Quotation

December 1981

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

परमात्मा तत्व में जिन विभूतियों के भण्डार भरे पड़े हैं, क्या उन्हें जीवात्मा में पाया देखा जा सकता है। यदि वस्तुतः प्रसुप्त स्थिति में अध्यात्म वैभव की विपुल सम्भावनाएँ मनुष्य में विद्यमान है तो उन्हें प्रकट रूप से देखा दिखाया जा सकता है? आत्मिकी का उत्तरदायित्व है कि वह अपने को दुर्दशाग्रस्त दलदल में से उबरे और प्राचीन काल की तरह अपने वर्चस्व का परिचय दें।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles