मोमबत्ती क्यों बुझी हुई है (Kahani))

November 1977

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एक पिता की इकलौती लाड़ली नन्ही-सी बिटिया बीमार पड़ी। इलाज और उपाय की सीमा पार कर लेने पर भी उसे बचाया न जा सका। बाप का कलेजा टूट गया। व्यथा के आँसू रुकते न थे। सो उसने एकान्त साधा। संसार से उसे बुरी तरह विरक्ति हो गई।

रोते रोते वह एक रात गहरी नींद में सो गया। सपना आया-वह देव लोक जा पहुँचा है ओर वहाँ श्वेत वस्त्र धारी नन्हे बालकों का अत्यन्त लम्बा जुलूस निकल रहा है। सभी बच्चे प्रसन्न है और हाथ में जलती मोमबत्ती लिये आ रहे है।

सपने को वह बहुत ही रुचिपूर्वक देखता रहा। उस पंक्ति में उसकी प्यारी बिटिया भी आ गई। वह उससे लिपट गया और हिचकियाँ ले ले कर रोने लगा। जब धीरज बँधा तो देखा और सब बच्चों की मोमबत्ती जो जल रही है वह अकेली उसी बिटिया की बुझी हुई है।

आदमी ने पूछा-बेटी तुम्हारी मोमबत्ती क्यों बुझी हुई है। बच्ची ने उदास होकर कहा-पापा साथ वाले बच्चे उसे बार-बार जलाते हैं पर आपके आँसू टपक-टपक कर उसे हर बार बुझा देते हैं।

आदमी की नींद खुल गई। उसने आँसुओं से बिटिया का हास प्रकाश बुझने न देने का निश्चय किया और फिर पहले की तरह सामान्य जीवन जीने लगा।


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