क्या प्रेतात्माओं का अस्तित्व काल्पनिक है

September 1974

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मरने के बाद पुनर्जन्म मिलता है। इसके मध्यवर्ती समय में कुछ अवधि विश्राम के लिये मिलती है। आमतौर से आत्मायें इस काल में लम्बी जिन्दगी में अनवरत रूप से किये गये श्रम की थकान उतारती रहती हैं और गहरी निद्रा में सोई पड़ी रहती हैं। जैसे दिन भर काम करने के उपरान्त रात्रि में, सो लेने के उपरान्त प्रातःकाल ताजगी आती है और नई शक्ति के साथ नये सिरे से उत्साहपूर्ण मनःस्थिति में काम करना सम्भव हो जाता है उसी प्रकार इस मध्यावधि विश्राम के बाद मृतात्मा नवीन जन्म धारण करके नये सिरे से पुनर्जन्म का क्रियाकलाप आरम्भ करता है।

इस निद्रा काल में तरह−तरह के स्वप्न आते रहते हैं। सूक्ष्म शरीर का सचेतन मस्तिष्क समाप्त हो जाता है और अचेतन का ही जीव−सत्ता पर आधिपत्य रहता है। अचेतन में जैसे भले−बुरे संस्कार दबे पड़े होते हैं वे उभर कर दृश्य रूप धारण करते हुए सामने उपस्थित होते हैं। जिसने जीवन का अधिकाँश भाग दुर्भावनाओं और दुष्प्रवृत्तियों के रूप में दिखाई पड़ेगी। इसी अनुभूति का नाम नरक है। जिन्होंने श्रेष्ठ जीवन जिया, उत्कृष्ट चिन्तन और आदर्श कर्तव्य अपनाते हुए जिन्दगी का अधिकाँश समय बिताया उनके अचेतन में दिव्य संस्कार जगे रहते हैं और वे उस मरणोत्तर निद्रा काल में दिव्य स्वप्न बनकर उभरते हैं उस सुखद स्वप्न शृंखला को स्वर्ग कहते हैं। स्वर्ग नरके के सुहावने डरावने सपने यह छाया डालने आते हैं कि भविष्य में किस दिशा में चलना उपयुक्त और किस ओर चलना अनुपयुक्त रहेगा।

इसी अवधि में जिन्हें गहरी नींद नहीं आती—बेचैनी बनी रहती है उन्हें प्रेत स्तर का समय गुजारना पड़ता है। मरने के बाद स्थूल शरीर का अन्त हो जाता है, किन्तु सूक्ष्म शरीर यथावत् बना रहता है। प्राणी अपने आपको लगभग उसी स्थिति में उसी शरीर कलेवर में अनुभव करता है जिसमें जीवित स्थिति में था। अन्तर इतना ही होता है कि इन्द्रियों की सहायता से जो प्रत्यक्ष स्पर्श का सुख मिल सकता था वह नहीं मिलता। तरह−तरह के स्वाद सूक्ष्म इन्द्रियाँ अनुभव कर सकती हैं पर ये पदार्थ को उदरस्थ करने और उपभोग करने का वैसा रसास्वादन नहीं कर पातीं, जैसी कि स्थूल शरीर के रहते करती थीं। संसार के पदार्थों एवं व्यक्तियों को वह देखता है पर वह दूसरों को वायु भूत होने के कारण दीखता नहीं। पैर या पंख न होते हुए भी वह उड़ या चल सकता है। दूसरों के मस्तिष्क या शरीर में अपना प्रवेश कर सकता है और उसे अपने अस्तित्व का अनुभव आवेश के रूप में घटना या दृश्य के रूप में दे सकता है। बात−चीत, वाणी या शब्दावली के द्वारा तो नहीं कर सकता पर किन्हीं व्यक्तियों या पदार्थों के माध्यम से अपनी बात प्रकट कर सकता है। प्रेत अवस्था में जीवित स्थिति की अपेक्षा कुछ कमियाँ आ जाती हैं तो कुछ विशेषतायें बढ़ जाती हैं। इन सब बातों का प्रमाण प्रेतों के अस्तित्व अथवा क्रियाकलापों के ऐसे आधारों से मिलता है जिनकी यथार्थता तथ्यों की कसौटी पर कसे जानें से सर्वथा सत्य सिद्ध होती है।

सर ओलीवर लाज ब्रिटेन के माने हुए वैज्ञानिक रहे थे, उन्हें कई विश्वविद्यालयों की मूर्धन्य डिग्रियाँ और स्वर्ण पदक प्राप्त थे। वे ब्रिटिश ऐसोसियेशन के प्रधान थे। ईथर तत्व का पदार्थ के साथ क्या सम्बन्ध है, इस विषय पर उनकी खोज अत्यन्त प्रामाणिक मानी जाती है। उन्होंने विज्ञान के लिए आत्मा के अस्तित्व को भी एक आवश्यक अन्वेषण पक्ष माना था और स्वयं आगे बढ़कर इस सम्बन्ध में महत्वपूर्ण कार्य किया था। इसके लिए उन्होंने ‘साइकिक रिसर्च सोसाइटी’ की स्थापना की और उसे बहुमूल्य योगदान देकर अभीष्ट प्रयोजन के लिए अधिक काम कर सकने योग्य बनाया। सर ओलिवर लाज अपनी शोध दृष्टि का समुचित प्रयोग करके न केवल आत्मा का अस्तित्व और मरणोत्तर जीवन की यथार्थता स्वीकार करने की स्थिति में पहुँचे थे वरन् उन्होंने प्रेतात्माओं का साक्षात करने और उनके साथ संपर्क बनाने में भी सफलता प्राप्त की थी।

उनका पुत्र रेमण्ड प्रथम विश्व युद्ध में मारा गया था। मृतात्मा के साथ संपर्क बनाने और उसके माध्यम से अनेकों ऐसी अविज्ञात जानकारियाँ प्राप्त करने में सफल हुए जो परखने पर पूर्णतया सत्य सिद्ध हुई। उनके एक समकालीन वैज्ञानिक सर विलियम कुकस ने अपने प्रेतात्माओं सम्बन्धी निष्कर्षों का विवरण ‘रिसर्च इनन्टे फेनोमिनम आफ स्प्रिचुअलिज्म’ में प्रकाशित कराया है। उसमें सर ओलिवर लाज के शोध कार्यों का भी उल्लेख हुआ है।

विश्व विख्यात ‘लाइट’ पत्रिका के सम्पादक जार्ज लेथम की वह लेख माला पढ़ने ही योग्य है जो उन्होंने ‘मैं परलोकवादी क्यों हूँ’ शीर्षक से कई पत्रों में प्रकाशित कराई थी। उनका पुत्र जान भी फैलडर्स के मोर्चे पर महायुद्ध में मारा गया था। तोप के गोले ने उसके शरीर के टुकड़े−टुकड़े उड़ा दिए थे। फिर भी उसकी आत्मा बनी रही और अपने पिता के साथ संपर्क बनाये रही। लेथम ने लिखा है—मेरा पुत्र जीन स्वर्गीय माना जाता है पर मेरे लिए वह अभी भी उसी प्रकार जीवित है जैसे वह किसी अन्य नगर में रहते हुए भी पत्र, फोन आदि के माध्यम से सन्देशों का आदान−प्रदान करता हो। उनने अपनी मान्यता को भ्रम अथवा भावावेश जैसा न समझ लिया जाय इस आशंका का खण्डन करने वाले ऐसे प्रमाण प्रस्तुत किये हैं जिनके आधार पर मरणोत्तर जीवन पर सन्देह करने वालों को भी इस संदर्भ में प्रामाणिक जानकारियाँ प्राप्त करने और तथ्य तक पहुँचने में सहायता मिल सके।

सर ओलिवर लाज, सर विलयम क्रुक्स की तरह ही विज्ञान के क्षेत्र के अन्य प्रामाणिक विद्वान् भी मरणोत्तर जीवन और आत्मा के अस्तित्व पर अन्वेषण करते रहे हैं इनमें से डा. ए. रसल वालेस और सर विलियम वैरेट के नाम भी है, जिन्होंने आत्मा का अस्तित्व किन्हीं किम्वदंतियों अथवा पूर्व प्रचलित मान्यताओं के आधार पर नहीं वरन् उपलब्ध ठोस प्रमाणों के आधार पर ही स्वीकार किया था। इन प्रमाणों की चर्चा उन्होंने अपनी पुस्तकों में की है।

स्काटलैण्ड के सेन्ट कुर्री नामक गाँव में एक बालक जन्मा डेनियल डगलस होम। पिता दरिद्र और बालक रोगी। बच्चे को चाची ने पाला। चौदह वर्ष की उम्र तक वह ऐसे ही तरह−तरह की बीमारियों में ग्रसित रह कर ऐसे ही दिन काटता रहा। इसी बीच उसे यह अनुभव होता रहा कोई प्रेतात्मा उसके साथ सम्बन्ध बनाती है और तरह−तरह के सन्देश पहुँचाती है। डरते−डरते उसने वे संकेत अपने घर वालों और पड़ौसियों को बताये। पूर्व सूचनायें जब सही निकली तो उनका विश्वास बढ़ता गया। और अमुक समस्या का हल प्रेतात्मा से पूछकर बताने के लिए उसका उपयोग किया जाने लगा। जो परामर्श मिलते उनमें से अधिकाँश बहुत ही उपयोगी महत्वपूर्ण और अप्रत्याशित होते थे।

सन् 1850 का वर्ष और जुलाई का महीना था। उसकी चाची ने मेज पर भोजन की प्लेटें सजाई हुई थीं। अचानक प्लेटों के आपस में टकराने की आवाज आई। बाहर निकल कर उनने देखा तो पाया कि प्लेटें टूटी हुई जमीन पर पड़ी हैं। उनने इसका कारण होम की किसी हरकत को समझा। और उस पर बुरी तरह झल्लाई पर वह निर्दोष था। सिर झुकाये एक कोने में खड़ा था। उसने इतना ही कहा इसमें मेरा दोष नहीं है। चाची ने दूसरी घटना यह देखी कि टूटे हुए टुकड़े अपने आप इकट्ठे हो रहे हैं और जहाँ−तहाँ बिखरे न रहकर एक कोने में जमा हो रहे हैं। यह और भी अधिक आश्चर्यजनक था। समेटने वाला दिखाई कोई नहीं पड़ता। तोड़ने वाला कोई नहीं फिर प्लेटों में यह हलचल कैसे हो रही है। होम का प्रेतात्माओं से सम्बन्ध होने की बात और भी अधिक अच्छी तरह पुष्ट हो गई।

जब भूत−प्रेत की बात अधिक फैली तो चाची डर गई और उसने झंझट भरे होम को घर से निकाल दिया। वहाँ से वह इंग्लैंड चला गया। अपनी शारीरिक रुग्णता की चिकित्सा कराने के सिलसिले में उसका संपर्क डा. काक्स से हुआ। वे अध्यात्मवादी थे उनने न केवल रुचिपूर्वक इलाज ही किया वरन् लड़के की आत्मिक शक्ति को बढ़ाने में भी सहायता की ताकि वह परलोक की आत्माओं से अधिक अच्छा सम्बन्ध बना सकने में समर्थ हो सकें। इस साधना से उसे आश्चर्यजनक सफलता मिली। उसे प्रेतात्माओं को प्रामाणिक सन्देश वाहक माना जाने लगा। इस संदर्भ में इंग्लैंड के उच्चकोटि के व्यक्ति उससे अपना समाधान कराने के लिए मिलने आये और संतुष्ट होकर लौटे। इन ख्याति नामा लोगों में ईविनिंग पोस्ट के सम्पादक विलियम कुलेन ब्रामेट, प्रख्यात उपन्यासकार विलियम थेकर, प्रसिद्ध रसायन विज्ञानी सर क्रुक्स जैसे मूर्धन्य लोगों के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। इसकी विलक्षण प्रतिभा के सम्बन्ध में पत्र−पत्रिकाओं में कितने ही लेख घटनाक्रम के विवरणों सहित प्रकाशित हुए।

स्वर्गीय सम्राट् नेपोलियन का एक सन्देश लेकर वह 27 फरवरी 1860 को सम्राट् से मिला। सम्राज्ञी युजीन तो उन अद्भुत किन्तु यथार्थ सन्देशों से उतनी अधिक प्रभावित हुई कि पुरस्कार में होम को लाखों रुपये के बहूमूल्य उपहार दे डाले।

होम के पूर्व जन्म की पत्नी रूस में जन्मी थी वह उसी से विवाह करना चाहता था। पर यह कठिन था क्योंकि वह लड़ी रूस के शाही जनरल क्रोल की इकलौती पुत्री थी। इतने प्रतिष्ठित और सम्पन्न पिता की सुशिक्षित पुत्री एक बीमार और प्रेत व्यवसाय का उपहासास्पद धन्धा करने वाले के साथ कैसे ब्याही जा सकती थी विशेषतया ऐसी दशा में जबकि दोनों एक दूसरे से परिचित भी थे और सुदूर देशों में रहते थे। यह कठिन कार्य काउण्ट आफ माट किसी के प्रसिद्ध उपन्यासकार ड्यूमा ने अपने कन्धों पर लिया उनने सन्देह वाहक की सफल भूमिका निबाही और अन्ततः 8 अगस्त 1960 को दोनों का विवाह हो गया। दोनों ने मिलकर प्रेतात्मा विद्या के शोध कार्य को और भी आगे बढ़ाया।

होम 21 जून 1889 को मरा। इससे पूर्व वह अपने प्रेतात्माओं के अनुभव संदर्भ में एक खोजपूर्ण पुस्तक प्रकाशित करा चुका था—’लाइट्स एण्ड शैडोज आफ स्प्रिचुअलिज्म’ इस पुस्तक की भारी खपत हुई थी और होम को अच्छी कमाई हुई थी।

मृत्यु के समय उसकी पत्नी सिरहाने बैठी रो रही थी। होम ने उसे आश्वस्त करते हुए कहा—पगली, मैं मर कहाँ रहा हूँ, शरीर छूट जाने पर भी मैं तेरे साथ बराबर संपर्क बनाये रहूँगा। आत्मा और कला कहीं मरा करती हैं।

कुछ समय पूर्व इंग्लैंड के ख्यातिनामा कप्तान डेविड के ऊपर प्रेतात्मा के प्रकोप और उससे छुटकारे का घटना समाचार इंग्लैंड के प्रायः सभी प्रमुख पत्रों में छपा था। डेविड की गणना उस देश के मूर्धन्य सेनाध्यक्षों में की जाती थी, उनका विक्षिप्त हो जाना और हर घड़ी भयंकर प्रेत की छाया को अपने आस−पास उपद्रव करते देखना, एक असाधारण कौतूहल की बात थी। चिकित्सकों ने तरह−तरह के परीक्षण किए यहाँ तक कि मानसिक विकृति की आशंका को भी बारीकी से परखा, पर न तो उन्हें कोई शारीरिक रोग था और न मानसिक। इतने पर भी इस कदर भयभीत होना उन जैसे दुस्साहसी के लिए सर्वथा अप्रत्याशित था। वे धीरे−धीरे मरणासन्न स्थिति में जा पहुँचे थे।

एक प्रेत विद्याविज्ञ बुढ़िया को डेविड की पत्नी बुला कर लाई। वह आँखें बन्द करके ध्यान करती रही। पीछे उसने डेविड का चीन से खरीदर हुआ वह बहुमूल्य कोट मंगाया जो उन्हें अत्यधिक प्रिय था। बुढ़िया ने उसके अस्तर में लगे खून के धब्बे दिखाये और बताया कि एक व्यक्ति की हत्या इसी कोट को पहने हुए हुई थी। उसी आत्मा की छाया इस कोट के साथ रहती है। उसे भी यह अत्यधिक प्रिय है। वह किसी दूसरे का कब्जा इस पर नहीं देखना चाहती। जब तक कोट घर में रहेगा तब तक उस प्रेतात्मा का आतंक भी बना रहेगा।

बुढ़िया के परामर्श के अनुसार कोट उसी समय जला दिया गया और डेविड को उसी क्षण प्रेत के आतंक से मुक्ति मिल गई।

यह चन्द घटनायें ऐसी हैं जो संसार के मूर्धन्य व्यक्तियों से सम्बन्धित हैं और जिनकी चर्चा प्रख्यात ग्रन्थों में की गई है। इनका सम्बन्ध जिनसे है और जिन्होंने उनका उल्लेख किया है वे सभी ऐसे प्रामाणिक व्यक्ति हैं जिनके ऊपर किम्वदंतियां अथवा दन्त कथाऐं फैलाने का आरोप नहीं लगाया जा सकता। सामान्य घटनायें आये दिन प्रकाश में आती रहती है जिनसे प्रेत जीवन का अस्तित्व सिद्ध होता है और यह विश्वास सहज ही सुदृढ़ होता है कि मरने और पुनर्जन्म के बीच कुछ समय ऐसा भी होता है जिसमें सबको तो नहीं किन्तु कुछ तो प्रेत स्तर की स्थिति में रहना पड़ता है।

यहाँ प्रेत चर्चा का प्रसंग इसलिए चलाया गया है कि मरने के बाद जीवात्मा का अस्तित्व समाप्त होने की बात कहने वाले अधूरे ज्ञान के अत्युत्साहियों की बात को मिथ्या सिद्ध किया जा सके। भाँग पीने से जैसे नशा आता है; उसी प्रकार अमुक रासायनिक पदार्थों के मिलने से शरीर में चेतना उत्पन्न होती है और उसमें नशे जैसी विचार सत्ता की उत्पत्ति होती है ऐसा इन तथाकथित विज्ञान वेत्ताओं का कथन है। वे कहते हैं कि नशा उतारने पर जिस तरह मस्ती समाप्त हो जाती है वैसे ही शरीर का मरण होने पर जीवात्मा की सत्ता भी समाप्त हो जाती है। यदि वस्तुतः ऐसा ही हुआ होता तो पुनर्जन्म अथवा प्रेत अस्तित्व के कोई प्रमाण न मिलते। जबकि पुनर्जन्म की स्मृति को प्रामाणिक रूप से बताने वाले अनेकों बच्चों की असंदिग्ध साक्षियाँ सामने आती रहती हैं और प्रेतात्माओं के क्रियाकलापों की ऐसी घटनायें सामने आती रहती है जिन्हें झुठलाया नहीं जा सकता।

पुनर्जन्म की तरह प्रेतात्माओं की अस्तित्व भी जीवात्मा की अमरता को—मृत्यु के पश्चात् भी जीव सत्ता बने रहने के तथ्य को सिद्ध करता है। आत्मा की अमरता का सिद्ध होता अध्यात्मवाद और आस्तिकवाद का संपर्क प्रस्तुत करता है। इस यथार्थता के रहते कर्मफल की सच्चाई भी स्वीकार की जा सकती है, और तत्काल कर्मफल न मिलने पर भी नैतिकता एवं परमार्थ परायणता की आवश्यकता स्वीकार की जा सकती है।


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