परीक्षा-ज्ञान योग की एक विभूति है

October 1968

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परीक्षा-ज्ञान योग की एक विभूति है। पश्चिमी अध्यात्मवाद की परिभाषा में इस विद्या को परोक्ष-दर्शन (क्लेयर वोयेंस या सेकेंड साइट) कहते हैं। प्रत्यक्ष का ज्ञान तो हमको चक्षु आदि इन्द्रियों द्वारा हुआ करता है। परन्तु लोगों का ऐसा ख्याल है कि परोक्ष का ज्ञान इन्द्रियों के द्वारा नहीं हो सकता। यह विचार एक दर्जे तक ठीक है। परन्तु शक्तियों के विकसित हो जाने पर मस्तिष्क की कुछ विशेष-शक्तियाँ भी विकसित हो जाती हैं और उनसे परोक्ष-ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। हम जो ‘देखना’, ‘सुनना’ कहा करते हैं, उनकी असलियत पर विचार करने से पता चलता है कि तरकीब के साथ नियत संख्या में आकाश में उठे कम्पनों के प्रभाव के सिवा और कुछ नहीं है। उदाहरण के लिये श्रोतेन्द्रि पर विचार कीजिये।

इस इन्द्रिय के द्वारा हम वायु के उठी हुई तंरगों की एक लड़ी को ग्रहण किया करते हैं, जो मस्तिष्क में पहुँचकर क्षोभ उत्पन्न करती है और उसी क्षोभ को हम शब्द या ध्वनि कहते हैं। इसी प्रकार चक्षु-इन्द्रिय पर विचार कीजिये। इस इन्द्रिय द्वारा हम आकाश (ईथर) में वेगपूर्वक उठी हुई नियमित तरंगों को ग्रहण करते हैं। और उन्हीं तरंगों को ग्रहण करने से हम प्रकाश का अनुभव करते हैं। यही बात स्पर्श, स्वाद और सूँघना आदि के सम्बन्ध में भी कही जा सकती है। इसमें निकटवर्ती तंरगों का ग्रहण करना प्रत्यक्ष और दूरवर्ती तंरगों का ग्रहण करना परोक्ष कहलाता है। जब मनुष्य किसी प्रकार के अभ्यास द्वारा दूर की तंरगों का भी अनुभव करने लगता है तो उसको दूर-दर्शन का परोक्ष दर्शन-शक्ति प्राप्त हो जाती है। -नारायण स्वामी


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