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August 1982

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सर्वनाशे समुत्पन्ने र्ह्यध त्यजति पण्डितः। अर्द्धेन कुरुते कार्य सर्वनाशों हि दुस्तरः॥

अर्थात्-सर्वनाश होने का अवसर आ जाय तो बुद्धिमान पुरुष उसमें से आधा भाग स्वयं ही त्याग दिया करते है। ऐसे समय में ऐसा सभी का करना चाहिए क्योंकि अवशिष्ट आधे से कार्य किया जा सकता है। सबका नाश तो बड़ा दुस्तर है क्योंकि फिर कुछ भी साधन ही नहीं रहता है।


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