महात्मा गाँधी

November 1977

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मैं अनुभव करता हूँ कि कोई अनिर्वचनीय शक्ति इस संसार में संव्याप्त है। इतने पर भी उसे आँखों से देख नहीं पाता। क्योंकि वह इन्द्रिय क्षमता से परे है। यद्यपि तर्क के द्वारा ईश्वर का अस्तित्व सिद्ध करना एक सीमा तक ही सम्भव है तो भी इस परिवर्तन शील जगत में एक जीवित सर्वव्यापी और अपरिवर्तित शक्ति का सहज आभास मिलता है। यही ईश्वर है।

मैं देखता हूँ कि मृत्यु के बीच में जीवन अमर है। असत्य के घटा टोप में भी वह अपना अस्तित्व संजोये हुए हैं। अन्धकार के बीच भी प्रकाश जीवित है। अतएव मैं इस परिणाम पर पहुँचता हूँ कि ईश्वर जीवन, सत्य और प्रकाश है। उसकी सत्ता आस्था रखने ही योग्य है।

-महात्मा गाँधी


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