उपकारी रैकून

October 1968

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उपकारी रैकून :-

अमेरिका के जन्तु संग्रहालय में एक बिज्जू की तरह का छोटा-सा जंतु रैकून भी पाला जाता है। यह अत्यंत आह्लाद प्रिय होता है। अप्रसन्न होना उसके स्वभाव में नहीं। बड़ा स्नेही और आल्हाद प्रिय प्रकृति का होता है, साथ ही किसी वस्तु को गहराई तक जानने की उसमें इतनी प्रबल जिज्ञासा होती है कि कई बार प्राण तक संकट में डाल देता है।

एक बार एक बल संग्रहालय अवलोकनार्थ आया। उसमें छोटे-छोटे बच्चे भी थे। एक बालिका ने रैकून को मिठाई की टिकिया खिलाईं। रैकून को वह बहुत पसन्द आईं। उस बालिका के साथ खेलता भी रहा और मिठाई भी खाता रहा। थोड़ी देर में दल के लोग विश्राम के लिये तंबुओं में चले गये।

सब लोग तो सो गये पर रैकून को अपने मित्र बालिका की याद आ रही थी। जब बेचैनी उससे सम्भाली न गई तो चुपचाप कठघरे में निकलकर तंबुओं में जा पहुँचा। बालिका सो रही थी, इसलिये रैकून उसकी गोद में लोट-पोटकर जगाने का प्रयत्न करता किंतु जब वह न जागी तो उसे मिठाई याद आ गई। सिरहाने पर रखे डब्बे से मिठाई ढूंढ़ने लगी।

इसी बीच उसने देखा कि छः बुन्दों वाला एक जहरीला कीड़ा उस लड़की की ओर बढ़ रहा है। अपने अपरिचित मित्र को बचाने के लिये उसने अपने शरीर से ही कीड़े को भगाया। कीड़े ने उसे काट लिया पर रैकून ने उसे आगे न बढ़ने दिया। तब तक और लोग जाग पड़े और कीड़े को मार दिया गया।

संग्रहालय के अधिकारी ने रैकून को स्नेह से थपथपाते हुये कहा- ‘‘हम मनुष्य चाहें तो इन जन्तुओं से हँसना, प्रसन्न रहना ही नहीं प्राणि-मात्र के प्रति उपकार का पाठ भी सीख सकते हैं।


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