निरहंकारी ही सच्चा संत-
निरहंकारी व्यक्ति में एक स्वर्गीय विनम्रता आ जाती है, जिसका सौंदर्य, जिसकी शोभा न केवल उसके मुख-मण्डल पर ही परिलक्षित होती है बल्कि वह उसके प्रत्येक कर्म में भी प्रतिभासित हुआ करती है।
अहंकार रहित व्यक्ति का हृदय उस बालक की तरह सौहार्दपूर्ण रहता है, जो परिचित, अपरिचित किसी को भी देखकर उसकी गोद में जाने को अपनी बांहें फैला देता है।
निरभिमानी को सब अपने दीखते हैं। उसको सबसे प्रेम होता है। उसे दूसरों का दुःख अपना दुःख और दूसरों का सुख अपना सुख दिखाई देता है।
निरहंकारी व्यक्ति जब किसी से मिलता है, तब न केवल स्वयं ही स्नेह-विह्वल होता है वरन् दूसरे को भी आत्म-विभोर बना देता है। निरभिमानी को देखकर पाषाण हृदय में भी एक करुण विनम्रता की स्रोतस्विनी बह उठती है।
-समर्थ गुरु रामदास