मनीषा के भविष्य का शोध निमन्त्रण

September 1982

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जीवन निर्वाह के लिए आवश्यक जानकारी भगवान ने सभी प्राणियों को समान रूप से दी है। उदर पोषण, वंश-वृद्धि आत्म रक्षा, क्रीड़ा विनोद की जीवनचर्या के साथ अविच्छिन्न रूप से जुड़ी हुई आवश्यकताओं की पूर्ति सभी जीवधारी कुशलतापूर्वक करते रहते हैं। इस परिधि से आगे बढ़ने पर ज्ञान विज्ञान का क्षेत्र कहते हैं। मनुष्य ने आरम्भ से ही इसमें प्रवेश करने का प्रयत्न किया है और उस पुरुषार्थ का समुचित प्रतिफल भी पाया है।

सुविधा सम्पादन को प्रधानता देते हुए ज्ञान विज्ञान की खोज होती रही है। अब तक की प्रगति उसी प्रयास का प्रतिफल है। इतने पर भी यह सोचना बाकी है कि प्रकृति के अनन्त रहस्यों में से ऐसा कुछ अधिक उपलब्ध कर सकने के लिए किस प्रकार प्रयत्न किया जाय तो सुविधा सम्पादन तक ही सीमित न हो, वरन् मानवी गौरव के अनुरूप उसे विशिष्टता एवं वरिष्ठता भी प्रदान कर सके।

भगवान महान है। उसका संसार भी एक से एक अद्भुत विशेषताओं ओर महानताओं से भरा पूरा है। प्रश्न खोज पर्यवेक्षण और रहस्योद्घाटन के निमित्त किये जाने वाले प्रयत्न पुरुषार्थ का है। यदि वह जुट सके— अपने क्षेत्र को व्यापक बना सके तो प्रकृति का अन्तराल कुरेदने के लिए अभी असंख्यों क्षेत्र सूने पड़े हैं। उनमें से प्रत्येक ऐसा है जो विकसित स्थिति में पहुँचने पर न केवल सुविधा संवर्द्धन की-अभावों को पूर्ण करने की-संकटों को निरस्त करने की आवश्यकता पूर्ण करता है वरन् मनुष्य की उस वरिष्ठता तक भी पहुँचाने में समर्थ है जिसका कि वह युवराज होने के नाते अधिकारी भी है।

शरीर के विभिन्न अवयव एक दूसरे से भिन्न प्रकार की आकृति प्रकृति के हैं। साधारणतया वे जिस निमित्त बने हैं उसी कार्य को पूरा करते हैं। किन्तु कई बार ऐसा भी होता है कि एक अवयव का काम दूसरा अंग करने लगे। सामान्य क्रम से भिन्न होने के कारण यह आश्चर्य तो लगता है किन्तु शरीर संरचना के मर्म को जानने वाले इसे असम्भव नहीं मात्र व्यतिक्रम मानते हैं। उनका कहना है कि हर जीव कोश में स्वतन्त्र शरीर बनाने की क्षमता है। इस क्षमता में यह तथ्य भी सम्मिलित है कि सभी अवयव एक ही मूल चेतना के साथ अविच्छिन्न रूप से जुड़े हैं। अतएव किसी अंग से दूसरे अंग वाली क्षमता जग पड़े और हाथ पैरों का काम करने लगे तो असम्भव नहीं कहना चाहिए। इस तथ्य को प्रभावित करने वाली अनेकानेक घटनाएँ जहाँ-तहाँ प्रकट होती रहती हैं।

मिशिगन, अमेरिका में एक ऐसा व्यक्ति है जो मुँह से साँस खींचकर आँखों से निकाल सकता है। इन सज्जन का नाम है-एल्फ्रड लागेवेन। इस तरह की अनुभूति उन्हें अपने आप तब हुई जब एक दिन उन्होंने मुँह में हवा भर गाल फुलाया तो अनायास ही ऐसा लगा कि वह हवा आँखों से निकल रही है। आँखों के आगे हाथ लाकर देखा तो हवा की स्पष्ट अनुभूति हुई। इसे वहाँ उपस्थित अन्य लोगों ने भी अनुभव किया।

एक अवयव के खराब हो जाने पर दूसरे काम में लगाने पर उसकी संस्थान पूर्ति दूसरे अवयव से कराई जा सकें तो उसे शारीरिक विशिष्टता की दृष्टि से अतीव उपयोगी समझा जा सकता है।

कान कुछ सीमित लम्बाई के ध्वनि प्रवाह ही सुन पाते हैं किन्तु शरीर में ऐसे अन्यान्य कलपुर्जे विद्यमान हैं जो श्रवण शक्ति से ऊँची या नीची आवाज सुनकर संसार के अनेक क्षेत्रों में, अनेक हड्डियों में, अनेक स्तर की पकती रहने वाली खिचड़ी रसास्वादन कर सके। रेडियो यन्त्र के माध्यम से मात्र प्रेक्षक केन्द्रों से-निर्धारित फ्रीक्वेंसी पर, निर्धारित ऊर्जा के साथ प्रेषित ध्वनि प्रवाह ही सुना जा सकता है किन्तु शरीर में ऐसे पुर्जे भी विद्यमान हैं जो यदि जग सके तो अपनी आवश्यकता एवं रुचि वाली ध्वनियों को अनन्त आकाश में से पकड़ना और उस आधार पर बड़ी-बड़ी योजनाएँ पूर्ण कर सकना सम्भव हो सकता है।

चेकोस्लोवाकिया की राजधानी प्राग के दो नवयुवकों के बारे में एक बड़ी विचित्र बात सुनने को आई। जब दोनों जोर-जोर से साँस लेते हैं तो उनके शरीर के अन्दर से विचित्र प्रकार की ध्वनियाँ और संगीत आने लगता है, जो किसी समीपवर्ती रेडियो स्टेशन की ब्राँड क्रास्टिग भी हो सकती है। दोनों युवक जोर-जोर से साँस लेते समय किसी लाउडस्पीकर के सिरे का स्पर्श करते थे तो आवाज इतनी ऊँची हो जाती थी कि सुनने वालों को ऐसा लगता था, जैसे कोई रेडियो पूरा खोल दिया गया हो।

पशु पक्षी और पेड़ पौधे भी अपने सहचर हैं। सबके समन्वित सहयोग से मानवी वरिष्ठता बनी और निभ रही है। इस क्षेत्र में भी एक से एक बढ़ी-चढ़ी अलौकिकताएँ विद्यमान हैं। अभ्यस्त जानकारी के अतिरिक्त भी बहुत कुछ ऐसा ही है जो प्रकृति के अन्तराल में ही नहीं पशु पक्षियों में भी पाया जाता है। उन रहस्यों का समझना और अविज्ञातों को हस्तगत करना, अगले दिनों विज्ञान का प्रयास पक्ष होना चाहिए।

साथी जानवरों में कुत्ते का महत्वपूर्ण स्थान है। उसे अभी मात्र चौकीदारी के लिए प्रयुक्त किया जाता है। पर उसकी विशिष्ट घ्राण शक्ति पर जब दृष्टि गई तो चोरों का, चोरी के सामान के पता लगाने के लिए उनसे जासूसों जैसा काम लेना भी चल पड़ा है। आगे चलकर उसकी अन्य अतीन्द्रिय क्षमताओं का भी उपयोग किया जा सकता है।

एक घटना आस्ट्रेलिया की इससे भी विचित्र है। अपने मृत मालिक की ताबूत में रखी हुई लाभ की पहरेदारी उसके पालतू कुत्ते ने आरम्भ कर दी। किसी को भी वह पास फटकने नहीं देता। जो भी व्यक्ति ताबूत के नजदीक जाता उसे ही वह काट खाता। तीसरे दिन जब ताबूत कब्रिस्तान ले जाया जा रहा था तो कुत्ते ने कंधा देने वालों के पैर काट लिए। इस पर ताबूत उनके हाथों से छूटकर नीचे गिर पड़ा और टूट गया। देखा गया कि मृतक की साँसें चल रही हैं। उसे वापस घर ले जाया गया। तब लोगों ने समझा कि कुत्तों को अपनी अतीन्द्रिय शक्ति से मालिक के जीवित होने की बात पहले ही मालूम हो गई थी।

पर्वतारोही मनुष्य अनेक हुए हैं, पर एक कुत्ता भी ऐसा हुआ है जो अपने मालिकों के साथ जीवन भर आश्चर्यजनक ऊँचाई की हिमाच्छादित चोटियों पर चढ़ता रहा। यह अल्पाइन निवासी कूलिज का पालतू था। नाम था उसका ‘तिशिन’। वह मात्र 11 वर्ष जिया पर इसी अवधि में उसने 30 ऊँची चोटियाँ चढ़ी और 36 दर्रे पार किये। कुत्ता जब तक अल्प वयस्क ही था वह तिशिन दर्रे पर चढ़ जाने में सफल हुआ। इसी आधार पर उसका नाम भी रखा गया।

मनुष्य की तरह पालतू कुत्तों को भी बुद्धिमान, जीवन वाला, पराक्रम, साहसी बनाया जा सके तो वे एक समर्थ साथी सहयोगी का काम दे सकते हैं।

पशुओं के श्रम एवं शरीर का ही अब तक लाभ उठाया जाता रहा है। किन्तु उनकी विशेषताओं में से भावना वाला अंश अभी कार्यान्वित न होने के कारण प्रसुप्त ही पड़ा है। यदि उसे उभारा जा सके तो इस परिकर से भी स्नेह सौजन्य का-स्नेह सद्भाव का वैसा ही आनन्द उपलब्ध हो सकता है जैसा कि घनिष्ठ आत्मीय जनों की मित्रता सद्भावना से पाया जाता है।

बर्दवान जिले के चाँदमारी काँलोनी, आसनसोल के एक अध्यापक श्री रामनारायण सिंह के यहाँ 30 अक्टूबर, 1969 को एक गाय ने एक बछड़े को जन्म दिया। बछड़ा बड़ा ही विलक्षण प्रकृति का था। उसमें मानवी बच्चे के से गुण विद्यमान थे। बछड़े के मानवेत्तर व्यवहार व स्वभाव को देखकर लोग उसे पूर्व जन्म का भावुक मनुष्य बताते थे।

बछड़ा आदमी को गोद में बच्चे की तरह सोने का प्रयत्न करता था। जब कोई उसे प्यार से सुलाता तो आनन्द विभोर होकर ऐसी मुद्रा में चला जाता मानो होश-हवास खो गहरी नींद सो रहा हो। अपने मालिक की गोद में किसी बच्चे को बैठा देखता तो उसे उतारकर ही छोड़ता और उसकी जगह खुद बैठ जाता। यों खाता तो घास भी था, पर जब थाली में मनुष्य का भोजन दिया जाता तो खाने की तरकीब और सलीका देखते ही बनता। पास बैठे मनुष्य को हल्का धक्का देकर यह इशारा करता कि उसे घास या रोटी हाथ से खिलाई जाये। बिना दाल-साग के साथ वह रोटी कभी नहीं खाता। गृह स्वामिनी उसके प्रति आवेश प्रकट करती तो घर के एक कोने में सटकर बैठ जाता और आँसू बहाने लगता। यों प्रसाद में तुलसी के पत्ते वह प्रसन्नता पूर्वक खाता किन्तु आँगन में लगे तुलसी के गमले पर उसने कभी मुँह नहीं लगाया । पूजा के समय शाँति पूर्वक आकर बैठ जाता। उस वक्त रस्सी से बँधा होता तो उसे तोड़ने का प्रयत्न करता और देव स्थान तक पहुँचने की कोशिश करता।

पक्षियों से न जाने क्या-क्या काम लिये जा सकते हैं। प्राचीन काल में कबूतर संदेश वाहक का काम करते थे और पत्रों को इधर से उधर पहुँचाते थे। उनकी गतिविधियों को देखकर मुख-विद्या के आधार पर भावी सम्भावनाओं का पूर्वाभास प्राप्त किया जाता था।

वनस्पति जगत में सर्वत्र उपलब्ध होने वाली और सबसे छोटा समझी जाने वाली इकाई घास है। पशुओं का प्रमुख आहार वही है। वह प्रचुर परिमाण में सर्वत्र उपलब्ध भी है। अगले दिनों मनुष्य के लिए आहार जुटाने में-खाद्य समस्या के समाधान में उसकी महती भूमिका हो सकती हैं। पशुओं की तरह मनुष्य भी उस पर भली-भाँति निर्वाह कर सकते हैं। अन्न, शाक आदि वस्तुतः एक विशेष प्रकार की घास ही हैं। चिकित्सा उपचार में काम आने वाली जड़ी-बूटियों में धरती के अतिरिक्त और क्या कहा जाय?

साधारणतया 200 ग्राम घास से उतनी शक्ति मिलती है, जिससे किसान आधा घण्टा फावड़ा चला सकता है, यात्री डेढ़ घण्टे तक पैदल चल सकता है, लुहार आधा घण्टा कुल्हाड़ी चला सकता है और स्त्री कोई भी काम तीन घण्टे तक करती रह सकती है। प्रयोग से देखा गया है कि 770 बीघे जमीन की घास सूर्य से एक दिन में जो शक्ति प्राप्त कर लेती है वह 20,000 टन टी. एन. टी. अर्थात् पूरे एक परमाणु बम के बराबर होती है।

सूर्य की ऊर्जा और धरती की रासायनिक उर्वरता से घास का कलेवर भरा पूरा है। उसका उत्पादन अभिवर्धन भी कठिन नहीं। प्रश्न केवल इतना ही है कि उसे गले में उतारने योग्य स्वादिष्ट और पेट के द्वारा अपनाये जा सकने योग्य सुपाच्य किस प्रकार बनाया जा सकता है। विज्ञान के लिए इसका मार्ग खोज निकालना कठिन नहीं होना चाहिए।

वन्य पशुओं को दूध श्रम परिवहन से लेकर सरकस के विचित्र क्रिया-कलापों तक के लिए प्रशिक्षित कर लिया गया है। अन्न और फल प्राकृत रूप में वैसे नहीं थे जैसे कि इन दिनों अपने विकसित स्वरूप में है। पेड़ों में कलम लगी है और एक में ही अनेक रंगों के पुष्प अनेक स्वाद आकारों के फल उगा सकना सम्भव हो गया है। नारियल और पपीते पर जड़ में ही फल लदने लगे हैं। इस कौशल को वृक्षों का प्रजातियाँ सुधारने में प्रयुक्त किया जा सकता है। कई वृक्ष पाये जाते हैं जिनकी विशेषता यदि अन्यान्यों में भी उत्पन्न की जा सके तो वे अब की अपेक्षा कहीं अधिक उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं।

शीत ऋतु में आमतौर पर सभी बड़े वृक्ष पतझड़ के शिकार होते और ठूँठ जैसे दीखते हैं। फूलता तो उन दिनों कोई भी नहीं। किन्तु इटली का काले काँटे वाला ‘ब्लैक थार्न’ वृक्ष इसका अपवाद है। वह जब अत्यधिक ठण्डक का मौसम होता है उन्हीं दिनों पूरी तरह फूलता हैं और उसकी सभी टहनियाँ सुन्दर फूलों से लदी दीखती हैं।

दक्षिण अफ्रीका के वेलाविस्किया क्षेत्र में पाया जाने वाला एक वृक्ष ऊँचा कम ओर मोटा अधिक होता है। वह सौ वर्षों से भी अधिक समय तक जीवित रहता है और पशुओं के चरने योग्य घास जैसी पत्तियों से लदा रहता है। एक दिन तोड़ने पर उसकी पत्तियाँ दूसरे दिन फिर ज्यों की त्यों हरी भरी बन जाती हैं।

आम का पेड़ 15−20 फीट ऊँचा बढ़ने के बाद ही बौराया और फल देता है। लेकिन जबलपुर में किसी व्यक्ति ने कुछ माह पूर्व आम का एक पौधा लगाया। यह पौधा दो फीट ऊँचा बढ़कर ही आम के फल देने लगा। कुछ महीनों की आयु वाले इस पौधे में 80 आम लगे। इस आम के पौधे को देखने के लिए दूर-दूर से हजारों लोग आये। कोई भी यह नहीं समझ सका कि इतने छोटे पौधे में फूल-फल कैसे लग आये।

पशुओं को अधिक उपयोगी बनाने का मनुष्य ने असाधारण लाभ अर्जित किया है उस कौशल को वृक्ष वनस्पतियों के क्षेत्र में प्रयुक्त करने का ठीक यही समय है।

मानवी काया का मात्र एक ही कलेवर सूक्ष्म शरीर काम में आता है, शेष छः कलेवर अविज्ञात एवं प्रसुप्त स्थिति में उपेक्षित अशक्त स्थिति में पड़े रहते हैं। उन्हें समझा और परिपुष्ट बनाया जा सके तो मनुष्य अब की अपेक्षा कम से कम सात गुना अधिक समर्थ हो सकता है।

शरीर बाहर से एक दीखते हुए भी उसके भीतर सन्तरे की तरह पाये जाने वाले स्वतन्त्र घटकों की तरह सात शरीर पाये जाते हैं। इन्हें ब्रह्माण्ड व्यापी प्रकृति के सात शरीर भी कह सकते हैं। (1) दैवीय-डिवाइन (2) सृष्टि के प्रथम जीव से सम्बद्ध-मोनेडिक (3) परमाणु-एटामिक आत्मिक-स्प्रिचुअल (5) मानसिक-मेन्टल (6) सूक्ष्म-एस्ट्रल (7) भौतिक- फिजीकल-इन सातों के भीतर ही समस्त अगणित सिद्धियाँ समृद्धियाँ समाविष्ट हैं।

ज्ञान और विज्ञान को भूतकाल की तरह मात्र सुविधा सम्पादन के इर्द-गिर्द परिभ्रमण नहीं करते रहने देना चाहिए वरन् उन असंख्यों कार्य क्षेत्रों को खोजने उभारने में लगाना चाहिए जो अब तक की उपलब्धियों की तुलना में असंख्य गुने अधिक सशक्त समृद्ध एवं समुन्नत हैं।


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