रात्रि में सोते समय मनः क्षेत्र के सम्मुख जो चित्र तैरते रहते हैं उन्हें स्वप्न कहते हैं। लोग जानने पर उनकी विसंगतियों का तारतम्य देखकर आश्चर्य करते हैं और असमंजस भी। आश्चर्य इस बात का जबकि उस प्रकार का घटनाक्रम घटित ही नहीं हुआ। अमुक पदार्थ, स्थान या व्यक्ति जब उपस्थित ही नहीं थे तो वे दीखते कैसे रहे। उनके साथ वार्त्तालाप एवं आदान-प्रदान कैसे चलता रहा? असमंजस इस बात का है कि अपना मस्तिष्क जो यथार्थ और असंगत के बीच भेदभाव करना भली प्रकार जानता है। दिनभर यही तो करता रहता है, फिर रात्रि में ऐसा क्या हो जाता है कि असंगत के प्रति सन्देह व्यक्त नहीं करता और उसे सत्य मानकर कस लेता रहता है। क्यों उसे मिथ्या नहीं बताता? क्यों उस मूर्खता को दुत्कार नहीं देता?

रात्रि स्वप्नों को ही आमतौर से चर्चा का विषय बनाया जाता है। सो कर उठने के उपरान्त उन्हें याद किया और दूसरों को बताया सुनाया जाता है जो देखा था। इतने पर भी यह रहस्य ही बना रहता है कि अकारण अनियमित यह असंगत फिल्म चलती क्यों रही, और उस समय उसके मिथ्या भ्रान्ति होने का आभास क्यों नहीं हुआ?

स्वप्न रात्रि में ही नहीं देखे जाते। दिवा स्वप्न भी होते हैं और वे जब शिर पर चढ़ते है तो यथार्थ के समान ही संगत, सम्भव और सही दीखते हैं। कल्पनाएँ कई बार इतनी रसीली हो जाती हैं कि उनमें तन्मय व्यक्ति यह तक सोच नहीं पाता कि जो सोचा जा रहा है सो अपनी वर्तमान परिस्थिति एवं योग्यता के अंतर्गत है भी या नहीं। उसे बोने से लेकर पकने तक में कितना समय लगेगा, कितना श्रम पड़ेगा और कितना सघन एवं सहयोग जुटाना पड़ेगा। यह सभी तथ्य तर्क जो बुद्धिमत्ता कहे जाते हैं-न जाने कहाँ चले जाते हैं और मनुष्य कल्पना मात्र को यथार्थता अनुभव करने लगता है। शेखचिल्ली की सर्वविदित कहानी में इसी स्थिति का आभास कराया गया है। यह दिवास्वप्न हुए।

दिवा स्वप्नों के और भी अनेक रूप हैं। परिस्थितियों से संगति न खाने वाली महत्वाकाँक्षाएँ साधनों की जाँच-पड़ताल न करके कुछ भी कर गुजरने की योजनाएँ भी दिवास्वप्न हैं जिन्हें सोचते समय तो बड़ा रस आता है। किन्तु जब यथार्थता से पाला पड़ता है तब प्रतीत होता है कि वैसा सम्भव था भी नहीं और बन भी नहीं पड़ा। प्रेम और द्वेष की स्थिति में सामने वाले की मनःस्थिति का-गतिविधियों का-भी एक कल्पना चित्र बन जाता है। जिसमें दूसरे सघन मित्र या कट्टर दुश्मन प्रतीत होते हैं। यह अपनी ही गढ़न्त है इसका यथार्थता से सीधा संबंध नहीं। जो सोचा या माना जा रहा था वह बहुत बार सर्वथा असत्य सिद्ध होते हैं, पर यह निष्कर्ष तो बाद का रहा। जिस समय अपनी मान्यताएँ आवेश में होती हैं तब तो कोई सामान्य मनःस्थिति का व्यक्ति भी देवता या राक्षस प्रतीत होता है। जबकि वस्तुतः वह वैसा होता नहीं।

देवी देवताओं के प्रति विश्वासी व्यक्ति भी कई बार अध खुली आँखों से उनके दर्शन झाँकी करते रहते हैं। कइयों पर भूत-पलीत का आवेश इस प्रकार आता है जिनमें उन्हें वस्तुतः सारा घटनाक्रम नितान्त सत्य प्रतीत होता है। यदि ऐसा न होता तो ऐसे लोगों को भूत इतना शारीरिक और मानसिक त्रास कैसे दे पाते। यह दिवा स्वप्नों की सृष्टि हैं। जो असंगत होते हुए भी अपने उभार काल में मनःक्षेत्र को एक प्रकार से स्व सम्मोहित बनाकर रख देते हैं। तब इतना तर्क काम नहीं करता कि अपने इस स्व रचित ताने-बाने का यथार्थता की कसौटी पर परखें और भ्रान्ति का जो आवेश नशे की तरह चढ़ा हुआ है उसका आवरण उतार फेंके।

फिर यह रात्रि स्वप्न या दिवा स्वप्न आते क्यों हैं? इनकी आवश्यकता ही क्या है? यह अनचाही विसंगतियाँ उपजती क्यों हैं? उनका उद्गम या सूत्र-संचालन होता कहाँ से हैं? इस संबंध में अधिक जानने की जिज्ञासा स्वाभाविक है। समाधान न होने पर नई कठिनाई यह खड़ी होती है कि मनुष्य उसका ऐसा कारण ढूँढ़ने के लिए चल पड़ता है जिसे समाधान न कहकर और भी उल्टी दिशा में घसीट ले जाने वाला भटकाव कहना चाहिए। स्वप्नदर्शी को सामान्यतः कौतूहल असमंजस ही होता है। पर उससे कोई प्रत्यक्ष हानि नहीं होती। किन्तु इस अनबूझ पहेली का भ्रान्त समाधान ढूँढ़ लेने पर समझदारी ही भटक जाती है और ऐसे निष्कर्षों पर पहुँचना पड़ता है जो वस्तुतः हानिकारक परिणाम प्रस्तुत कर सकें।

स्वप्न फल बताने वालों की कमी नहीं। वे उनका कुछ न कुछ औंधा सीधा अर्थ बता देते हैं। किसी शुभ या अशुभ को सम्भावना-देवी देवताओं की प्रेरणा-मृतात्माओं की फेरी, आत्मा का काल या देश की परिधि से बाहर जाकर अतीत या भविष्य का दर्शन जैसे कारण आमतौर से स्वप्न फल के रूप में बताये जाते हैं। पर वस्तुतः वे वैसे होते नहीं। इन फलिताओं पर विश्वास करने वाले वैसे होते नहीं। इन फलिताओं पर विश्वास करने वाले कई बार आशंकाग्रस्त, भयाक्रान्त एवं निराश होते देखे गये हैं और अपनी सामान्य क्षमता से भी उस हड़बड़ी में हाथ धो बैठते हैं और बने काम बिगाड़ते हैं। कइयों को गढ़ा खजाना, लाटरी का नम्बर या कोई विलक्षण भाग्योदय का आभास मिलता है। वे लोग भी बेपर की उड़ानें उड़ने लगते, मनमोदक खाते और सनकी स्तर के लोगों की पंक्ति में जा बैठते हैं। देवी देवताओं द्वारा स्वप्न में किसी की बलि माँगने और बदले में कोई बड़ा लाभ कराने का आश्वासन देने की बातें भी सूनी जाती रहती हैं। कई निरीह बालकों की हत्याएं इस प्रयोजन के लिए होती रहती हैं, फलतः वे स्वप्नदर्शी कठोर दण्ड पाते और भर्त्सना के भाजन बनते हैं। बलि दे दी पर मिला कुछ नहीं, उल्टी विपरीत टूट पड़ी।

यह हैं स्वप्नों के अवाँछनीय समाधान ढूँढ़ने के दुष्परिणाम। किसी के द्वारा जादू टोना किये जाने, घात लगाने की सूचना पाकर इन रात्रि स्वप्नों या दिवा स्वप्नों के सहारे कितने ही अनर्थ के गर्त में गिरते हैं। कइयों को इसी आधार पर ऐसे जंजाल में फँसते देखा गया है जिससे इन दृश्यों के पीछे वह विपत्ति झाँकती दीखती है जो चलती गाड़ी की पटरी पर से उतार दें। इस विपत्ति से बचने और स्वप्नों के तारतम्य के पीछे काम करने वाली यथार्थता के संबंध में अधिक गहराई तक उतरने और उनके वास्तविक कारण को समझने का प्रयत्न करना चाहिए।

स्वप्न वस्तुतः मानवी अचेतन का कुछ समय के लिए दबाव मुक्त होकर निर्द्वंद्व बच्चों की तरह मनचाहा खेल खेलने जैसा स्वेच्छाचार है। हमारे मनःक्षेत्र की यों हैं तो परतें पर उनमें से यहाँ चेतन और अचेतन के दो वर्गों को समझ लेने से काम चल जायगा। चेतन मस्तिष्क वह है जो कल्पनाओं में निरत रहता है और बुद्धिपूर्वक उसमें से काट-छाँट करने के उपरान्त जो उचित है उसका निर्धारण करता रहता है। इसे चेतन या कामकाजी मन कहना चाहिए। दूसरा वर्ग वह है जो अभ्यासों और संस्कारों से परिचालित होता है। शरीर की स्वसंचालित कार्य पद्धति का निर्धारण करता है। आदतों, रुझानों और स्वभावों के स्तर बढ़ाता है और उन्हें स्थिर रखता है। व्यावहारिक कामकाज में इसका उपयोग इच्छित रूप से तो नहीं होता, पर उसकी भूमिका व्यक्तित्व का स्तर देखते हुए जानी आँकी जा सकती है।

जागृत अवस्था में चेतन भाग सक्रिय रहता है। फलतः अचेतन को अपनी गतिविधियाँ शरीर चर्या जैसे कामों तक ही सीमित रखनी पड़ती है। चिन्तन होता तो उसमें भी है पर चेतन की घुड़दौड़ में उसे अवसर ही नहीं मिलता। फलतः उस समय तो चुप बैठा रहता है, पर जैसे ही बुद्धिमत्ता की पकड़ ढीली पड़ती है, अचेतन का अपनी उमंगों के अनुरूप एक नई स्वप्न सृष्टि रच लेने का अवसर मिल जाता है। यह विसंगत इसलिए होते हैं कि अचेतन मनःक्षेत्र में भूतकाल की अनेकानेक प्रिय अप्रिय, सार्थक निरर्थक स्मृतियाँ दबी पड़ी होती हैं। इनमें से जो भी हाथ पड़ जाती हैं उसी से स्वेच्छाचारी बालक की तरह खेलने लगता है। अचेतन की कुछ अपनी इच्छाएँ भी होती हैं। उन्हें असंख्य जन्मों की संग्रहित संस्कार पूँजी भी कहा जा सकता है। उनमें से अधिकाँश अतृप्त पड़ी रहती है। तृप्ति तो थोड़े ही प्रसंगों में मिल पाती है। परिस्थितियाँ हर इच्छा की पूर्ति के उपयुक्त कहाँ होती है। ऐसी दशा में अतृप्त मानस अपनी मर्जी के खेल खिलौने बनाता बिगाड़ता रहता है। यही है संक्षेप में रात्रि स्वप्नों का आधार। दिवा स्वप्नों का आधार है तो भिन्न, फिर भी एक बड़ी समता विद्यमान रहती है।

गहरी और हलकी नींद का अन्तर करने और उसके कारण स्वप्नों में कमीवेशी होने से संबंध में फ्रांसीसी शरीर विज्ञानी ब्रेमर ने बहुत से प्रयोग किये और निष्कर्ष निकाले हैं वे कहते हैं कि भीतरी अवयवों में कहीं पीड़ा तनाव सूचना या गतिरोध उत्पन्न होने से ऐसे स्वप्न आते हैं जिनमें अपने को या किसी अन्य को त्रास मिल रहा है। थकान, गर्मी, घुटन, मच्छर जैसे कारणों से भी नींद घटती है और ऐसे कारण सामने आते हैं जिनमें हैरानी तो बढ़ रही हो पर रास्ता न मिल रहा हो। मानसिक उद्वेग भी अशुभ स्वप्नों का एक बड़ा कारण होते हैं। चिन्ता, भय, शोक, आशंका, क्रोध, ईर्ष्या, प्रतिशोध जैसी विपन्नताओं से घिरी मनःस्थिति में युद्ध, आक्रमण, रक्तपात, षड़यन्त्र की झलक दिखाने वाले स्वप्न दीखते हैं। ब्रेमर का कथन है कि गहरी और थकान मिटाने वाली नींद लेने के लिए शारीरिक पीड़ाओं और मानसिक उद्विग्नताओं से पीछा छुड़ाना आवश्यक है।

अमेरिका में शिकागो विश्व विद्यालय के प्रोफेसर क्लीट मैन ने नींद और स्वप्न के संबंध में जीवन भर अनुसन्धान जारी रखे। उनके बाद उस प्रयास को उनके शिष्य एसेरिष्की ने जारी रखा। वे लोग सोते हुए लोगों की अन्तःस्थिति जानने के लिए इलेक्ट्रोड़ों का प्रयोग करते थे और देखते कि स्वप्नों की स्थित में मस्तिष्क का कौन-सा क्षेत्र किस प्रकार की हरकतें करता है। इसके लिए उन्होंने एक विशेष प्रकार के इलेक्ट्रो एन्सिफेलो ग्राफी’ के उपकरण बनाये और कि माँसपेशियों की स्थिति का गहरी हलकी नींद से सघन संबंध है। थक कर सोने वाले अपेक्षाकृत अधिक गहरी नींद लेते और हलके-फुलके स्वप्न देखते हैं। इसकी अपेक्षा दिमागी काम करने वाले या चिन्तातुर रहने वाले मनःसंस्थान को उलटे उत्तेजित किये रहते जिसके कारण नींद में बाधा पड़ती है। उनींदी जैसी स्थिति रहती है और ऐसे सपने देखते हैं जिनका कोई अर्थ नहीं होता। नींद के समय किसकी पुतलियाँ किस अनुपात से स्तब्ध या सक्रिय हैं इस आधार पर भी स्वप्नावस्था का अनुमान लगाया जाता है। इसके लिए आर.आई.एम. स्लीप के नाम से जाना जाता व इस आधार पर एक विशेष शोध पद्धति का निर्धारण किया गया है।

सिगमण्ड फ्रायड की प्रख्यात पुस्तक ‘दि इन्टर प्रिटेशन आव ड्रीम्स’ में इस निष्कर्ष पर पहुँचा गया है कि महत्वाकाँक्षाओं, चिन्ताओं और सम्वेदनाओं का भार बहन करने से जो लोग अपने को बचाये रहते हैं और हलकी-फुलकी जिन्दगी जीते हैं उन्हीं के लिए गहरी निद्रा का आनन्द ले सकना सम्भव होता है। उन्हें स्वप्न भी प्रसन्नतादायक दिखाई पड़ते हैं। ऐसी मनःस्थिति बनाये रखना किसी भी विचारशील के लिए सम्भव है। परिस्थितियाँ अपने हाथ में नहीं, पर इतना तो किया ही जा सकता है कि उन्हें संसार चक्र का स्वाभाविक विधान समझा जाय और घटनाओं को अधिक महत्व न देते हुए सन्तुलन बनाये रखा जाय।

ब्राउन, पीने, मेक्स ड्रगल, हेण्ड फील्ड, आदि स्वप्न विशेषज्ञ मनःशास्त्रियों के मन्तव्य इस संदर्भ में मिलते-जुलते हैं कि सपनों में शरीर की भीतरी स्थिति का उनमें संकेत और विवरण रहता है। यह साँकेतिक भाषा में कहा जाता है। उसे समझने के लिए बाल मनोविज्ञानियों की तरह अनुमान लगाने पड़ते हैं। छोटे बच्चे बोलना नहीं जानते पर अपनी स्थिति या आवश्यकता का परिचय अंग संचालनों के माध्यम से देते है। इस भाषा को जानने वाले समझ लेते हैं कि वह क्या चाहता है। ठीक उसी प्रकार स्वप्नों के दृश्य तो अनगढ़ होते हैं पर उनमें यह संकेत मिलता है कि शरीर के किसी अवयव में कोई विपन्नता तो नहीं है। इस आधार पर किसी रोग की स्थिति पनपने, सम्भावना उभरने का भी कुशल चिकित्सक अनुमान लगा सकते हैं।

पैथालाजी के आधार पर भीतरी अवयवों की स्थिति की जिस प्रकार जाँच पड़ताल की जाती है। उसी प्रकार स्वप्नों की साँकेतिक भाषा समझने वाले यह भी समझ सकते हैं कि भीतर ही भीतर क्या खिचड़ी पक रही है और क्या संकट उभारने की आशंका है। इस संबंध में रूसी मनःशास्त्री कासानकिन ने लगातार बीस वर्ष तक हजारों सपनों का विश्लेषण शरीरगत पर्यवेक्षण की दृष्टि से किये हैं और अपने निष्कर्षों का विवरण प्रस्तुत करते हुए बताया है कि रोगों की सामयिक परीक्षा एवं निकटवर्ती सम्भावना समझने में स्वप्नों की साँकेतिक भाषा बहुत साहसिक हो सकती है। उनमें ऐसे कितने ही सपनों का विवरण प्रकाशित किया है जिनमें इस प्रकार की अविज्ञान स्थिति को समझा गया और उपचार को सरल बनाया गया।

कैलीफोर्निया के डॉक्टर मार्टिन और इविंग ओले के प्रतिपादनों में कहा गया है कि रोगों की जड़ें पाचन और रक्त सम्पदा में ही नहीं होती वरन् उनका अधिकाँश आधार मनःक्षेत्र में पाया गया है। मानसिक विद्युत के प्रभाव से ही समस्त अवयव काम करते हैं। उसकी प्रखरता से अंगों की क्षमता सुव्यवस्थित रहती है और वे सही काम करके रोगों की जड़ें काटते रहते हैं, किन्तु इस विद्युत प्रवाह में शिथिलता या गड़बड़ी चल पड़े तो अवयवों की स्थिति पर उसका प्रभाव पड़ेगा और रुग्णता जहाँ-तहाँ से फूटने लगेगी। वे कहते हैं मनःस्थिति को समझना तथा उसका उपचार करना ही रोगों की अत्यन्तिक निवृत्ति का ठोस उपाय समझा जाना चाहिए। इस प्रतिपादन के आधार पर उन्होंने स्वप्नों को शारीरिक एवं मानसिक स्थिति की गहनता पर प्रकाश डालने वाला आधार कहा है।

डा. कासानकिल ने अपना उपचार ही स्वप्न विवरण के आधार पर आरम्भ किया और इसमें उन्हें आश्चर्यजनक सफलता भी मिली हैं।

इन निष्कर्षों से यह अनुमान लगता है कि स्वप्न शारीरिक स्थिति से प्रेरित होते हैं और अपने आप में ऐसी जानकारियाँ सँजोये रहते हैं जिनके आधार पर यह जाना जा सके कि स्वस्थता कितनी सुदृढ़ एवं कितनी दुर्बल है। उसमें कहाँ खराबी पड़ी है और रुग्णता का दौर कितनी गहराई में, किस क्षेत्र में, किस स्तर का चल रहा है?

इसी प्रकार मनःशास्त्री यह सोचते हैं कि मनुष्य जिस प्रकार के चिन्तन या क्रिया कलाप में व्यस्त रहता है उसकी प्रतिच्छाया, स्वप्न में अनबूझ पहेली बनकर दीखती है और अपनी स्थिति तथा आवश्यकता की जानकारी साँकेतिक भाषा में देती है। यदि इस भाषा को समझा जा सके तो किसी व्यक्ति की उसकी शारीरिक एवं मानसिक स्थिति का विश्लेषण किया जा सकता है। यह पता लग सकता है कि वह किस प्रवाह में बह रहा है इस आधार पर उसका भविष्य क्या बन सकता है और अशुभ की रोकथाम तथा शुभ की सम्भावना को फलित करने के लिए क्या किया जा सकता है?

इतने पर भी यह नहीं मान बैठना चाहिए कि स्वप्नों में भूतकाल के संचय एवं वर्तमान के पर्यवेक्षण के अतिरिक्त उनमें और कोई तथ्य है ही नहीं। स्वप्न जितनी गहरी परतों से उभर कर ऊपर आते हैं उसी अनुपात से वे वस्तुस्थिति की जानकारी देने का माध्यम बनते हैं।


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