प्राण जाय पर वचन न जाई

July 1975

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महाभारत के विश्वयुद्ध के प्रायः समस्त भूखण्ड के नरेशों, अधिपतियों ने भाग लिया था। कोई दोनों पक्षों के समर्थक बनकर अपनी वाहनियों सहित सफ्रिय भाग ले रहे थे, तो कुछ तटस्थ प्रेक्षक के रूप में भी वहाँ उपस्थित थे। ऐसे ही तटस्थ दर्शकों में था बब्रू वाहन-सबसे कम वय का नरेश ! महाभारत के युद्ध में दर्शक बनकर जाने की आकाँक्षा माँ के सम्मुख व्यक्त की तो माँ ने कहा-बेटा तुम जैसे क्षत्रिय और शूरवीर के लिए इस युद्ध में तटस्थ रहना लगभग असम्भव ही होगा। दोनों पक्ष जिस भीषणता के साथ लड़ेंगे उसे देखकर निस्तेज और निर्बल व्यक्ति का भी आविष्ट होना स्वाभाविक होगा, इसलिये पहले मुझे यह बताओ कि ऐसा अवसर आया तो तुम किस ओर से मैदान में उतरोगे।

जिस पक्ष को मातुश्री का समर्थन प्राप्त हो-मातृ-परायण बब्रू वाहन का कहना था। बब्रू वाहन अपने समय का अजेय योद्धा था और जिस ओर से वह लड़ता, उसके शत्रु पक्ष में विनाशकारी कहर गिरना सुनिश्चित ही था। इसलिये माँ ने कहा-बेटा ! वीरों की मर्यादा है निर्बल की सहायता करना। कौरव और पाण्डव दोनों ही हमें समान रूप से प्रिय है। इसलिए जहाँ तक हो सके तुम तटस्थ ही रहना फिर भी कदाचित न रह सको तो उसी पक्ष का अपना समर्थन देना जो निर्बल हो रहा हो।

बब्रू वाहन मातृ-आज्ञा को शिरोधार्य कर रणागण में पहुँचा। दोनों ही पक्षों ने इस अजेय योद्धा को देखा तो अपनी-अपनी ओर मिलाने की लालसा लेकर पहुँचे परन्तु बब्रु वाहन ने अपने संकल्प का संदर्भ देकर संप्रति तटस्थ रहने की बात स्पष्ट कर दी।

युद्ध आरम्भ हुआ।

दुर्जेय वाहनियों और अचूक शस्त्रास्त्रों से युद्ध के होते हुए भी कौरव सेनायें कमजोर पड़ने लगी। लगने लगा कि बब्रू वाहन अब युद्ध में उतरेगा ही।

भगवान कृष्ण ने इस अनर्थ को रोकने के लिए ब्राह्मण का वेश बनाया और जा पहुँचे बब्रू वाहन के पास। युवराज ने ब्राह्मण वेशधारी कृष्ण को प्रणाम किया तो श्रीकृष्ण बोले-शुभाशीष ! वत्स ! तुम्हारी जय हो।

बब्रू वाहन ने पूछा-कहिए महात्मन् कैसे आना हुआ। अब तक तटस्थ कैसे बने हो। तुम्हारी कीर्ति के सम्बन्ध में हमने बहुत कुछ सुना है।

‘प्रभु ! मैं। अपनी माँ के सम्मुख प्रतिज्ञाबद्ध हूँ कि दुर्बल की सहायता करूंगा कुछ समझ में नहीं आ रहा। आप ही स्पष्ट कीजिये ना। कौन दुर्बल है। पाण्डव तो अभी जमकर लड़ रहे हैं और कौरवों में भी खूब दम हैं।

‘मैं कुछ नहीं कहना चाहता वत्स ! हमें इन राजनैतिक मसलों से क्या सम्बन्ध। हम तो भिक्षा जीवी ब्राह्मण ठहरे। बन पड़े तो अपनी स्थिति के अनुरूप कुछ दीजिये।

ब्राह्मण कृष्ण ने याचना की।

‘माँगिये विप्र श्रेष्ठ ! आप जो भी चाहो, हम देने को तैयार है। ब्राह्मणों की इच्छा पूरी करना तो हमारा कर्त्तव्य है।’

‘ठीक है वत्स ! लेकिन जो मैं माँगना चाहता हूँ शायद तुम न दे सको।’

‘माँग कर तो देखो पूज्यपाद। यदि न दे सकूँ तो आप मेरा सिर उतार लेना।’

‘तो ठीक है ! सिर ही दे डालिये’-भगवान कृष्ण ने अपना मंतव्य कहा। बब्रूवाहन आश्चर्यान्वित तो हुआ परन्तु उसने अपना वचन नहीं तोड़ा और तत्काल ही खड्ग से अपना सिर काटकर याचक के भिक्षापात्र में रख दिया। अन्तिम साँस लेने में कुछ समय लगा और इसी बीच भगवान कृष्ण ने वास्तविकता बता दी। अपनी वचन मर्यादा का निष्ठापूर्वक पालन करते हुए बब्रू वाहन ने प्रयाण कर दिया।


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