मनुष्य में नई कलम लगने में देर नहीं

September 1982

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सामान्य पौधों में उच्चस्तरीय पौधों की कलम लगा कर विकसित कि स्म के वृक्ष वनस्पतियाँ उत्पन्न करने में पिछले दिनों उत्साहवर्धक सफलताएँ मिली हैं। एक ही पेड़ पर अनेक किस्म के फूल और अनेक किस्म के फल लगा देने जैसे चकित करने वाले प्रतिफल सामने आये हैं। देर से बढ़ने और छोटे एवं खट्टे फल देने वाले आम की कलम बनाने की विधि अब सर्व विदित है उस आधार पर थोड़े ही समय में बड़े आकार के एवं मीठे फल उत्पन्न किये जाने लगे हैं। चीकू जैसी अनेक कलमी जातियाँ अपने अनोखेपन का परिचय दे रही हैं। फूलों में भी यह प्रयोग सफल हुआ है। गुलाब की इतनी अधिक किस्में सामने हैं कि उनकी भिन्नता और विचित्रता देखते ही बनती हैं। शाक और धान्य के क्षेत्र में भी क्रान्तिकारी परिणाम उपलब्ध हुए हैं। पशु और पक्षियों की कितनी ही नई बिरादरी उत्पन्न कर ली गई हैं। इन प्रयोगों में घोड़े और गधे की कलम लगाकर खच्चर उत्पन्न करने का प्रयोग तो शताब्दियों पूर्व सफल हो चुका है। मुर्गे और मछलियों पर यह प्रयोग अत्यन्त उत्साह के साथ चल रहा है। गाय जैसे दुधारू पशुओं को अपने वंश परम्परा को द्रुतगति से उल्लंघन करने और एक नया वर्ग बना कर खड़ा कर देने में सफलता मिल चुकी हैं। जिन्हें कौतूहलवर्धक प्रयोगों में रस आता है वे प्राणियों के निर्माण में प्रजापति की भूलों को सुधारने और जीव सृष्टि को नये सिरे से गढ़ने का प्रयत्न कर रहे हैं। सफलताएँ उनकी हिम्मत को दिन दूना रात चौगुना बढ़ा रही हैं। कुत्तों की बिरादरी में छः इंच ऊँचाई जितने छोटे और गधे जितने ऊँचे किस्म के नये जानवर रच लिये गये हैं। यह कलम लगाकर उत्पन्न की जाने वाली बिरादरियाँ अपने पूर्वजों की तुलना में शारीरिक क्षमता और स्वभाव विशेषता की दृष्टि से आश्चर्यजनक मात्रा में भिन्न किस्म की बन रही हैं। कलम पर नई कलम, नई कलम पर नई कलम-चढ़ाते-चढ़ाते बात यहाँ तक पहुँची है कि आगे चल कर यह ढूँढ़ निकालना तक कठिन हो जाता है कि इसके मूल पूर्वज कौन थे और किस स्थिति में रह रहे थे? इसे कलम लगाने की विद्या की चमत्कारी सफलता कहा जा सकता है।

‘मानव कलम’ या जेनेटिक इंजीनियरिंग को अब विज्ञान में एक अति महत्वपूर्ण विषय माना जा रहा है। जे.बी.एस. हैल्डेन ने जो इस शताब्दी के सर्वाधिक प्रतिभाशाली जीव वैज्ञानिक माने जाते हैं, कहा था कि “यदि कुशलता से मानव कलम को तैयार किया जाये तो समस्त कमियों को दूर कर एक नया मानव बनाया जा सकता है।” फ्राँसीसी जीव वैज्ञानिक जीन रोंसे का विचार हैं-मानवी कलम का उपयोग व्यक्ति के खण्डित स्वरूप को नये स्वरूप में बदलकर उसे अमरत्व प्रदान करने के लिये किया जा सकता है।” इस कार्य में वरीयता प्राप्त करने वाले इस दशाब्दी के वैज्ञानिक हैं नोबुल पुरस्कार प्राप्त डा. जोशुआ लेडरबर्ग एवं यू. सी. एल. ए.के डा. एलोफ एक्सेल कार्लसन। डा. लेडरबर्ग का सुझाव है कि-शरीर कोशिका दान करने वालों का उपयोग उनके युवा अंकुरों को बढ़ाने के लिये किया जा सकता है। उनके अनुसार समान जीव वाले ऐतिहासिक व्यक्ति यों की कोशिकाओं को पुनर्जीवित करने के लिये मृतकों की भी मानव कलम लगायी जाए।

अब जीन संश्लेषण से जीवित व्यक्ति का प्रतिरूप, एक प्रतिमानव एक वैज्ञानिक सत्य है। अपनी बहुचर्चित पुस्तक ‘इन हिज इमेंज, क्लोंर्निग आँफ मैन’ में डेविड रोरविक ने इसका बड़ा आश्चर्य चकित करने वाला वर्णन किया है।

डा. रोरविक इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि सुविकसित स्तर पर मनुष्य की हू-बहू वैसी ही ‘ब्लूप्रिन्ट’ कापियाँ बनाकर तैयार की जा सकेंगी। तव गाँधी और जवाहरलाल के न रहने से किसी क्षति की आशंका न रहेगी क्योंकि उनके जीवन काल में ही अथवा मरने के बाद हू-बहू वैसे ही व्यक्ति सैकड़ों हजारों की संख्या में प्रयोगशालाएँ उत्पन्न करके रख दिया करेंगी। एक अन्य डा. रोस्टाक ने टिश्यू कल्चर अर्थात् “कोशिकाओं की खेती” के अगले दिनों सामान्य बागवानी की तरह प्रयुक्त होने की भविष्य वाणी की है। कार्नेल विश्व विद्यालय के डा. फ्रेंड्रिक सी स्टीबर्ड द्वारा गाजर की एक कोशिका को पूरी गाजर में विकसित करने में सफलता प्राप्त करने के बाद अब यह सोचा जाने लगा है कि मनुष्यों की भी ऐसी ही अभीष्ट पीढ़ियाँ उत्पन्न करने में कठिनाई नहीं होनी चाहिए।

विचारक माँल कम मेगरिज का कथन है कि सृष्टि के आरम्भ से लेकर अब तक प्रकृति के जितने रहस्य जानने में मनुष्य को सफलता मिली थी, उसकी तुलना में कहीं अधिक ब्रह्माण्ड का रहस्योद्घाटन इस शताब्दी में हुआ है। यह क्रम आगे आर भी तीव्र गति से चलेगा। इन उपलब्धियों में एक सबसे बड़ी कड़ी जुड़ेगी अभीष्ट स्तर के मनुष्यों के उत्पादन की। अगले दिनों शरीर की दृष्टि से असह्य समझी जाने वाली परिस्थितियों में रहने वाले मनुष्य उत्पन्न किये जा सकेंगे और विद्वान दार्शनिक कलाकार, योद्धा, राजनीतिज्ञ वैज्ञानिक, व्यापारी, श्रमिक आदि वर्ग न्यूनाधिक योग्यता के आवश्यकतानुसार उत्पन्न किये जा सकेंगे। तब मनुष्य सर्व शक्ति मान न सही असीम शक्ति सम्पन्न अवश्य ही कहा जा सकेगा।

कैलीफोर्निया इंस्टीट्यूट आफ टैकनोलाँजी के डाक्टर विलियम जेड्रेअर ने भविष्यवाणी की है कि ऐसे निरोधक तत्वों का जीन्स में प्रवेश कराया जा सकेगा जो पैतृक रोगों का उन्मूलन करके नयी स्वस्थ स्थापना के लिए रास्ता साफ कर सके। यह तो निवारण की बात हुई। इसका दूसरा पक्ष स्थापना का है। जिस प्रकार किसी अच्छे खेत में इच्छानुसार बीज बोकर अभीष्ट फसल उगाई जा सकती है उसी प्रकार परम्परागत अवरोधों को हटा सकने की सफलता के साथ एक नया अध्याय और जुड़ जाता है कि वंश तत्व में इच्छानुसार विशेषताओं के बीज बोये जा सकेंगे। अगली पीढ़ियों को वैसा ही उत्पन्न किया जा सके जैसा कि चाहा गया था।

वस्तुतः आनुवांशिक इंजीनियरिंग के रूप में एक नयी क्रान्ति विज्ञान जगत में हुई हैं। पिछले दिनों जीव-विज्ञानियों एवं आनुवांशिकी के अधिकाँश शोधकर्ताओं का ध्यान इस दिशा में विशेष रूप से नियोजित रहा। इसकी कल्पना करीब 15 वर्ष पूर्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक हरमन जोसेफ मूलर ने की थी। उन्हें आनुवांशिकी के क्षेत्र में अनुसंधान हेतु नोबुल पुरस्कार भी मिला। अपनी मृत्यु से 6 माह पूर्व शिकागो में सितम्बर 66 में हुये मानवीय आनुवांशिकी अधिवेशन में उपस्थित वैज्ञानिक समुदाय से उन्होंने अनुरोध किया था कि एक शुक्राणु बैंक की स्थापना की जानी चाहिये जिसमें शारीरिक विकास, मानसिक प्रखरता, एवं नैतिक दृष्टि से ऊँचे गण वाले प्रख्यात महापुरुषों के शुक्राणुओं को जमा किया जा सके। स्वस्थ, सुन्दर और सच्चरित्र भावी सन्तान जन्म ले, इसके लिये उपयुक्त माँओ का चयन कर कोल्ड स्टोरेज से इन शुक्राणुओं की वितरण व्यवस्था की जानी चाहिये।

क्रोमोज़ोम व जीन्स के क्षेत्र में महत्वपूर्ण शोध करने वाले नोबेल पुरस्कृत वैज्ञानिक क्रीक, जिनके नाम पर डी. एन. ए. की संरचना वाले मॉडल का नाम रखा गया है, तो तानाशाही व्यवस्था का समर्थन करते हुये इस प्रकार के प्रयोगों पर अपनी वैज्ञानिक मुहर भी लगा चुके हैं। उनका मन्तव्य है कि राष्ट्र को जैसी सन्तानों की आवश्यकता है, वैसी ही पीढ़ी वैज्ञानिक तैयार करें। इसके लिये वे सन्तानोत्पत्ति की स्वतन्त्रता अविलम्ब समाप्त करना चाहते हैं। उनके अनुसार किसी ऐसी वस्तु का आविष्कार होना चाहिये जिसे भोजन में मिला देने से ही सबकी प्रजनन शक्ति समाप्त हो जाये। इसका एण्टीठोट (विलोम) सिर्फ उन्हीं व्यक्तियों को दिया जाये जिनके बच्चों की शासन को आवश्यकता हैं।

वास्तव में ‘जीन्स’ की विस्तृत लीला जानने के लिये जितने अधिक वैज्ञानिकों ने अपने श्रम को इसमें नियोजित किया है, वह अपने आप में एक कीर्तिमान है। जीन्स के सूक्ष्म घटक डी. एन. ए. की संरचना ज्ञात हो चुकी है। जीन्स के चित्र लिये जा चुके हैं। डी. एन. ए. द्वारा प्रोटीन संश्लेषण में भाग लेने की सम्पूर्ण आनुवांशिक संहिता को जान कर अब सीधे उसी पर प्रयोग किये भी जा रहे हैं।

ब्रिटेन की इण्टरनेशनल साइन्स राइटर्स ऐसोसिएशन के अध्यक्ष जी. आर. टेलर थे अपनी पुस्तक “दि वायो लाँजिकल टाइम बम’ को जीव विज्ञान की नवीनतम उपलब्धियों करते हुए यह बताया है कि वह दिन दूर नहीं तरह उगाई जा सकेंगी और उन्हें कलम लगाकर कुछ से कुछ बनाया जा सकेगा।

इस संदर्भ की नई उपलब्धियाँ ऐसी सम्भावना का द्वारा खोलती हैं कि मानव भ्रूण का पालन किसी उपयुक्त प्रकृति की पशु मादा के पेट में पालन करा लिया जाय। इससे उस बच्चे में मनुष्य और पशु के सम्मिलित गुण विकसित हो जायेंगे। इस प्रयोगों से आरम्भ में थोड़े से बच्चे बनाने में ही अधिक परिश्रम पड़ेगा। पीछे तो कृत्रिम गर्भाधान विधि से वे थोड़े ही बच्चे तरुण होकर सहस्रों बच्चे पैदा कर देंगे। एक स्वस्थ साँड़ के द्वारा जीवन भर का संचित शुक्र 50 हजार तक बच्चे पैदा कर सकता है। विशेष रासायनिक प्रयोगों से उत्तेजित मादा डिम्बों द्वारा एक साथ 5 तक सन्तानें उत्पन्न करायी जा सकती हैं। नयी मनुष्य जाति को जल्दी बढ़ाने के लिए ऐसे ही तरीके काम में लाये जायेंगे साथ ही पुरानी पीढ़ी को समाप्त करके उन सबका बन्ध्याकरण किया जायेगा।

आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के डा. जे. बी. गर्डन ने मेंढ़कों पर नई नस्ल पैदा करने के लिए कल में लगाने का प्रयत्न किया है। इस कार्य में दो अमेरिका वैज्ञानिक डा.व्रिग्स और केन्ग उनके सहयोगी रहे हैं। इस प्रयास में उन्हें आशातीत सफलता मिली है। इन प्रयोगों में वे ऐसे नयी किस्म के-नई नस्ल के मेढ़क पैदा करने में समर्थ हुए जो अपने पूर्वजों की तुलना में कही अधिक सुन्दर, बलिष्ठ, सौम्य एव बुद्धिमान थे। वैज्ञानिक मण्डली ने इसी प्रकार के प्रयोग अन्य छोटे-छोटे जीवों पर भी किये हैं और उनमें से प्रायः सभी में सफलता मिली हैं।

संसार भर में चल रहे प्राणियों की नस्ल सुधारने के प्रयत्नों में भारी दिलचस्पी ली जा रही हैं और भरपूर कोशिश की जा रही है। पेड़-पौधों पर यह प्रयोग बहुत पहले से ही सफल होता रहा है। कलमी फलों की नस्लें सर्वविदित लोकप्रिय और लाभकारी सिद्ध हो रही है। अब प्राणियों को भी अधिक उपयोगी बनाने के प्रयत्न उसी उत्साह से चल पड़े हैं जैसे कि कुछ समय पूर्व फूलों और शंकर जातियाँ उत्पन्न करने के लिए चले थे।

वंशानुक्रम विज्ञान के महा मनीषी रार्क्ट एम. शेस्मीरे ने भविष्य’ वाणी की है। अगले दस साल में मनुष्यों की कलम लगाने और आज की तुलना में अधिकतम समुन्नत पीढ़ी पैदा करने में सफलता मिल जायेगी।


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