ईश्वर की नहीं अपनी फिक्र करो!

February 1967

Read Scan Version
<<   |   <  | |   >   |   >>

ईश्वर को खोजते लोग मेरे पास आते हैं। मैं उनसे कहता हूँ कि ईश्वर तो प्रतिक्षण और प्रत्येक स्थान पर है। उसे खोजने कहीं भी जाने की आवश्यकता नहीं। जागो और देखो और जागकर जो भी देखा जाता है, वह सब परमात्मा ही है।

सूफी कवि हफीज अपने गुरु के आश्रम में था। और भी बहुत से शिष्य वहाँ थे। एक रात्रि गुरु ने सारे शिष्यों को शाँत ध्यानस्थ हो बैठने को कहा। आधी रात गए गुरु ने धीमे से बुलाया-’हफीज’! सुनते ही तत्क्षण हफीज उठ कर आया। गुरु ने जो उसे बताना था, बताया। फिर थोड़ी देर बाद उसने किसी और को बुलाया लेकिन आया हफीज ही। इस भाँति दस बार उसने बुलाया लेकिन बार-बार आया हफीज ही क्योंकि शेष सब तो सो रहे थे।

परमात्मा भी प्रतिक्षण प्रत्येक को बुला रहा है-सब दिशाओं से, सब मार्गों से उसकी आवाज आ रही है लेकिन हम तो सोए हुए हैं। जो जागता है, वह उसे सुनता और जागता है केवल वही उसे पाता है।

इसलिए मैं कहता हूँ कि ईश्वर की फिक्र मत करो। उसकी चिन्ता व्यर्थ है। चिन्ता करो स्वयं को लगाने की। निद्रा में जो हम जान रहे हैं वह ईश्वर का ही विकृत रूप है। यह विकृत अनुभव ही संसार है। जागते ही संसार नहीं पाया जाता है और जो पाता है वही सत्य है।

-आचार्य रजनीश


<<   |   <  | |   >   |   >>

Write Your Comments Here: