यज्ञमय कर दो दयामय (kavita)

December 1981

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मानवी जीवन हमारा यज्ञमय कर दो, दयामय। सृष्टि को सुरभित करें हम, शक्ति वह भर दो दयामय॥

विश्व यह सारा बना दें एक पावन यज्ञशाला, ज्ञान-दीपक का यहां पर हो सदा अभिनव उजाला, यज्ञकुंडों से सजे हों ये सभी भूखण्ड सुन्दर, संगठन की शक्ति-ज्वाला हो प्रकट इनमें प्रखरतर,

भावना मंगल-कलश-सी शांत सुखकर दो, दयामय। सृष्टि को सुरभित करें हम, शक्ति वह भर दो दयामय॥

आचमन में धो सकें हम, सब कलुष तन-मन-वचन के, अंग सब इस देह के हों उपकरण दैनिक हवन के, देवताओं को करें सत्कर्म की आहुति समर्पित, सौम्यता की शर्करा हो, नेह का निर्मल नवल घृत,

हो वसोधारा न खंडित, भाव उर्वर दो, दयामय। सृष्टि को सुरभित करें हम, शक्ति वह भर दो दयामय॥

लक्ष्य अपना पूर्ण करलें, अंत पूर्णाहुति वही हो, मंत्र हों सिद्धांत जिनमें त्याग की ध्वनि रम रही हो, आरती ऐसी करें परमार्थ हो जगमग जगत में, शंख-सी गूंजे विजय की साधना नित पुण्य-पथ में,

युग नया रच दें, यही संकल्प दृढ़ कर दो, दयामय। सृष्टि को सुरभित करें हम, शक्ति वह भर दो दयामय॥

*समाप्त*


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