इस वर्ष के दो अत्यन्त सरल किन्तु अति महत्वपूर्ण कार्यक्रम

August 1982

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इस वर्ष के नव सृजन कार्यक्रमों में दो ऐसे हैं जिन्हें हममें से प्रत्येक को हाथ में लेना चाहिए और इस सरल उपचारों को अपनाकर अपने को नव सृजन में भागीदार बनना चाहिए। अधर्म नाश की दृष्टि से खर्चीली शादियों में अपव्यय एवं दहेज का प्रचलन निरस्त किया जाना चाहिए और धर्म स्थापना की दृष्टि से हरीतिमा संवर्द्धन का कार्य हाथ में लेना चाहिए।

इस तथ्य को हजार बार समझा और लाख बार समझाया जाना चाहिए कि ‘खर्चीली शादियाँ हमें दरिद्र और बेईमान बनाती है।’ इस कुप्रथा ने हमें नैतिक दृष्टि से खोखला बना दिया है और सामाजिक शालीनता की कमर तोड़कर रख दी है। हर गृहस्थ को अपने पसीने की गाढ़ी कमाई का प्रायः एक तिहाई भाग बच्चों को पेट काटकर पारिवारिक प्रगति का द्वार रोक कर इस कुरीति पिशाचिनी के लिए बलि चढ़ना पड़ता है। लाखों सुयोग्य लड़कियों को कुमारी रहना पड़ता है। या अयोग्यों के गले बँधना पड़ता है। लाखों गृहस्थ अपनी खुशहाली को मटियामेट करके बर्बाद होते और दर-दर की ठोकरें खाते हैं। एक दिन फुलझड़ी का तमाशा देखने दिखाने में दोनों ही पक्ष बर्बाद हो जाते हैं। आये दिन नव बहुओं की हत्या और आत्म-हत्या रोकने का यही तरीका है कि खर्चीली शादियों को अपराधों की दुष्प्रवृत्ति में गिना जाय और उनसे अपने समाज को मुक्ति दिलाने के लिए प्राण्-पण से प्रयत्न किया जाय।

विवाह योग्य लड़की लड़के प्रतिज्ञा करें कि वे खर्चीली शादियों के माध्यम से विवाह बन्धन में न बँधेगे, भले ही उन्हें आजीवन ही रहना पड़े। विचारशील अभिभावकों के कम कम लड़के के बारे में तो यह प्रतिज्ञा करनी ही चाहिए कि वे अपने घर, परिवार और प्रभाव क्षेत्र के लड़कों की शादी तो बिना दहेज और खर्च प्रदर्शन के ही करेंगे। इस वर्ष यह प्रतिज्ञा आन्दोलन चलना ही चाहिए। प्रतिज्ञा पत्रों को शान्ति कुञ्ज भेजा जाना चाहिए। जिन लड़कों की शादियाँ इस प्रकार सम्भव हों उनका नाम, आयु आदि जानकारियाँ भी भेजना चाहिए ताकि लड़ी वालों को उस आधार पर सुयोग्य लड़के प्राप्त करने में सुविधा हो। पहले लड़के वालों को करनी होगी क्योंकि कलंक उन्हीं के सिर पर बँधता है। इसके अतिरिक्त हममें से प्रत्येक को यह प्रतिज्ञा भी करनी चाहिए। कि खर्चीली और दहेज वाली शादियों में सम्मिलित नहीं होंगे, भले ही वे अपने सगे कुटुम्बियों-सम्बन्धियों के ही क्यों न हों। इससे चर्चा फैलती है और वातावरण बनता है।

इन दिनों बढ़ते वायु प्रदूषण और कुपोषण के कारण सार्वजनिक स्वास्थ्य-संकट खड़ा हो गया है। पेड़ कटते जा रहे हैं, नये लगते नहीं। फलस्वरूप भूमि क्षरण वर्षा का असन्तुलन, इमारती तथा जलाऊ लकड़ी की कमी जैसी अनेकानेक कठिनाइयाँ खड़ी हो रही हैं। इसके लिए आवश्यक है कि हर व्यक्ति अपने निवास या प्रभाव दी जमीन पर किसी न किसी प्रकार हरीतिमा बोये-उगायें “बच्चे पैदा न करें, पेड़ उगायें।” वह नारा हर दीवार पर लिखा जाय और इस आवश्यकता से जन-जन को अवगत कराया जाय। अपनी या पराई भूमि पर पेड़ उगाने में हमें हजारी किसान का अनुकरण करना चाहिए जिसने हजारी बाग जिले में हजार आम्र उद्यान लगाये, लगवाये थे तुलसी का बिरवा हर आँगन में लगे। इस थावले को ‘वनस्पति भगवान’ का देवालय माना जाय। जल अर्घ्य, अगरबत्ती परिक्रमा से इस देवता की घर-घर में पूजा हो। तुलसी एक अमोघ औषधि है। अनुरूप ीोद से वह सभी रोगों के उपचार में काम आ सकती है। इस दिशा में हम सब पूरा ध्यान दें। और घरों में तुलसी लगाने के लिए बीज, पौध बाँटने का अभियान चलाये । इसी प्रकार कुपोषण निवारण के लिए घरेलू शाक वाटिका लगाई जाय। आँगन बाड़ी, छत बाड़ी, छप्पर बाड़ी में शाक एवं फल उगायें जा सकते हैं।

हममें से कौन खर्चीली शादियों के विरुद्ध जूझने और हरीतिमा बढ़ाने की दृष्टि से इन दिनों क्या कर रहा है और अगले दिनों क्या करने की सोच रहा है, इसका विवरण जानने की प्रतीक्षा शान्ति-कुँज हरिद्वार के सूत्र संचालक बड़ी उत्सुकतापूर्वक कर रहे हैं।


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