ऋद्धि-सिद्धियों का रहस्योद्घाटन अपने ही अंतराल में

December 1981

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मण्डन मिश्र और आद्य शंकराचार्य के बीच होने वाले शास्त्रार्थ में जब मण्डन मिश्र हारने लगे तो उनकी पत्नी विदुषी भारती ने शंकराचार्य को शास्त्रार्थ के लिए चुनौती दी। कामशास्त्र के विषय में अनेकों गूढ़ प्रश्नों के उत्तर देने में शंकराचार्य असमर्थ सिद्ध हुए। उन्होंने उत्तर के लिए समय की माँग की। कहा जाता है कि काम कला का अनुभव प्राप्त करने के लिए उन्होंने अपनी आत्मा को राजा सुधन्वा के शरीर में प्रविष्ट कराया और कामशास्त्र का ज्ञान प्राप्त किया। तत्पश्चात वापस अपने शरीर में आकर उन्होंने विदुषी भारती के प्रश्नों का उतर दिया। परकाया प्रवेश की यह घटना पिण्ड की सामर्थ्य के उस चेतन पक्ष का परिचय देती है, जिसे रहस्यमय विभूतियों से सम्पन्न माना गया है।

‘नाथ सम्प्रदाय’ के आदि गुरु मुनिराज ‘मछन्दरनाथ’ के विषय में भी कहा जाता है कि उन्हें परकाया प्रवेश की सिद्धि प्राप्त थी। सूक्ष्म शरीर से वे अपनी इच्छानुसार गमनागमन विभिन्न शरीरों में करते थे। एकबार अपने शिष्य गोरखनाथ को स्थूल शरीर की सुरक्षा का भार सौंपकर एक मृत राजा के शरीर में उन्होंने सूक्ष्म शरीर से प्रवेश किया था। “महाभारत के शान्ति पर्व” में वर्णन है कि सुलभा नामक विदुषी अपने योगबल की शक्ति से राजा जनक के शरीर में प्रविष्ट कर विद्वानों से शास्त्रार्थ करने लगी थी। उन दिनों राजा जनक का व्यवहार भी स्वाभाविक न था। ‘अनुशासन पर्व’ में ही कथा आती है कि एक बार इन्द्र किसी कारण वश ऋषि देवशर्मा पर कुपित हो गये। उन्होंने क्रोधवश ऋषि की पत्नी से बदला लेने का निश्चय किया। देवशर्मा का शिष्य ‘विपुल’ योग साधनाओं में निष्णात और सिद्ध था। उसे योग दृष्टि से यह मालूम हो गया कि मायावी इन्द्र, गुरु पत्नी से बदला लेने वाले हैं। ‘विपुल’ ने सूक्ष्म शरीर से गुरु पत्नी के शरीर में उपस्थित होकर इन्द्र के हाथों से उन्हें बचाया।

‘पातंजलि योग दर्शन’ में सूक्ष्म शरीर से आकाश गमन, एक ही समय में अनेकों शरीर धारण, परकाया प्रवेश जैसी अनेकों योग विभूतियों का वर्णन है। जो प्रकारान्तर से जीवात्मा की अकूत सामर्थ्य और शरीरान्तर उसकी स्वतंत्र सत्ता का ही प्रतिपादन करती है। सत, रज, तम से बने संसार और पंच भौतिक शरीर से जुड़े आकर्षणों में अत्यधिक लिप्त होने के कारण अपनी मूल सत्ता, जो समस्त शारीरिक एवं मानसिक हलचलों का केन्द्र है, का बोध नहीं हो पाता। बाह्याकर्षणों के आवरणों को चीरकर निकल सकना सम्भव हो सके तो प्रतीत होगा कि अपनी ही आत्म सत्ता में ऋद्धि-सिद्धियों का ऐसा विलक्षण भण्डार छुपा पड़ा है। जिसे जानकर समष्टि चेतन सत्ता से सम्बन्ध जोड़ सकना तथा विभूति सम्पन्न-सामर्थ्यवान बन सकना सम्भव है। इसी तथ्य को ऋषि ने इस प्रकार कहा है-

करामलकवद्विश्वं तेन योगी प्रपश्यन्ति। दूरतो दर्शनं दूरश्रवणं चापि जायते॥ भूतं भव्यं भविष्यं च वेत्ति सर्वकारणम्। ध्यान मात्रेण सर्वेषां भूतानां च मनोगतम्॥

अर्थात्- ‘‘योगी को अदृश्य जगत दृश्यवत् दिखता है। उसे दूरदर्शन-दूरश्रवण की विभूतियाँ उपलब्ध होती हैं। ध्यान मात्र से योगी भूत, भविष्य, वर्तमान तथा प्राणियों के मनोगत भाव जान लेता है।’’

अदृश्य जगत को जान लेना- उसमें सूक्ष्म शरीर द्वारा प्रवेश कर विचरण कर सकना सम्भव है। परकाया प्रवेश की घटनाएं उसी तथ्य पर प्रकाश डालती हैं। शरीर से परे जीवात्मा के स्वतंत्र अस्तित्व का जहाँ इनसे परिचय मिलता है वहीं उसकी विलक्षण सामर्थ्य का भी वे बोध कराती है।

‘रिसर्चेज आफ अनकान्शस माइन्ड इन ट्वेन्टीयथ सेंचुरी’ पुस्तक के लेखक हैं- दो अमेरिकी परामनोवैज्ञानिक। शरीर से परे जीवात्मा की स्वतंत्र सत्ता, मरणोपरांत उसके अस्तित्व के प्रमाण सम्बन्धित अनेकों घटनाओं का उल्लेख उस पुस्तक में है। उनमें से कुछ घटनाएं इस प्रकार हैं-

एक अमेरिकी बर्तन विक्रेता घर से टहलने निकला पर वापिस घर नहीं लौटा। दो वर्षों तक उसका कुछ भी पता न चला। इसके बाद वह अचानक एक दिन अपने घर पहुँचा। घर वालों के पूछने पर कि इतने दिन वह कहाँ रहा, कुछ भी उतर न दे सका। खोजबीन आरम्भ हुई। लम्बी ढूंढ़-खोज के उपरान्त यह मालूम हुआ कि सैंकड़ों मील दूर एक नगर में वह मशीन मरम्मत आदि का काम करता रहा। जहाँ वह काम करता था। वहीं दो वर्षों पूर्व एक कारीगर काम करता था जिसकी एक दुर्घटना में आकस्मिक मृत्यु हो गई। उसी के स्थान पर वह काम करता रहा। अपना नाम भी वही बताता था जो कारीगर का था। न केवल नाम बल्कि उसका आचरण, व्यवहार भी कारीगर जैसा ही था। उसे दुकान से सम्बन्धित व्यक्तियों का पूरा विवरण कारीगर जैसा ही याद था। दो वर्षों बाद एक अचानक उसे अनुभव हुआ कि वह कारीगर नहीं कसेरा है तथा इस व्यवसाय एवं स्थान से पूर्णतया अपरिचित है। यह स्मरण होते ही वह घर वापिस आ गया तथा पहले की भाँति अपना व्यवसाय करने लगा।

‘रोड्स नगर का एक कर्मचारी ऐसेलबर्न बैंक से दस हजार का चैक भुनाकर निकला पर घर न जाकर कहीं और चला गया। घर वालों ने गायब होने की रिपोर्ट पुलिस विभाग में लिखायी। खोजबीन करने पर वह एक दूसरे नगर में चीनी का व्यवसाय करता पाया गया। अपने को वह ‘कार्टर’ कहता था जबकि उसका पुराना नाम ‘राबर्ट केल्सन’ था। घर वालों ने जाकर उसे वापिस चलने के लिए आग्रह किया, पर उसने उन्हें पहचानने से भी इन्कार कर दिया। एक वर्ष तक वह इस व्यवसाय में लगा रहा। अचानक एक दिन उसे वास्तविकता का बोध हुआ कि वह कार्टर नहीं राबर्ट है तथा उसे घर वापिस जाना चाहिए। व्यापार समेटकर वह घर पहुँचा। खोज करने पर ज्ञात हुआ कि उसी नगर में कार्टर नामक एक प्रसिद्ध चीनी व्यवसायी था जो कुछ ही माह पूर्व मरा था। उसका व्यवहार केल्सन जैसा ही था।

इंग्लैण्ड के एक पादरी मोटर दुर्घटना में बेहोश ही गये। उन्हें अस्पताल लाया गया। उपचार से वे होश में तो आ गये, पर उनके व्यवहार में विचित्र परिवर्तन दिखायी पड़ा। वे बच्चे जैसा आचरण करने लगे तथा अपना नाम मिल्टन बताते थे। पता लगाने पर मालूम हुआ कि उसी मुहल्ले का एक बच्चा जिसका नाम मिल्टन था कुछ ही दिनों पूर्व मरा था। उसके व्यवहार, आदतों तथा पादरी के व्यवहार में कोई अन्तर नहीं पाया गया।” कुछ माह बाद वे अपनी असली व्यक्तित्व में लौट आये।

परामनोविज्ञान पर शोध करने वाले घटनाओं के संकलनकर्ता इन लेखकों ने अपने शोध निष्कर्ष में कहा कि अपनी अतृप्त आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए अदृश्य आत्मायें कभी-कभी सशरीर व्यक्तियों को अपना माध्यम बनाती हैं। प्रायः ऐसे व्यक्ति उनका शिकार बनते हैं जो कमजोर मनोभूमि के होते हैं। इन पर सरलता से नियंत्रण प्राप्त करना तथा अपनी इच्छानुवर्ती काम करा लेना अदृश्य अतृप्त आत्माओं के लिए सुगम पड़ता है। कभी कभी ऐसी घटनाएं भी प्रकाश में आती हैं जिसमें एक व्यक्ति के मरणोपरान्त तुरन्त उसके शरीर पर दूसरी आत्मा ने स्थायी रूप से अपना आधिपत्य जमा लिया हो। रूस के यूराप्रान्त में मोरवर्न नगर में इब्राहीन चारको नामक एक धनी यहूदी रहता था। एक बार वह गम्भीर रूप से बीमार पड़ा। कुछ दिनों बाद हृदय की धड़कन बन्द होने पर डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। उसे दफनाने की तैयारी चल रही थी। इतने में उसकी चेतना पुनः वापिस लौटी और वह उठ बैठा। पर अब उसकी स्थिति बिल्कुल ही भिन्न थी। उसने अपने ही कुटुम्ब के सदस्यों को पहचानने से इन्कार कर दिया। वह अपनी मूल भाषा हिब्रू न बोलकर ‘लैटिन’ में बात करने लगा। उसने अपने को ब्रिटिश कोलम्बिया (अ.उ. अमेरिका) का एक चिकित्सक बताया। नाम था इब्राहिम इरहम। खोजबीन की गई तो मालूम हुआ कि ‘न्यूवेस्ट मिनिस्टर’ में इब्राहिम इरहम नामक एक चिकित्सक की मृत्यु कुछ दिनों पूर्व हुई है। उसकी पत्नी एवं बच्चे भी हैं। कोलम्बिया के समाचार पत्रों में “इब्राहिम चारको के शरीर में इब्राहीन इरहम की आत्मा का प्रवेश” शीर्षक से इस सम्बन्ध में विस्तृत समाचार छपा। इब्राहिम चारको के शरीर में प्रविष्ट इब्राहिम इरहम की आत्मा ने अपनी पत्नी से मिलकर परिचय दिया। पहले तो पत्नी को विश्वास नहीं हुआ पर उसने ऐसे रहस्यों का उद्घाटन किया जो मात्र इरहम और उसकी पत्नी की जानकारी तक सीमित थे साथ ही उसका स्वभाव भी बिल्कुल इरहम जैसा ही था। फलस्वरूप पत्नी को मानना पड़ा कि इब्राहिम चारको के शरीर में उसके पति की आत्मा ही है।

इसी से मिलती-जुलती एक घटना प्रथम विश्व युद्ध की है। दो अमेरिकी सैनिक युद्ध के एक मोर्चे पर घायल हो गये नाम थे- डान और बॉब। डान की मृत्यु हो गई पर उपचार के बाद ‘बॉब’ ठीक हो गया। पर शरीर से बॉब होते हुए भी उसकी मूल प्रकृति बॉब जैसी नहीं थी। ठीक होते ही वह अपने को ‘डान’ कहने लगा। युद्ध समाप्त होने पर वह अपने घर न जाकर डान के घर पहुँचा। डान के परिवार के सदस्यों से उसने अपना परिचय डान के रूप में दिया। आकृति की भिन्नता के कारण परिवार वालों ने पहले तो उसे पागल समझा किन्तु उसने डान के जीवन की अनेकों प्रामाणिक घटनाओं का उल्लेख किया। उसकी आदत, अभिरुचियां भी ठीक डान जैसी थीं। इसी बीच घर वालों को सूचना मिली कि डान की युद्ध मोर्चे पर गोली लगने से मृत्यु हो गई। अन्ततः सबको यह मानना पड़ा कि बॉब के शरीर में डान की आत्मा ने प्रवेश कर अपना आधिपत्य जमा लिया है।” एक अन्य घटना स्पेन की है। एकबार हाला और मितगोल नामक की दो लड़कियां अपने अभिभावकों के साथ बस से वापिस घर लौट रही थीं। मार्ग में बस दुर्घटनाग्रस्त हो गई। अनेकों व्यक्ति मारे गये। दोनों लड़कियाँ भी बुरी तरह घायल हो गईं। मितगोल की कुछ घंटों बाद मृत्यु हो गई। हाला इसके कुछ समय बाद होश में आयी। पर अब वह शरीर से ‘हाला’ होते हुए भी हाला न थी। मितगोल एवं हाला दोनों के अभिभावक घटनास्थल पर मौजूद थे। हाला के पिता ने उससे घर चलने को कहा पर उसने उनके साथ जाने से इन्कार कर दिया। उसने बताया कि वह हाला नहीं मितगोल है। वह मितगोल के पिता के पास पहुँची तथा घर चलने के लिए आग्रह करने लगी। हाला के पिता ने समझा शायद दुर्घटना से उसका मानसिक सन्तुलन बिगड़ गया हो। वे उसे जबरन घर ले गये, पर वह किसी भी घर के सदस्य को पहचान न सकी और निरन्तर यह रटती रही कि वह हाला नहीं मितगोल है। हाला को लेकर उसके अभिभावक मितगोल के घर पहुँचे। तुरन्त ही वह मितगोल की माँ को देखते ही जा लिपटी और फूट-फूट कर रोने लगी। मितगोल के पिता उसके दुर्घटनाग्रस्त शरीर को स्वयं दफना चुके थे, पर हाला का स्वभाव शत-प्रतिशत मितगोल जैसा ही था। मितगोल से सम्बन्धित अनेकों पूर्व जीवन की घटनाओं का उसने सही-सही वर्णन कर सबको आश्चर्यचकित कर दिया।

जीवात्मा द्वारा शरीर रूपांतरण कार्य घटनाएं भौतिकवाद की इस मान्यता का खण्डन करती है कि वृक्ष वनस्पतियों की भाँति मनुष्य भी एक चलता-फिरता पौधा है। जड़-पिंडों की तरह एक दिन नष्ट हो जाता है। आदि और अन्त, जीवन और मरण से परे अपनी स्वतंत्र सत्ता का बोध कराने के लिए ही सम्भवतः आत्म सत्ता इन विलक्षण घटनाओं के रूप में अपना परिचय देती है।

प्रसुप्ति से निकला और आत्म-जागरण, आत्म-बोध, की दिशा में बढ़ा जा सके तो प्रतीत होगा कि अपने ही अन्तराल में शक्ति का अकूत भण्डार छिपा पड़ा है। ऋद्धि-सिद्धियाँ अपनी ही अन्तः गुहा में विद्यमान है। मानवी पुरुषार्थ भौतिक उपलब्धियों के इर्द-गिर्द ही प्रायः घूमता रहता है। फलतः उतना ही मिल पाता है जितना मात्र जीवन-निर्वाह के लिए पंच भौतिक शरीर की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु आवश्यक है। समुद्र के बाहर इर्द-गिर्द चक्कर काटने वाले मात्र सीपी-घोंघे ही प्राप्त कर पाते हैं? अथाह समुद्र की गहराई में डुबकी लगाने वाले साहसी ही अमूल्य मोती प्राप्त करते हैं।

बहिरंग की तुलना में अन्तरंग जगत असंख्य गुना अधिक सम्पन्न है। उसे कुरेदा, उभारा और उछाला जा सके तो मनुष्य इसी जीवन में असीम शक्ति का स्वामी बन सकता है। जीवन-मुक्ति का आनन्द ले सकता है। आत्म-शक्ति के जागरण और आत्म-साक्षात्कार की दिव्य उपलब्धियों से लाभान्वित होने के लिए अन्तरंग जगत की आत्म साधना का अवलम्बन लेना आवश्यक है।


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