आँगस्टी रैनक्वायर गठिया रोग से ग्रस्त थे, फिर भी उन्हीं मुड़ी-तुड़ी उंगलियों से उन्होंने चित्रकारी सीखी और वे विश्व विख्यात कलाकारों की श्रेणी में आ गए। कला साधना में तन्मय यह साधक कभी अपने मर्द की चिन्ता न कर निरन्तर स्वयं व अपने शिष्यों के साथ चित्र बनाया करता। सत्तर वर्ष से अधिक आयु हो जाने पर भी उसकी साधना में कोई कमी नहीं आयी। वे अपने दर्द को इस साधना में भुला देते थे। चिकित्सकों को आश्चर्य था कि कौन-सी शक्ति हैं जिसके कारण इतनी विकृतियों के बावजूद वे जीवित हैं।