Quotation

March 1982

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

शब्दादिभिः पञ्चभिरेव पञ्च, पञ्चत्वमापुः स्त्रगुणेन बद्धाः। कुरंगमातंग पतंगमीन भृंगा नरः पञ्चभिरञ्चितः किम्॥ –विवेक. 78

अर्थात्–’ हरिण, हाथी, पतिंगा, मछली और भौंरा’–ये अपने-अपने स्वभाव के कारण शब्दादि पाँच विषयों में से केवल एक-एक से आसक्त होने के कारण मृत्यु को प्राप्त होते हैं, तो फिर इन पाँचों विषयों से जकड़ा हुआ, असंयमी पुरुष कैसे बच सकता है। (उसकी तो दुर्गति सुनिश्चित ही है।)


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles