नमस्यो देवान्नतु हत विधेस्तेऽिवशगा। विधिर्वन्द्यः सोऽपि प्रतिनियति कमैकफरादः॥
फवं कर्मायत्तं किममरगणैः किं च विधिना॥ नमस्तत्कर्मेंभ्यो विधिरपि न येभ्यः प्रभववि।93॥
देवताओं को हम प्रणाम करते हैं, पर वह तो ब्रह्मा के अधीन हैं, और ब्रह्मा भी हमको पूर्व कर्मानुसार फल देते हैं, इसलिए फल और ब्रह्मा दोनों ही के कर्माधीन हैं। इस कारण हम कर्म ही को सर्वश्रेष्ठ मानते हैं जिस पर कि ब्रह्मा का भी वश नहीं चलता।
- भर्तृहरि