कन्फ्यूशियस का अंतिम सन्देश (kahani)

September 1974

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

चीन के दार्शनिक कन्फ्यूशियस वृद्धावस्था के अन्तिम दौर से गुजर रहे थे। मृत्यु शय्या पर पड़े थे। अब उन्हें अपनी साँसों पर विश्वास नहीं रह गया था। जाने कौन−सी साँस ऐसी होगी जो एकबार निकलने के बाद पुनः लौटकर न आयेगी। जीवन के इस अन्तिम दौर में भी उनका चिन्तन और मनन देखते ही बनता था। कभी−कभी वह गम्भीर समस्या को लेकर उलझ जाते थे और घण्टों लगे रहकर उसका समाधान प्रस्तुत करते थे।

कन्फ्यूशियस की अस्वस्थता का समाचार मित्रों, परिचितों तथा शिष्यों को जैसे ही मिला, सब दौड़ पड़े अन्तिम दर्शन को। एक शिष्य काफी दूर से आया था उन्हें प्रणाम कर चरणों के पास बैठ गया और बोला—’गुरुदेव! वैसे तो आप जीवन भर हमें सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते रहे हैं, पर मैं चाहता हूँ कि इस समय भी कोई ऐसी बात बतायें जो सम्पूर्ण जीवन के उपदेशों का निचोड़ हो।

कन्फ्यूशियस ने कहा—‘वत्स! जरा मेरे मुँह में तो देखो जिह्वा है या नहीं।’

उपस्थित सभी लोग यह बात सुनकर दंग रह गये। सोचने लगे यदि इनके जीभ न होती तो यह कैसे बोलते, हाँ यह अवश्य है कि अस्वस्थता के कारण स्पष्ट रूप से अपनी बात, नहीं कह पा रहे हैं जिह्वा लड़खड़ा रही है।

शिष्य आज्ञाकारी था, गुरु की बात को टाल नहीं सकता था। उसने उठकर उनके खुले मुँह में देखा कि जीभ ही जीभ है दाँत तो एक भी नहीं। कन्फ्यूशियस ने अपनी रहस्यमयी दृष्टि से सबको देखते हुए कहा—’जीभ तो जन्म के साथ आई थी, पर दाँतों का आगमन बाद में हुआ था, बाद में आने वाले दाँत पहले ही विदा हो गये और जीभ आज भी मौजूद हैं।’

सभी व्यक्ति एक दूसरे का मुँह देख रहे थे। गुरु द्वारा पूछी गई बात का उत्तर किसी के पास न था। कुछ क्षण बाद गुरु ने ही अपने मौन को तोड़कर कहना शुरू किया—’क्या आप नहीं जानते? दाँत क्रूर और कठोर होते हैं इसलिये बाद में जन्म लेने पर भी पहले समाप्त हो गये जिह्वा कोमल होती है वह आज तक बनी हुई है। मेरा तुम सबको अन्तिम समय यही सन्देश है कि हमें जिह्वा की तरह कोमल होना चाहिये, दाँतों की तरह क्रूर और कठोर नहीं। सदैव स्मरण रखना कि कोमलता दीर्घजीवी और कठोरता अल्पजीवी, शीघ्र नष्ट होने वाली है अतः आप लोग अपने स्वभाव को कोमल बनायें कठोर नहीं।’


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118