कभी-कभी स्वप्न भी सच होते हैं।

October 1968

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भारतीय दर्शन-शास्त्रों में स्वप्न को जीवन की तीन अवस्थाओं- जागृत, स्वप्न, सुषुप्ति में एक माना गया है। उसके प्रतिपादन के अनुसार सभी स्वप्न कोई काल्पनिक विचार या पेट की खराबी के मस्तिष्क के गर्म हो जाने के फलस्वरूप दिखाई पड़ने वाले ऊल-जलूल दृश्य मात्र नहीं हैं, वरन् उनका संबंध मानसिक और आध्यात्मिक जगत से है। उनकी मान्यता है कि स्वप्न पूर्व और वर्तमान जन्मों के संस्कारों और कर्मों के फलस्वरूप दिखाई देते हैं और उनका कुछ न कुछ आशय और परिणाम भी अवश्य होता है। हमारे देश के अधिकाँश व्यक्ति तो उनको शुभाशुभ घटनाओं का सूचक मानते हैं और उनकी यथार्थता में बहुत विश्वास रखते हैं।

आधुनिक वैज्ञानिक स्वप्न का संबंध अंतर्मन में जमे हुए प्राचीन और नवीन संस्कारों और प्रतिदिन होने वाली नई और पुरानी घटनाओं से बतलाते हैं जिनके संपर्क में हम किसी कारणवश आ जाते हैं। फ्रायड आदि वैज्ञानिकों ने उनका संबंध मन में बैठी हुई तरह तरह की भावनाओं और कामनाओं से जोड़ा है। वे ही भिन्न-भिन्न रूपों में स्वप्न में प्रकट होती रहती हैं।

कुछ विद्वानों ने इस संबंध में बहुत कुछ विवेचना करके यह निष्कर्ष निकाला है कि स्वप्न के विषय में ये दोनों दृष्टिकोण परिस्थिति के अनुसार सत्य होते हैं। जो लोग बहुत अधिक स्वप्न देखते रहते हैं, उनका कारण प्रायः शारीरिक और मानसिक अस्वस्थता होती है। कितनी ही बार हमने स्वयं देखा है कि कोई बाजा बज रहा है और उसी समय हम स्वप्न में किसी प्रकार का बाजा सुन रहे हैं। वास्तव में बाजे की आवाज निद्रित अवस्था में हमारे कानों में जाती है और उसी समय हमारे मस्तिष्क में बाजे से संबंधित कोई दृश्य उत्पन्न कर देती है। पर यह अवस्था दो-एक क्षण ही रहती है कि उसी समय आँख खुल जाती हैं। पर दस-पाँच सेकेंड में ही ऐसा जान पड़ता है कि हमने घंटे दो घण्टे तक चलने वाली घटना देखी हो।

यह सब होने पर भी यह मानना पड़ेगा कि इस प्रकार के सामान्य स्वप्नों के अतिरिक्त कुछ विशेष स्वप्न भी होते हैं, जिनमें किसी दैवी प्रेरणा से कोई रहस्यपूर्ण तथ्य दिखलाई पड़ जाता है। प्राचीन कथाओं में और पौराणिक वर्णनों में ऐसे पचासों स्वप्नों का वर्णन पाया जाता है, पर आधुनिक पाठक उनको शिक्षा देने के उद्देश्य कल्पना प्रसूत ही समझते हैं। तो भी वर्तमान समय में हम कुछ प्रसिद्ध पुरुषों के संबंध इस प्रकार के सच्चे स्वप्नों का वर्णन सुनते हैं, जिनको गलत कहने का कोई साहस नहीं करता। और जिनसे सिद्ध होता है कि उन स्वप्नों का संबंध भारतीय विचारकों के सिद्धान्तानुसार मनुष्य में निहित आत्मिक और दैवी शक्तियों से था।

इनमें से सबसे प्रसिद्ध स्वप्न अमरीका के प्रेसीडेन्ट अब्राहम लिंकन के विषय में है, जिसका उल्लेख उस विज्ञान प्रधान देश के इतिहासकारों ने किया है। गुलाम हबशियों का पक्ष समर्थन करने के कारण वहाँ के गुलामी के समर्थक क्रूरकर्मा गौरों ने षड़यंत्र करके लिंकन की हत्या करादी। पर जिस दिन नाटक-भवन में यह हत्या की गई उससे दो दिन पहले लिंकन की पत्नी को यह स्वप्न आया कि कोई व्यक्ति नाटक-भवन में उसके पति को मारकर भागा जा रहा है। उसने यह घटना उसी दिन कह सुनाई और अपने पति का नाटक में जाने का निषेध किया। पर वह स्वप्न की बात को महत्व न देकर अपने परिवार सहित नाटक देखने गये और वहीं हत्यारे की गोली से मारे गये।

स्वप्न की प्रेरणा से कैसे भयंकर काण्ड हो जाते हैं, इसका उदाहरण अमरीका के सुप्रसिद्ध प्रेसीडेन्ट रूजवेल्ट पर आक्रमण की घटना से मिलता है। सन् 1901 में अमरीका के प्रेसीडेन्ट मैकिन्ले को एक हत्याकारी ने मार दिया। उसे स्वप्न में ऐसा ही कुछ आदेश हुआ था।

एक और अद्भुत स्वप्न का हाल इंग्लैण्ड की पुरानी अदालती रिपोर्टों में मिलता है। यह सन् 1800 के कुछ वर्ष बाद की बात है। आयरलैंड के पोर्टिलो नामक कस्बे में राजर्स नामक व्यक्ति ने एक छोटा-सा होटल खोल रखा था। उसमें प्रायः आस-पास के ग्रामीणों को भीड़ लगी रहती थी। एक दिन एजर्स की स्त्री ने स्वप्न में देखा कि जहाजी मल्लाहों की सी पोशाक पहने हुये दो व्यक्ति उनके होटल में आये और खा-पीकर कैरिक गाँव की सड़क पर चले गये। कुछ दूर जाकर एक सुनसान स्थान में एक व्यक्ति ने दूसरे को छुरा मारकर हत्या करदी और उसके शव को झाड़ियों के भीतर गड्ढा खोदकर दबा दिया।

एजर्स ने उस समय उसकी बातों पर ध्यान न दिया, पर जब दोपहर को स्त्री ने वैसे ही दो व्यक्तियों को होटल में आते देखा तो वह चौंक पड़ी और उसने अपने पति को उन दोनों को दिखाकर फिर अपने स्वप्न की बात कही। थोड़ी देर बाद वे लोग चले गये और होटल वाला भी अपने धन्धे में पड़कर इस बात को भूल गया। दो महीना बाद एकाएक उन्होंने किसी के मुख से सुना कि अमुक नाम का व्यक्ति कहीं गायब हो गया है, जिससे उसके घर वालों को बड़ी चिन्ता हो रही है। यह बात सुनकर एजर्स की स्त्री सन्न रह गई और बहुत कुछ सोच-विचारकर उसने अपने पति के स्थानीय मजिस्ट्रेट के पास जाकर सब घटना बतला दी और अन्त में सब भेद खुलकर हत्यारे को फाँसी का दण्ड दिया गया।

ये तो बड़ी घटनायें है, जिनका जिक्र बड़े ग्रन्थों में पाया जाता है, पर अपने देश के समाचार पत्रों में भी हम अनेक बार ऐसे स्वप्नों का वर्णन पढ़ते रहते हैं, जिनसे उनकी सत्यता की पुष्टि होती है। उदाहरण के लिये अवोहर (पंजाब) से प्रकाशित होने वाले ‘दीपक’ पत्र के 7 अगस्त 1939 के अंक में एक समाचार छपा था कि- ‘‘लुधियाना के पुराना बाजार में एक ब्राह्मण के यहाँ एक झीवर नौकर था। वह नित्य प्रातः काल पूजा के लिये पेड़ पर चढ़कर बिल्व-पत्र तोड़ लाया करता था। एक रात झीवर ने स्वप्न देखा कि मैं बिल्व-पत्र तोड़ रहा हूँ और नीचे खड़ा एक भैंसा कह रहा है कि उतरते ही मैं तुमको मार डालूँगा। प्रातः सचमुच उसे पेड़ के नीचे एक क्रोधित भैंसा दिखाई पड़ा और वह नौकर भयभीत होकर गिरा और मर गया।”

अभी दो वर्ष पूर्व मई सन् 1966 में बरूआसागर (झाँसी) के ‘पार्श्वनाथ दिगंबर जैन विद्यालय’ के प्रचारक श्री हुकुमचन्द मथुरा आये थे। गाँधी-पार्क में घूमते हुए, उनको एक साँप ने काट लिया। कुछ व्यक्तियों ने उनको रामकृष्ण मिशन अस्पताल (वृन्दावन) में दाखिल करा दिया। किसी प्रकार उनकी प्राण रक्षा हो गई। जब वे अस्पताल में पड़ थे तो उन्होंने स्वप्न में देखा कि कोई सफेद दाढ़ी वाला व्यक्ति उनको साथ ले गया और एक स्थान को बतलाकर वहाँ से भगवान् पार्श्वनाथ की मूर्ति खोदकर निकालने का संकेत किया। अस्पताल से छुट्टी पाने पर वे उस स्थान पर गये और तीन दिन तक खुदाई होने पर वहाँ से उक्त मूर्ति प्राप्त हो गई जो बाद में स्थानीय कलक्टर की आज्ञा से स्थानीय जैन-मन्दिर को दे दी गई।

साधारण ही नहीं अनेक असाधारण व्यक्तियों के भाग्य का निर्माण स्वप्नों के आधार पर ही हो गया। पाठक जानते होंगे कि महान बुद्धदेव के जीवन का मोड़ एक स्वप्न द्वारा ही हुआ। जब उनके पिता उनको राजमहलों के विलासितापूर्ण जीवन में फँसाये रखने का प्रयत्न कर रहे थे, एक रात को उन्होंने एक वृद्ध पुरुष को देखा जो कह रहा था- ‘‘जो यह शव श्मशान को ले जाया जा रहा है, एक दिन तुम्हारी यही गति होगी।” इन शब्दों से सिद्धार्थ (बुद्ध का पहला नाम) की आँखें खुल गईं और वे राजपाट त्याग मानव-जाति लिये कल्याण मार्ग की खोज करने निकल पड़े।

रोम के महान् सम्राट् सीजर को मारने के लिये जब उनके मित्रों ने षड्यंत्र रचा था और वे उसे बुलाकर ले जा रहे थे तो उसकी पत्नी ने उससे प्रार्थना की कि आज वह सीनेट भवन में न जायें। जब उसने इसका कारण पूछा तो पत्नी ने कहा कि आज रात को मैंने एक भयंकर स्वप्न देखा था कि मेरे सर के बाल खुले हैं और मैं तुम्हारा रक्त रंजित शरीर गोद में लिये हूँ। पर सीजर चला गया और भवन में पहुँचते ही एक तंग स्थान अपने ‘मित्र’ ब्रूटस द्वारा कत्ल कर दिया गया।

फ्राँस की राज्य-क्राँति में तहलका मचा देने वाली जोन-आप-आर्म ने भी एक दिन स्वप्न में सुना कि- ‘‘जोन उठो! अपनी आत्मा को पहचानो। अपने को पहचानो।” इस स्वप्न का अर्थ उसने यही निकाला कि स्वाधीनता देवी उसे क्राँति के संचालन का आदेश दे रही है, और वह निर्भय होकर स्वाधीनता संग्राम में कूद पड़ी और अपना जौहर दिखाने लग गई।

ऐसी कितनी ही घटनायें समाचार-पत्रों में प्रायः छपती रहती हैं। वैसे तो भारतीय जनता का स्वप्नों में इतना अधिक विश्वास है कि जो सर्वथा अशिक्षित स्त्री-पुरुष अन्य धार्मिक तत्त्वों का कुछ भी ज्ञान नहीं रखते, वे भी स्वप्नों का फलादेश बड़े ‘आत्म-विश्वास’ के साथ सुनाने में लगते हैं। अमुक स्वप्न के फल से धन की प्राप्ति होगी, अमुक से मुकदमे में विजय होगी, अमुक से पुत्र का जन्म होगा, आदि बातें सर्वत्र सुनने में आती रहती हैं। अनेक स्त्रियों को गर्भाधान के अवसर पर नारियल, चन्द्रमा, सर्प, सिंह, कोई देवी-देवता दिखाई पड़ते हैं और उसी के आधार पर लोग भावी सन्तान की विशेषताओं का अनुमान लगा लेते थे। एक महिला को प्रत्येक गर्भ-स्थापन के अवसर पर सर्प के दर्शन होते थे और सन्तान कुछ सप्ताह के भीतर ही मर जाती थी। इसका अर्थ यह लगाया गया कि कोई सर्पयोनि का जीव ही उसके गर्भ से बार-बार जन्म ले रहा है। इस तथ्य को समझकर चौथी या पाँचवीं दफे जब ऐसा स्वप्न आया तो उसने हाथ जोड़कर सर्प को नमस्कार कर दिया कि “सर्प देवता! अब आप कृपा करके यहाँ न आना।” तब वे उस व्याधि से उसका पीछा छूट गया।

इसमें सन्देह नहीं कि नित्यप्रति दिखाई पड़ने वाले स्वप्नों में से बहुसंख्यक शारीरिक और मानसिक विकारों के कारण दिखाई पड़ते हैं, तो भी विशेष अवसरों पर जो अर्थपूर्ण स्वप्न आते हैं, उनका संबंध हमारे आत्मिक क्षेत्र से होता है और चूँकि जीवात्मा विराट् आत्म-सत्ता का ही एक अंश है, इसलिये इस प्रकार के स्वप्न हमारे सच्चे और हितकारी मार्ग-दर्शक हो सकते हैं।


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