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December 1981

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यही जीवन का सच्चा सुख है- ऐसे उद्देश्य में जिसे तुम स्वयं ही महान् समझते हो, काम आ जाना, इसके पहले कि तुम घूरे पर रद्दी की तरह उठा कर फेंक दिये जाओ, काम करते-करते पूर्ण रूप से घिस जाना। प्रकृति की एक शक्ति बन जाना कहीं अच्छा है, बजाय इसके कि तुम रोग और आपत्तियों की एक ज्वर पीड़ित, स्वार्थ पूरित, क्षुद्र पीड़ा बने हुये रोते फिरो कि दुनिया तुमको सुखी बनाने की ओर कुछ ध्यान नहीं देती।

-जार्ज बर्नार्ड शा


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