अन्तर्जगत के सन्देशवाहक-पूर्वाभास

November 1977

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पूर्वाभास का इतिहास मानवीय अस्तित्व जितना पुराना है और आये दिन उसमें एक से एक विलक्षण अध्याय जुड़ते रहते हैं। इटली निवासी अल्बटों अस्करी, जिन्हें तेज कार चलाने की ग्रान्ड प्री कार प्रतियोगिता के वर्ष 1953 तथा 1954 में सर्वप्रथम आने का पुरस्कार मिल चुका था, के जीवन में भी इस तरह का लोमहर्षक क्षण आया जब उनकी मृत्यु उन्हें पूर्व ही आकर दर्शन दे गई। 1955 में जिन दिनों वह पुनः रेस में भाग लेने की तैयारी कर रहे थे। उन्हें 20 वर्ष पुरानी 8 सितम्बर 1935 की एक घटना याद हो आयी। तब अल्बर्टो 16 वर्ष के बालक थे। उन दिनों कार-रेस में उनके पिता एन्टोनियो अस्करी शीर्ष स्थान पर थे। उस वर्ष की प्रतियोगिता में पिता के साथ कार में पुत्र अल्बर्टो भी दौड़ रहे थे। जिस समय कार वायलोन का घना जंगल पार कर रही थी, एकाएक एक काली बिल्ली ने रास्ता काटा। बिल्ली को बचाने के लिए एन्टोनियो ने तेज स्टीयरिंग काटा, किन्तु तीव्र गति से चल रही गाड़ी नियन्त्रण खो बैठी और एक पेड़ से जा टकराई। ऐन्टोनियो का घटनास्थल पर ही देहावसान हो गया। न जाने क्यों उसी क्षण अल्बर्टो जो अब तक सकुशल था, को एकाएक ऐसा आभास हुआ कि 20 वर्ष बाद जब वह 36 वर्ष का होगा, उसकी भी इसी तरह मृत्यु हो जावेगी। यह आभास कुछ ही क्षणों में विश्वास में बदल गया।

दुर्घटना के चार दिन पूर्व जब एकाएक अल्बर्टो की तबियत खराब हुई तब तो उनका विश्वास कतई परिपुष्ट हो गया क्योंकि उनके पिता को भी ठीक चार दिन पूर्व तबियत बिगड़ी थी। उसका मन रेस में भाग लेने का नहीं कर रहा था। किन्तु उसके प्रशिक्षक भूतपूर्व कार रेस चैम्पियन लुई बिल्लोरसी ने उन्हें आश्वस्त किया- ऐसा कुछ नहीं होगा। उन्होंने इस अन्धविश्वास जैसी भीति के लिए अल्बर्टा को फटकारा भी, किन्तु नियति तो जैसे अभेद्य हो, अल्बर्टो ने नियत समय पर प्रतियोगिता के लिए अन्तिम अभ्यास के लिए अपनी कार स्टार्ट की। बिल्लोरसी की कार उसके पीछे थी। जैसे ही कार वायलोन के जंगल में उस स्थान पर पहुँची ठीक वही 20 वर्ष पूर्व का दृश्य-एक काली बिल्ली ने रास्ता काटा। अल्बर्टा ने हर चन्द बचने की कोशिश की, किन्तु कार एक दैत्याकार पेड़ से जा टकराई और अल्बर्टो ने वहीं अपनी जीवन लीला समाप्त कर दी।

इस घटना से दैवी विधान की निश्चितता सिद्ध की जा सकती है। वस्तुतः बात ऐसी नहीं है। किसी स्थान पर आग लगने से पूर्व धुँआ निकलता है। वह एक प्रकार से इस बात का संकेत होता है कि अभी समय है पानी डाल कर आग लगने के सम्भावित संकट को टाला जा सकता है, किन्तु कोई ध्यान न दे तो ईश्वर-विधान का क्या दोष।

पूर्वाभास की घटनाओं का वस्तुतः पूर्व दैवी चेतावनी के रूप में ग्रहण किया जाना चाहिए। हमारे बाह्य जगत की अपेक्षा, अन्तर्जगत की शक्ति और सक्रियता अदृश्य होकर भी कहीं अधिक प्रखर और प्रभाव पूर्ण होती है। मस्तिष्क में क्या विचार चल रहे होते हैं यह दिखाई नहीं देता पर क्रिया-व्यापार की समस्त भूमिका मनोजगत में ही बनती है। किसी व्यक्ति को किसी के मन की बात का पता चल जाये तो प्रकारान्तर से वह भी लाभ ले सकता है। पूर्वाभासों को इसी रूप में लिया जा सके तो अनिष्टकारी परिस्थितियों से बचना और लाभदायक सम्भावनाओं की तैयारी करना किसी के लिए भी सम्भव हो सकता है।

अन्तर्जगत विशाल और विराट् है उससे एक व्यक्ति ही नहीं बड़े समुदाय भी प्रेरित होते हैं। पूर्वाभास की ऐसी ही एक घटना यों है- अमेरफान वेल्स का एक छोटा कस्बा है। सन् 1975 के वर्षाफल की बात है समूचे कस्बे में एक अजीब खलबली मची। अधिकांश लोगों को या तो रात्रि के स्वप्नों में या दिन में यों अनायास ही पूर्वाभास होता कि उनकी मृत्यु शीघ्र ही हो जायेगी। अमेरफान वासियों की इस बेचैनी ने इस तरह सार्वजनिक चर्चा का रूप ग्रहण किया कि जर्मनी के सुप्रसिद्ध मानस शास्त्री जान मारकर को घटना के अध्ययन के लिए बाध्य होना पड़ा। सर्वेक्षण के मध्य उन्होंने पाया कि कस्बे के अधिकांश व्यक्तियों को इस तरह का पूर्वाभास हो रहा है। यही नहीं लोगों के चेहरे पर भय की रेखाएँ स्पष्ट झलकती थी।

मुश्किल से एक पखवाड़ा बीता था कि सचमुच समीप के पहाड़ से एक दिन ज्वालामुखी फटा-कोयले की राख का भयंकर तूफान उमड़ा और उसने देखते-देखते हजारों व्यक्तियों को मौत की नींद सुला दिया। एक स्कूल की दीवार में हुए भयंकर विस्फोट से तो 100 बच्चे एक ही स्थान पर मृत्यु के घाट उतर गये।

इस विद्यालय की एक नौ वर्षीय बालिका तब तो बच गई थी किन्तु घटना के 10 दिन बाद वह एकाएक अपनी माँ से बोली माँ-मैं मृत्यु से बिलकुल नहीं डरती। क्योंकि मेरे साथ भगवान रहते हैं। माँ ने समझा-बच्ची पूर्व घटना से भयाक्रान्त है इसलिए उसने उसे हृदय से लगाकर समझाया नहीं बेटी अब तो जो होना था हो गया अब तू निश्चित रह।

जान मारकर ने उस बालिका से भी भेंट की और पूछा बेटी तुम ऐसा क्यों सोचती हो? बालिका ने उत्तर दिया-क्योंकि मुझे अपने चारों ओर अंधकार दिखाई देता है। इस भेंट के दूसरे ही दिन मध्याह्न बच्ची का निधन हो गया। संयोग से उसे जिस स्थान पर दफनाया गया वह स्थान कोयले की राख की 5-6 फुट परत से ढका हुआ था। जान मारकर ने इस अध्ययन से यह भी निष्कर्ष निकाला कि समस्त प्राणि जगत एक ही चेतना के समुद्र से सम्बद्ध हैं यह सम्पर्क जितना प्रगाढ़ और निर्मल हो, जानकारियाँ उतनी ही अधिक और लाभ भी वैसा ही लिया जा सकता है। अतएव आध्यात्मिक साधनों द्वारा अन्तर्जगत का क्षेत्र विकसित किया जाना किसी भी भौतिक हित की अपेक्षा अधिक आवश्यक है।

मौन्टे कौसिनों के बिशप बेनेडिक्ट एक बार गिरजाघर की खिड़की के सहारे खड़े आकाश की ओर देख रहे थे। उन्हें लगा कि उनकी बहन श्वेत वस्त्रों में, बादलों में समाती चली जा रही हैं। यह दृश्य देखते-देखते उनके हृदय गति तीव्र हो उठी। वे तीन दिन पूर्व ही बहन स्कोलास्टिका से कौन्वेन्ट में मिलकर आये थे। तब वे पूर्ण स्वस्थ थीं, पर न जाने कैसे उन्हें यह दृश्य देखते-देखते यह आभास हुआ कि उनकी बहन की मृत्यु हो गई। दिन भर विचार आते रहते हैं, पर शरीर संस्थान प्रभावित नहीं होता। इस स्थल पर हृदय का धड़कना विशिष्टता का द्योतक था। सचमुच हुआ भी वैसा ही। जिस क्षण बेनेडिक्ट को यह स्वप्न आ रहा था, ठीक उसी समय उनकी बहन स्कोलास्टिका अपना इहलोक त्याग रही थी। पीछे पता चला कि मृत्यु के समय बहन ने सबसे अधिक अपने भाई बेनेडिक्ट को ही याद किया था। यह घटना इस बात की प्रमाण है कि भावनाओं की शक्ति और सामर्थ्य भौतिक शक्तियों की अपेक्षा बहुत अधिक है। यदि लोग इन्द्रियों के सुखों के छलावे में न आवें अपितु भावनाओं की सूक्ष्म सत्ता और महत्ता को समझ सके तो भौतिक जीवन भी बहुत अधिक सफल और सरस रूप में जिया जा सकता है।

पराविज्ञान की ड्यूक विश्व विद्यालय शाखा ने पूर्वाभास की असंख्य घटनायें संकलित की है। उसमें एक महिला की अनुभूति बहुत भाव भरे शब्दों में इस प्रकार अंकित है-मेरे पति स्नायुविक सन्निपात का लगभग 50 मील दूर एक कस्बे में इलाज करा रहे थे। उनका प्रतिदिन पत्र आता और उससे स्वास्थ्य की प्रगति का समाचार मिल जाता। एक दिन अनायास ही मेरे मन की बेचैनी बहुत अधिक बढ़ गई। मुझे लगा कोई फोन पर बुला रहा है सम्मोहित सी में फोन के पास तक गई पर उन अधिकारी महोदय के भय से फोन न कर सकी जिनका वह फोन था। मैंने यह बात अपनी पुत्री को भी बताई। दूसरे दिन पति का कोई पत्र नहीं मिला। तीसरे दिन एक साथ दो पत्र मिले जिसमें मेरे पति ने अपनी बेचैनी लिखते हुए ठीक उस समय फोन करने की बात लिखी थी जिस समय में फोन करने के लिए अत्यधिक और अनायास भाव-विह्वल हो गई थी। दूसरे पत्र में उन्होंने फोन न करने पर दुःख व्यक्त किया था। पत्र समय पर नहीं आया पर अन्तःप्रेरणा किस तरह मन को झकझोर गई यह रहस्य समझ में नहीं आया।

जीवित आत्मायें ही नहीं, हमारा अन्तरात्मा पवित्र और उत्कृष्ट हो, अन्तःकरण की आस्था बलवान हो और उसकी पुकार को हम सम्पूर्ण श्रद्धा से सुनने को तैयार हो तो, अन्तर्जगत में निवास करने वाली परमार्थ परायण, पितर और देव आत्माओं द्वारा भी आभास अनुभूतियाँ अर्जित की जा सकती है। अमेरिका के इंजन ड्राइवर होरेस एल. सीवर ने तो अपनी इस पूर्वाभास की विलक्षण क्षमता के कारण “किंग आफ दि रोड की सम्मानास्पद उपाधि पाई थी और उसकी गणना सर्वश्रेष्ठ रेल चालकों में की जाती थी। होरेस के जीवन की दो घटनायें इतनी विलक्षण थी जिनने सैकड़ों अमेरिकियों को अतीन्द्रिय सत्ता पर विश्वास करने के लिए बाध्य किया। होरेस धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। आत्मा के अस्तित्व पर उन्हें आस्था थी। भूत-प्रेतों पर वे पूरी तरह विश्वास करते थे। यही नहीं उनकी यह मान्यता भी थी कि घटनाओं से आगाह कराने का पूर्वाभास भी उन्हें कोई अपने साथ रहने वाली अतीन्द्रिय सत्ता ही कराती है।

घटना सन् 1890 की है-उन दिनों होरेस “बिगफोर” ट्रेन के ड्राइवर थे, जो अमेरिका के कैन्काकी शहर से चलकर इलिनास होती हुई शिकागो पहुँचती हैं एक दिन उन्हें एक मिलिटरी रेजीमेण्ट शिकागो पहुँचाने का कार्य सौंपा गया। गाड़ी 60 मील प्रति घण्टा की गति से चल रही थी। एकाएक उन्हें लगा कि इंजिन कक्ष में किसी की आवाज गूँजी-सावधान खतरा है। आगे पुल जला हुआ है। जबर्दस्त विश्वास के साथ होरेस उठ खड़े हुए और पूरी शक्ति से गाड़ी रोकने का उपक्रम किया गाड़ी बीच में ही रुक जाने से परेशान कमाण्डर नीचे आये और गाड़ी रोकने का करण पूछा तो होरेस ने अपने पूर्वाभास की बात बताई। कमाण्डर बहुत बिगड़ा और गाढ़ी स्टार्ट करने का आदेश दिया किन्तु होरेस ने स्थिति स्पष्ट हुए बिना गाड़ी चलाने से स्पष्ट इनकार कर दिया। पता लगाया गया तो बात सच निकली कमाण्डर ने केवल क्षमा याचना की अपितु हजारों सैनिकों की जीवन रक्षा के लिए होरेस को हार्दिक धन्यवाद दिया किन्तु होरेस कृतज्ञता पूर्वक यही कहते रहे यह तो उन अज्ञात आत्मा की कृपा है जो मुझे ऐसा अनुभव कराते रहते हैं।

एक बार तो शिकागो से लौटते समय बड़ी ही विलक्षण घटना घटी। तब एकाएक उन्हें किसी ने कहा सामने इसी पटरी पर दूसरी गाड़ी आ रही है, गाड़ी तुरन्त पीछे लौटाओ। बड़ी कठिन परीक्षा थी, किन्तु अदम्य विश्वास के सहारे होरेस ने पूरी शक्ति और सावधानी से गाड़ी रोक दी और उसकी रफ्तार पीछे को कर दी। गाड़ी में बैठे यात्री चालक की सनक पर झुँझला ही रहे थे कि सामने से धड़धड़ाता हुआ इंजन इस गाड़ी पर चढ़ बैठा। एक ही दिशा होने और सम्भल जाने के फलस्वरूप किसी भी यात्री को चोट नहीं आई मात्र इंजन को मामूली क्षति पहुँची। पीछे सारी बात ज्ञात होने पर यात्री होरेस के प्रति कृतज्ञता से आविर्भूत हो उठे, साथ ही इस विलक्षण पूर्वाभास पर वे आश्चर्य चकित हुए बिना भी न रह सके।

सन्त सुकरात को भी इसी तरह पूर्वाभास होता था पूछने पर वे कहते थे- कोई ‘डीमन’ उनके कान में सब कुछ बता जाता है। होरेस की स्थिति भी ठीक वैसी ही है।

इस तरह के अतीन्द्रिय प्रत्यक्ष बोध जब कसौटी पर सत्य पाये गये तब वैज्ञानिकों को भी उसके सत्य तक पहुँचने की जिज्ञासा जागृत हुई। इस समय इंग्लैण्ड, अमेरिका, जर्मनी, रूस, चैकोस्लोवाकिया, नीदरलैण्ड आदि अनेक प्रमुख देशों में “परामनोविज्ञान” की शाखाओं का तेजी से विकास हो रहा है जो इस तरह की घटनाओं से विस्तृत अध्ययन और विवेचन द्वारा वस्तु स्थिति तक पहुँचने का प्रयास करती है। अतीन्द्रिय बोध या पूर्वाभास को तीन खण्डों में विभक्त करते हुए रूसी परा मनोवैज्ञानिक की मान्यता है कि मनुष्य के “मन” में कुछ ऐसे तत्त्व विद्यमान हैं, जिनकी जानकारी विज्ञान को तो नहीं है किन्तु यदि उनका विकास और नियन्त्रण किया जा सके तो यह एक नितान्त सामान्य वैज्ञानिक प्रक्रिया के रूप में सामने आ सकता है। उनके अनुसार यह इन्द्रियों को क्षमता विस्तार का एक अति प्रारम्भिक चमत्कार हैं मनीषियों का मत भी यही है कि मन की सामर्थ्य अनन्त और अपार है उसे जितना अधिक पैना, केन्द्रित और सूक्ष्म ग्राही बनाया जायेगा वह उतना ही अधिक विलक्षण और चमत्कारी ज्ञान-विज्ञान अनुभूति और क्षमताओं से विभूषित होता चला जायेगा।

पूर्वाभास की तीन कक्षाएँ है (1) पारेन्देय ज्ञान- (टेलीपैथी) या किसी जीवित व्यक्ति द्वारा घनीभूत स्मृति, अत्यधिक भावुक होकर हृदय से किसी को पुकारना या सन्देश देना (2) अतीन्द्रिय ज्ञान (ड़ड़ड़ड़) जिसमें अपनी स्वतः की क्षमताएँ विस्तृत होकर घटना स्थल से सायुज्य स्थापित करती और अपनी अन्तःस्थिति के अनुरूप स्थिति का बोध करती है। (3) पूर्व संचित ज्ञान-अर्थात् पूर्व जन्मों की स्मृति जो मस्तिष्क में साइनेप्सेस (मस्तिष्क में भूरे रंग का एक पदार्थ होता है।) उसमें कुछ उस तरह की विलक्षण आड़ी टेढ़ी लाइनें होती है। जैसे राख के ढेर में किसी कीड़े के रेंग जाने से पड़ जाती है। इन्हें “साइनेर्प्सस” कहते हैं। इनमें जब मन एक क्षण के लिए एकाकार होता है तो ग्रामोफोन या टेपरिकार्डर पर सुई घूमने से उत्पन्न ध्वनि की तरह पूर्वाभास या भविष्य ज्ञान ऐसा हो सकता है मानसिक संस्थान की रचना जितनी विलक्षण है उतनी ही अद्भुत शक्ति क्षमताओं से वह ओत-प्रोत भी है। बिना तार के तार से भी उन्नत प्रकार से यदि इस तरह प्रकृति के अन्तराल के रहस्य कभी अनायास ही समझ में आ जाये तो इस मानसिक संस्थान को प्रौढ़ बनाकर उसे विकसित करके तो और भी महत्त्वपूर्ण लाभ-योगियों जैसी सिद्धियाँ सामर्थ्य प्राप्त की जा सकती है।


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