Quotation

August 1982

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सृजन दूसरा पक्ष है। ध्वंस प्रत्यक्ष है तो सृजन परोक्ष। परोक्ष के गर्भ में पल रही सृजन की गतिविधियों की जानकारी समय से पूर्व देना तो उचित नहीं। पर इसमें आपत्तिकाल के स्वरूप को समझकर अपनी भूमिका का निर्धारण कर लेना भी एक युग धर्म है। ज्योतिर्विद्-भविष्य वेक्त क्या कहते हैं, उस उलझन में पड़ने के बजाये यह देखा जाय कि प्रत्यक्ष में क्या घट रहा है और परोक्ष में उसे निरस्त करने की जो प्रक्रिया चल रही है, सामूहिक पुरुषार्थ द्वारा उसे कैसे समर्थ बनाया जाय। यह प्रसंग मात्र वाग विलास बनकर, रहस्य रोमांच की चर्चा बनकर न रह जाय। वैयक्तिक नहीं, समष्टिगत प्रयास की ही अब प्रधानता है। मौसम की विभीषिका यदि वास देगी तो सारे समूह को, किसी व्यक्ति , जाति, प्रान्त यों राष्ट्र विशेष को नहीं। ऐसी विषम बेला में असन्तुलन को और न बढ़ाने तथा सन्तुलन में नियोजित प्रयासों को और अधिक प्रखर बनाने की आवश्यकता है। विनाश की कगार पर खड़ा संसार तथा क्रुद्ध मदमस्त प्रकृति की हमसे कुछ यही अपेक्षा भी है।


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