असफलता को अभिशाप न समझें

September 1974

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आकाँक्षा और सफलता नदी के दो तटों की तरह हैं; जिनके बीच पानी की प्रचंडधारा बहती है। एक तट से दूसरे तक जाने के लिए साहस भरे प्रयास करने पड़ते हैं और आवश्यक साधन जुटाने पड़ते हैं। तैरना सीखने से लेकर नाव का आश्रय लेने तक के अनेक उपाय अपनाने पड़ते हैं और लहरों तथा भँवरों के साथ टकराते हुए धारा की प्रचण्डता को पार करना पड़ता है। आकाँक्षा को सफलता की स्थिति तक पहुँचाने के लिए भी लम्बे, कठिन और जटिल मार्ग को पार करने वाली कष्ट साध्य तप साधना करनी पड़ती है।

प्रगति की आकाँक्षाएँ करना न तो बुरा है और न अनुचित। साहसी और मनस्वी व्यक्ति की मनःस्थिति ऐसी ही होनी चाहिए कि वह बढ़े−चढ़े सपने गढ़े और उनकी पूर्ति के लिए उत्कृष्ट पुरुषार्थ में निरत रहकर अपनी समर्थ साहसिकता का परिचय दे। सफलता का वरदान ऐसे ही कर्मनिष्ठ व्यक्तियों के लिए सुरक्षित रखा गया है।

प्रगति का पथ अवरोधों से रहित नहीं है। उसमें पग−पग पर व्यवधान और अवरोध बिछे होते हैं। बड़ी सफलताएँ बड़े व्यक्तित्वों के लिए प्रकृति ने सुरक्षित रखी हैं। कायर और कमजोर लोग भी उन्हें प्राप्त करने लगें तो फिर मनुष्यों की उस गरिमा का विकास कैसे होगा, जिसके आधार पर महत्वपूर्ण सफलताओं का गौरवास्पद उपहार मिला करता है।

अवरोधों का ही दूसरा नाम असफलता है। उनका सृजन इसलिए हुआ है कि मनुष्य अपनी निष्ठा एवं तत्परता का परिचय दे सके। धैर्य और साहस के साथ ही क्रमिक गति से प्रगति के पथ पर बढ़ा जाता है। इन अवरोधों में कुछ ऐसे भी होते हैं जो असफलता जैसे भयावह दीखते हैं। इन्हें देखकर न तो ठिठकने की आवश्यकता पड़नी चाहिए और न निराश एवं अधीर ही होना चाहिए। बड़े प्रयासों में बीच−बीच में सुधार एवं परिवर्तन भी आवश्यक होते हैं। इन्हीं को असफलता कह सकते हैं। हर असफलता से मनस्वी व्यक्ति सीखते हैं—भूलों को सुधारने की—अधिक हिम्मत, सूझ−बूझ और तत्परता से काम करने की प्रेरणा देने के लिए ही वे आती हैं। सरलतापूर्वक सफलता प्राप्त करने वालों की प्रतिभा उतनी नहीं निखरती जितनी कि असफलताओं से लड़ते हुए—व्यवधानों को कुचलते हुए चलने वालों की। सफलता का अपना उतना महत्व नहीं, जितना उस मंजिल को पार करते हुए प्रतिभा का विकास करने का। सफलता की उपलब्धि क्षणिक प्रसन्नता देने के बाद विस्मृति के गर्त में जा गिरती है फिर उसका कोई महत्व नहीं रह जाता। किन्तु उस प्रयास में जो श्रमशीलता जगाई गई थी, जागरूकता विकसित की गई थी और धैर्ययुक्त साहसिकता बढ़ाई गई थी उससे उत्पन्न हुई प्रतिभा का लाभ चिरस्थायी ही बना रहेगा।

असफलता न तो लज्जा की बात है और न दुखी होने की। कई बार सुयोग्य और पुरुषार्थी व्यक्ति परिस्थितिवश असफल होते देखे गये हैं। हर प्रयत्नशील को सफलता मिलनी ही चाहिए इसकी कोई गारंटी कोई गारंटी नहीं। शारीरिक श्रम, मानसिक लगन और साँसारिक परिस्थितियों के समन्वय से ही सफलता सामने आती है। यदि कभी असफल रहना पड़े तो इतना ही सोचना चाहिए कि अभी अधिक परिश्रम और मनोयोग के साथ प्रयत्नरत, होने की आवश्यकता है। दूने उत्साह और चौगुने साहस को विकसित करने वाली असफलता वीर पुरुषों के लिए वरदान बन जाती है और उसका चिरस्थायी लाभ उन्हें सस्ती और सरल सफलता की अपेक्षा सैकड़ों, हजारों गुना अधिक मिलता है। असफलता की चुनौती स्वीकार करके जो अधिक मिलता है। असफलता की चुनौती स्वीकार करके जो अधिक साहसपूर्वक आगे बढ़े हैं उनने अगली बार न केवल अधिक महत्वपूर्ण सफलता ही पाई है, वरन् प्रतिभा की प्रखरता का दुहरा लाभ भी लिया।


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