काया को पंच तत्वों से बना हुआ माना जाता है। अब तत्वों की संख्या एक सौ से भी ऊपर चली गई है और पदार्थों की संरचना में अनेकानेक इकाइयों का अस्तित्व सिद्ध किया गया है। रासायनिक पदार्थ एक दूसरे के संयोग से बनते हैं और उस सम्मिश्रण में मात्रा तथा घटकों के समावेश को देखते हुये उनकी संख्या इतनी जा पहुँचती है जिसे प्रकारान्तर से अगणित कहा जा सके।
जीवन निर्माण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने वाले प्रारम्भिक तत्वों के अतिरिक्त जीवधारियों में कुछ धातुओं के धनात्मक आयरन भी पाये जाते हैं। इनमें सोडियम, पोटैशियम, मैग्नीशियम, कैल्शियम मुख्य हैं। ऋणात्मक आयनों क्लोरीन (क्लोराइड) प्रमुख है। इनके साथ ही मैंगनीज, लोहा, कोबाल्ट, ताँबा, जिंक की अल्प मात्रा विद्यमान रहती है। कभी-कभी दुर्लभ रूप में बोरान, ऐल्यूमीनियम, वैनेडियम, माँलीब्डेनम एवं आयोडीन भी पाये जाते हैं।
शरीर में सबसे अधिक मात्रा पानी की है। यह जलीय अंश ही कोमलता, स्फूर्ति एवं सजीवता का प्रतीक है। यह अंश जैसे-जैसे घटने लगता है वैसे ही मनुष्य कठोर, कुरूप, आलसी एवं जराजीर्ण होने लगता है। एक नियत सौभा से अधिक कमी हो जाने पर तो दुर्बलता, रुग्णता बढ़ती और मरण की बड़ी निकट आ पहुँचती है।
भिन्न-भिन्न जीवों में पानी की प्रतिशत मात्रा भिन्न-भिन्न होती है। पूर्ण रूप से विकसित मानव शरीर का 70 प्रतिशत भार उसमें पाये जाने वाले पानी के कारण होता है। उसी प्रकार चूहे एवं बैक्टीरिया में क्रमशः 73 एवं 80 प्रतिशत भार उनके शरीर में विद्यमान जल के कारण होता है। सीलन्ट्रेट में जल का भार कुल भार का 98 प्रतिशत से भी अधिक होता है। विकसित एवं जटिल जीवधारियों में जो अंग अधिक प्रयोग में आते हैं उसमें जल की मात्रा अन्य अंगों की अपेक्षा अधिक होती है जबकि कंकाल मात्र 22 प्रतिशत ही जल रखता है। माँसपेशियों में 766 प्रतिशत हृदय में 793 प्रतिशत, मस्तिष्क के सेरीब्रल हेमी-स्फोयर में 833 प्रतिशत पानी की मात्रा पायी जाती है। गर्भस्थ शिशुओं में जब उनके विभिन्न अंगों का निर्माण कार्य चल रहा होता है, जल की मात्रा 90 प्रतिशत से भी अधिक होती है जबकि वयस्कों में घटकर यह 50 प्रतिशत हो जाती है।
जल में ताप ग्रहण करने की बहुत ही अधिक क्षमता होती है, परन्तु इसकी ताप परिवहन क्षमता अत्यन्त कम होती है। इसके इसी गुण के कारण सागरों-महासागरों का तापक्रम स्थिर रहता है। जल की इसी विशेषता के कारण विभिन्न प्रकार के जीव-जन्तुओं में उनके शरीर का तापमान प्रायः सदैव स्थिर रहता है।
प्रसिद्ध रूसी जीवशास्त्री एम. एम. कामशिलोव का कहना है कि जीवन की उत्पत्ति में जल का निश्चय ही महत्वपूर्ण योगदान रहा होगा। उनका कथन है कि जीवों की उत्पत्ति के आरम्भिक काल में जब कि उनके चलने-फिरने के अंगों का विकास नहीं हुआ होगा जल विभिन्न लवणों एवं पोषक तत्वों के वाहक के रूप में अपनी भूमिका निभा रहा होगा। जीवधारियों में इसका मुख्य काम विभिन्न प्रकार के लवणों एवं पोषक तत्वों को एक अंग से दूसरे अंग में पहुँचाने का एवं हानिकारक और अनुपयोगी पदार्थों को शरीर से बाहर निकालने का है।
कैपीलरी ऐक्शन जल का एक प्रमुख गुण है। इसकी इस प्रक्रिया के माध्यम से ही पौधे विभिन्न प्रकार के खनिज लवण एवं पोषक तत्व पृथ्वी से प्राप्त करते हैं। इसकी प्रकाशीय विशेषता के कारण इसके हजारों फीट नीचे भी फोटो-सिन्थेसिस प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया यथावत् हो सकती है। ये सारे तथ्य इस बात के प्रमाण हैं कि जल जीवन का एक महत्वपूर्ण घटक है, इसके बिना जीवन सम्भव नहीं हो सकता। जीवनोत्पत्ति में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका होना संदिग्ध नहीं लगता।