धर्मः सत्यं तथा वृत्तं बलं चैव तथाप्यहम। शीलमला महाप्राज्ञ सदा नास्त्यत्रं संशय॥ महाभारत शान्ति 124।62
अर्थात्-भगवती लक्ष्मी प्रह्लाद से कहती है-हे प्राज्ञ धर्म का, सत्य का, सदाचार का, बल का, तथा स्वयं मेरा भी मूल शील में ही है-इसमें किसी प्रकार का संशय नहीं है।