पेट में भगन्द का फोड़ा हो गया। वैद्यों न सलाह दी कि आपको विश्राम करना चाहिए, पर जगद्गुरु शंकराचार्य ने उस घोर कष्ट में भी अपनी साधना, ज्ञानार्जन के तप और लोक सेवा के मार्ग को छोड़ा नहीं उन्होंने उसी अवस्था में उत्तर से दक्षिण पूर्ण से पश्चिम तक सारे भारत वर्ष में धर्म का प्रसार कर देश को एक साँस्कृतिक सूत्र में बाँधा। उनकी यह निष्ठा देखकर राजा मान्धाता ने उनको हर आवश्यक सहायता दी। 32 वर्ष की आयु में ही उन्होंने इतना काम कर दिखाया जो कोई पूरे दो जन्म में भी न कर पाता!