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March 1982

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प्राणापानव्णनोदानसमाना भवत्यसौ प्राणः। स्वयमेववृत्तिभेदात् सुवर्णहलिलादिवत्॥ –विवेक.97

अर्थात्–जिस प्रकार सुवर्ण और जल अनेक कार्यों व रूपों के आधार पर अनेक नामों (कंगन, कुण्डलादि, बर्फ, भाप आदि) से जाने जाते हैं, उसी प्रकार ‘प्राणी भी वृत्ति भेद–कार्य भेद–से अनेक नामों–प्राण, अपान, व्यान, समान और उदान–से जाना जाता है।


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