अपने संकुचित दृष्टिकोण से जब हम संसार को देखते हैं तो वह बड़ा संकीर्ण और तुच्छ दिखाई पड़ता है। जब उसे स्वार्थ दृष्टि से देखा जाता है तब वह स्वार्थ ग्रस्त दीखता है। किन्तु जब उसे उदार और मित्रता की दृष्टि से देखा जाता है, तो संसार में हमें मित्रता उदारता और सज्जनता की भी कमी दिखाई नहीं देती ।