मृत्यु उतनी भयानक नहीं जितनी सोचते हैं।

August 1982

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पुराने कपड़े उतार कर नये कपड़े पहनने में किसी को क्या कष्ट होता है? यह प्रश्न ही हास्यास्पद लगता है लगभग इसी तरह का प्रश्न मृत्यु के सम्बन्ध में पूछा जाय तो उसका उत्तर गम्भीरता से ही दिया जाता है। कारण कि लोगों की मान्यता है, मृत्यु एक दुःखदायी, कष्टप्रद और दारुण वेदना देने वाली प्रक्रिया है। मृत्यु कष्टप्रद और दुःखदायी प्रक्रिया लगती तो है परन्तु वास्तव में वह है नहीं। बचपन से किशोरावस्था में, कैशोर्य से यौवन में और यौवन से प्रौढ़ परिपक्व स्थिति में विकसित होने तक जो आनन्द और उल्लास अनुभव होता है या कोई विशेष परिवर्तन होता दिखाई नहीं देता, इसलिए इस विकास की स्थिति में किसी को कष्ट अनुभव नहीं होता। मृत्यु इसलिए कष्टप्रद अनुभव होती या प्रतीत होती है कि मरने वाला व्यक्ति दारुण वेदना भोग रहा है कि उसके साथ ही ऐहिक जीवन क अन्त हो जाता है और जिसके जीवन का अन्त हो जाता है वह लौटकर बता नहीं सकता कि उसे कैसा अनुभव हुआ?

मृत्यु के सम्बन्ध में अज्ञान ही मनुष्य को उसके प्रति तरह-तरह की धारणाओं को जन्म देती है। मृत्यु वास्तव में है क्या? यह घटना घटते समय लोगों को कैसा अनुभव होता है? वैज्ञानिकों के लिए यह भी शोध का एक विषय रहा है। इसके लिए कई वैज्ञानिकों ने उन व्यक्ति यों के अनुभव एकत्रित किये हैं जो मरने के बाद जीवित हो उठे या डाक्टरों ने जिन्हें मृत घोषित कर दिया था, परन्तु वास्तव में वे जीवित थे और पुनः स्वस्थ होकर सामान्य जीवनक्रम व्यतीत करने लगे।

इस तरह का अनुसन्धान करने वालों में अमेरिकी वैज्ञानिक डा. कुवलर रास का नाम अग्रणी है। उन्होंने तीन सौ भी अधिक व्यक्ति यों से भेंट की। ये सभी लोग ऐसे थे जो मरने के बाद पुनः जीवित हो उठे थे। इन व्यक्ति यों ने अपने अनुभव जिस रूप में व्यक्त किए उनसे सिद्ध होता है कि मृत्यु कोई दुःखदायी घटना नहीं है। मरने के पूर्व तक लगता अवश्य है कि कोई बहुत बड़ी यन्त्रणादायी घटना घटने जा रही है किन्तु वास्तव में ऐसा कुछ नहीं होता। एक महिला ने जो अचानक बीमार पड़ गई थी, और इसी बीमारी में वह मृत्यु तक पहुँच गई थी, अपना अनुभव बताते हुए कहा, “अचानक बीमार पड़ जाने के बाद मुझे लगने लगा कि मैं मरने ही वाली हूँ। अस्पताल में मेरे साथ जो मरीज थे, उनके सभी रोग मेरे ऊपर इकट्ठे हुए जा रहे हैं और मैं किसी की सहायता चाहती थी, जो मुझे इस मानसिक यंत्रणा से निकाल सके या इससे छुटकारा दिला सके। मैं सहायता के लिए किसी को पुकारना चाहती ही थी कि मुझे किसी का शाँत गम्भीर और उत्साह बढ़ाने वाला स्वर सुनाई दिया, जो कह रहा था, साहस करो। आगे बढ़ो।

जैसे ही मैंने साहस बटोरा मेरा सारा दर्द दूर हो गया। तभी मेरे सामने एक प्रकाशपूर्ण आकृति आई। उसके साथ उसी जैसा आलोक लिए कमल का फूल दिखाई दिया। मुझे अनुभव हुआ कि मेरा साँस रोग और रोग की पीड़ा तिरोहित हो गए हैं। उस समय मुझे भी अपना पूरा शरीर प्रकाश पुँज सा दिखाई दे रहा था कि मैं बहुत हल्की हो गई हूँ। उस समय बिस्तर पर पड़े अपने शरीर को अच्छी तरह देख सकती थी। थोड़ी देर बाद मैं अपने शरीर में वापस आ गई। मेरी चेतना जब वापस लौटी तो सम्बन्धियों से मुझे ज्ञात हुआ कि चिकित्सकों ने मुझे मृत घोषित कर दिया था।

एक और महिला ने मृत्यु का अनुभव इस प्रकार बताया, “बीमारी की हालत में अचानक मेरी हृदय गति रुक गई। तब मेरे चिकित्सक ने अपने एक सहयोगी डाँक्टर से कहा, “डाँक्टर यह तो मर गई। मैं कहना चाहती थी कि मैं मरी नहीं हूँ परन्तु चाह कर भी मेरे होंठ खुल नहीं रहे थे। डाँक्टरों ने आदेश दिया कि मेरे शव को अस्पताल के वार्ड से बाहर निकाला जाए। मैं यह सब देख और सुन रही थी परन्तु कुछ कह नहीं सकता थी।” जिन लोगों की अचानक या किसी दुर्घटना में मृत्यु हो जाती है, उन्हें कैसा अनुभव होता है? इस सम्बन्ध में भी रोचक और दिलचस्प बातें जानने को मिली। एक व्यक्ति ने, जिसकी मृत्यु सिर में चोट लगने से हो गई थी तथा जो मरने के बाद पुनः जीवित हो उठा था, कहा-थोड़ी देर के लिए मेरा सारा दर्द दूर हो गया और मेरी पीड़ा पूरी तरह समाप्त हो गई। मैं बड़े ही सुख का अनुभव कर रहा था। अचानक एक झटका-सा लगा और मुझे अपने शरीर में कष्ट अनुभव होने लगा।” एक महिला, जिसकी मृत्यु अत्यधिक ‘रक्त स्राव’ के कारण हो गई थी, ने पुनः जीवित होने के बाद बताया-मैं अत्यन्त मधुर और दिव्य संगीत सुन रही थी और मेरा सारा दुःख दूर हो गया था।” कुछ लोगों को तो मृत्यु में इतना अधिक आनन्द को अनुभव होता है कि उनके अनुसार जीवन में वे इतने अधिक आनन्दित कभी नहीं हुए। घटना लन्दन की अलर्सगेट स्ट्रीट की है। वहाँ के एक मकान में आग लग गई और फायर बिग्रेड के कर्मचारी आग बुझाने के काम में लगे। इन कर्मचारियों में जेम्स बर्टन नाम का एक कर्मचारी भी था। आग के बीच में घुसकर जब वह आग बुझाने का प्रयास कर रहा था एक जलता हुआ शहतीर उसके ऊपर आ गिरा। वह आठ घण्टे तक उस मलबे के नीचे दबा रहा। निकाले जाने के बाद लम्बे समय तक चिकित्सा करने पर वह ठीक हुआ। उसने अपना अनुभव बताते हुए कहा, एक क्षण के लिए मुझे अपनी पत्नी की याद अवश्य आई थी, लेकिन उसके बाद मैं किसी अज्ञात दिशा में आने वाली मधुर संगीत लहरियों को सुनते-सुनते जैसे खो सा गया। मैं अपने शरीर को चाहकर भी हिला-डुला नहीं सकता था लेकिन मैं सोच जरूर सकता था और अनुभव भी करता था। मुझे ऐसा अनुभव हो रहा था जैसे मैं फूलों की सेज पर सोया हुआ होऊँ तथा स्वर्ग में रह रहा हूँ।’

स्विट्जरलैंड के श्री हरमन एक बार काउण्ट सेंट बरनार्ड पर बर्फ के तूफान में भटक गए। खोज-बीन करने पर वे बेहोश अवस्था में मिलें, जाँच करने पर उनमें जीवन का कोई चिन्ह नहीं पाया गया। लगा कि उनकी मृत्यु हो गई है बड़े प्रयत्नों के बाद जब वे ठीक हो सके तो होश में आने पर उन्होंने बताया कि आगे कदम तलाश में भटकते हुए वे इतने थक गए थे कि आगे कदम नहीं बढ़ रहे थे। फिर भी जिजीविषा उन्हें आगे धकेले जा रही थी। इसी तरह आगे बढ़ते-बढ़ते वे एक स्थान पर थककर चूर होकर गिर गए, फिर उन्हें होश नहीं रहा कि क्या हुआ? लेकिन उस स्थिति में वे भी वे अपने आपको सचेत और संवेदन क्षमता से परिपूर्ण अनुभव कर रहे थे तथा उन्हें बेहद आनन्द की अनुभूति हो रही थी। इस आनन्दमय स्थिति से बाहर आते समय उन्हें अवश्य कष्ट का अनुभव हुआ। डाँक्टरों के अनुसार वे बर्फ में गिर जाने के काफी समय पूर्व मर चुके थे।

अर्नाल्ड सिग्रोट और उसके चार मित्रों ने, जिनमें दो प्रेस रिपोर्टर थे तथा दो फोटोग्राफर, आल्पस पर्वत की चोटी पर चढ़ने का निश्चय किया। चोटी दो हजार फुट से अधिक ऊँची थी और उसके नीचे बहुत गहरा तथा सकरा खड्ड था। इस अभियान में अर्नाल्ड सिग्रेट सबसे आगे चल रहे थे। थक जाने पर थोड़ा सुस्ताने के लिए वे एक चोटी के किनारे बैठ गए, लेकिन दुर्भाग्यवश वह हिस्सा उनका वजन सह नहीं पाया और टूट कर गिर पड़ा, अर्नाल्ड भी उस टुकड़े के साथ नीचे लुढ़कने लगे।

जब उन्हें खड्ड से बाहर निकाला गया तो वे अर्ध मृतक की-सी स्थिति में थे। जीवन के कुछ ही चिन्ह शेष थे, इसलिए उन्हें बचाने की भरसक चेष्टा की गई और उपचार सफल रहा। वे बच गए या कि मृत्यु के मुख में प्रवेश कर वापस लौट आए। चिकित्सा के उपरान्त ठीक होने पर उन्होंने अपना रोमांचक अनुभव इन शब्दों में व्यक्त किया, ‘मेरा मस्तिष्क बड़ी तेजी से काम कर रहा था। समय का मुझे कुछ भी ज्ञान नहीं रहा, गया था और रह-रहकर मुझे अपने पत्नी बच्चों का ख्याल आ रहा था। इसके बाद मुझे अपनी शरीर का कोई आभास नहीं रहा। मैं उसे लुढ़कते छिलते और उसमें से खून को रिसते हुए ऐसे ही अनुभव कर रहा था जैसे मैं किसी दूसरे व्यक्ति का शरीर लुढ़कता हुआ देख रहा हूँ।

‘मेरे साथी मुझे खोजते हुए आए। उनका अनुमान था कि मैं निश्चित रूप से मर चुका हूँ। उन्होंने मेरे शरीर को एक गर्म बिछावन पर लिटा दिया। मैं धीरे-धीरे साँस ले रहा था। साँस लेना भी कुछ देर के बाद बन्द हो गया और मेरे शरीर में जीवन का कोई चिन्ह शेष नहीं रहा परन्तु मैं होश में था और आनन्द में था। मेरे एक परिचित डाँक्टर ने मेरे जीवन के प्रति निराशा व्यक्त की। मैं अपने परिवार के लोगों को रोते हुए देख रहा था। मैं चाहता था कि उन्हें बताऊँ कि मैं कितना आनन्दित हूँ और उनके चीखने रोने से दुःखी हो रहा हूँ। उन्हें चुप कराने और रोने से मना करने के लिए मैंने चीख-चीखकर कहना चाहा किन्तु मेरी आवाज शायद उनके कानों तक नहीं पहुँच पा रही थी। फिर मैंने चीख-चीखकर कहना चाहा किन्तु मेरी आवाज शायद उनके कानों तक नहीं पहुँच पर रही थी। फिर मैंने सोचा कि मैं अपने इस शरीर में प्रवेश कर जाऊँ तो ये लोग प्रसन्न होंगे। इतनी इच्छा करने मात्र से मैं वापस अपने शरीर में प्रविष्ट हो गया। हालाँकि उस समय मुझे अपने शरीर पर लगी चोटों तथा आये घावों की पीड़ा अनुभव होने लगी थी परन्तु मैं प्रसन्न था कि वे लोग सन्तुष्ट है।”

‘फ्रण्टियर्स आफ द आफ्टर लाइफ’ के लेखकर और प्रकाशक एल्फ्रेड ए. नैफा ने एक दुर्घटना में मरने के बाद पुनः जीवित हो उठने वाले व्यक्तियों के अनुभव संकलित करते हुए एक व्यक्ति का अनुभव इस प्रकार लिखा है, “मैं एक मूर्च्छा के बाद जागा। मैंने देखा कि मेरा शरीर अलग-थलग पड़ा हुआ है। भौचक्का-सा खड़ा होकर मैं देख रहा था और जब मैंने नीचे की ओर देखा तो पाया कि मेरा शरीर लड़ाई में मारे गए और लोगों के साथ पड़ा हुआ है। मुझे लड़ाई की बात याद आ गई तथा यह भी याद आ गया कि मैं युद्ध में ही गोली लगने के कारण मारा गया हूँ। मैंने कब शरीर छोड़ा इसका मुझे जरा भी स्मरण नहीं था परन्तु मृत्यु मेरे लिये एक आनन्ददायक और पीड़ा रहित घटना थी।”

‘सायकिकल फिनोयिन,एण्ड दि बार’ पुस्तक के लेखक डाँ. हायर वार्ड केरिगंटन ने ऐसा ही अनुभव लिखते हुए बताया, “मैं अचानक अपने शरीर से बाहर फेंक दिया गया था। मैंने कोई पीड़ा अनुभव नहीं की।” अब तक संकलित विवरणों में जो मरने के बाद पुनः जीवित हो उठे व्यक्तियों से पूछकर संकलित किए गए हैं यही सिद्ध होता है कि मृत्यु के सम्बन्ध में अज्ञान। यदि मृत्यु के वास्तविक स्वरूप को समझा जा सके और भारतीय मनीषियों के इस प्रतिपादन को हृदयंगम किया जा सके कि मृत्यु वस्त्र परिवर्तन की भाँति ही देह परिवर्तन मात्र है तो निश्चित ही लोगों की चिन्ताएँ तथा निराशाएँ दूर हो सकती हैं।


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