निरीह प्राणियों से सीख (kahani)

July 1975

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अल्जीरिया की मडामनेपियर के पास एक कुत्ता था। वह नित्य ही एक झोला मुँह में लटका कर जाता। डबलरोटी वाला गिनकर बारह डबलरोटी उसमें रख देता और वह ले आता। कुछ दिन से ग्यारह ही रोटियां आने लगी। मालिक ने दुकानदार से पूछा। मालूम पड़ा कि मैं तो बारह ही रखता हूँ। तब कुत्ते की छिपकर जाँच की गई। पाया गया कि बाहर एक बीमार कुतिया है। एक रोटी नित्य वह झोले में से उसे ही दे आता है। तब तेरह रोटियाँ भेजने का कहा गया। घर पर बारह रोटियाँ पहुँचने लगी। कुछ दिन बाद घर पर तेरह रोटियाँ पहुँची। तब फिर पता लगाया गया और पाया गया कि वह कुतिया अब चलने-फिरने योग्य हो गई है और अपना भोजन स्वयं जुटा लेती है।

काश! छल, बेईमानी, स्वार्थपरता तथा अविश्वास की ओर दौड़ता हुआ मानव इन निरीह प्राणियों से ही कुछ सीख सकता है।


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