इस वर्ष हमें यह करना है।

February 1967

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विगत गीता जयन्ती से अखण्ड ज्योति परिजनों में जिस ब्रह्म विद्यालय का शुभारंभ हुआ है, युग-परिवर्तन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, भले ही वह आज छोटा क्यों न दृष्टिगोचर हो। बीज छोटा होता है पर जब वह अंकुरित होकर पल्लवित, पुष्पित और फलित होता है तब उसको समृद्धि का वास्तविक परिचय मिलता है। आज 4 हजार साथी सहचरों को सहायक अध्यापक बना कर प्रत्येक के द्वारा दस-दस व्यक्तियों तक नव-निमार्ण विचारधारा का प्रकाश पहुँचाने का प्रयत्न आरंभ किया गया है। वह आज एक छोटी योजना मात्र भले ही दीखे पर इस पुण्य श्रृंखला का जब क्रमबद्ध रूप से विकास होगा तब वह बहुत बड़ी चीज होगी। आज के हमारे 4 हजार साथी परखे हुए और कसौटी पर कसे हुए सच्चे अध्यात्मवादी है। गीता जयंती से वे ब्रह्म विद्यालय योजना के अंतर्गत दस-दस को प्रशिक्षित करने के लिए कटिबद्ध हुए हैं। आज 40 हजार तक यह महाप्रकाश नियमित रूप से पहुँचने लगा है तो यह आशा करनी चाहिए कि यह संख्या व्यवस्थित रूप से बढ़ेगी। 4 हजार का स्थान जब 40 हजार अध्यापक ग्रहण करेंगे और वे 40 हजार 4 लाख का, फिर इसी क्रम से स्थान ग्रहण करने की प्रक्रिया चलेगी तो भारत ही नहीं विश्व में फैली हुई समस्त मानव जाति तक आदर्शवादिता की-उत्कृष्टता प्रवृत्ति सुविकसित होगी और युग परिवर्तन का स्वप्न साकार होगा।

अखण्ड-ज्योति परिजनों को ब्रह्म विद्यालय का पुण्य परमार्थ तत्परता-संकल्प और दृढ़ता के साथ पूरा करते रहने के लिए कहा गया था। प्रसन्नता की बात है कि उसका उत्साहवर्धक प्रत्युत्तर मिला है। गीता जयंती की जैसी सूचनायें प्राप्त हुई हैं, उनसे प्रतीत होता है कि अधिकाँश सदस्य उस संकल्प की पूर्ति में जुट गये हैं। जो उस दिन शुभारंभ नहीं कर सके वे बसंत पञ्चमी तक उसे कार्यान्वित अवश्य कर लेंगे। हमें विश्वास है कि एक भी सदस्य ऐसा न बचेगा जिसकी पत्रिकायें 10-10 व्यक्ति पढ़ते और प्रकाश प्राप्त न करते हों।

हमारा अनुरोध सभी से यह था कि वे अपनी उपासना को इस बसंत पञ्चमी से नियमित और व्यवस्थित रूप से आरंभ कर दें। गायत्री उपासना एक सरल किन्तु अत्यन्त प्रभावपूर्ण विधान इसी अंग में दिया गया है। जिन्हें गायत्री-उपासना पर निष्ठा हो वे उसे आरंभ कर दें। जिन्हें गायत्री उपासना न रुचे, वे अपनी पद्धति में इन्हीं सिद्धान्तों का समावेश कर सकते हैं। हममें से प्रत्येक को पक्का आस्तिक होना चाहिए और उसका व्यावहारिक अभ्यास करने के लिए दैनिक नित्य-कर्म में उपासना का समावेश कर लेना चाहिए, भले ही वह कितना ही स्वल्प क्यों न हो।

तीसरा कार्य इस वर्ष और भी परिजनों को आरंभ करना होगा। वह है-सदस्यों के जन्मोत्सवों का शुभारंभ। एक-दो महीने बाद परिजनों को यह करना ही होगा कि स्थानीय अखण्ड-ज्योति परिजनों का एक संगठन बना लें। एक संचालक नियुक्त कर लें। सदस्यों के जन्म दिन नोट करके उस तिथि पर सब सदस्यों को इकट्ठे करके उत्सव मनाने की व्यवस्था करें। इस प्रकार संगठन मजबूत होगा। एक दूसरे में प्रेम-भाव बढ़ेगा। इन अवसरों पर इकट्ठे हुए लोगों को नव-निर्माण की विचारधारा का प्रकाश मिलेगा। जिसका जन्मदिन है उसे अपने शेष जीवन के श्रेष्ठतम सदुपयोग की प्रेरणा मिलेगी। इस छोटे शुभारंभ से इस शाखा को संस्कारों एवं पर्वों का नुचलन करने में सरलता होगी तथा उन अन्यान्य अनेक कार्यों के लिए पथ प्रशस्त होगा जो युग परिवर्तन के लिए रचनात्मक कार्यक्रमों के रूप में कार्यान्वित किये जाने हैं।

जिसने अपनी जन्म तिथियाँ हमें सूचित कर दीं, उनकी नोट हैं। जिनकी सूचना अभी नहीं मिली है वे अगले दिनों लिखकर भेज देंगे। उनका जन्म दिन हम स्वयं करेंगे और उनके उज्ज्वल भविष्य की प्रकाश किरणें एवं परिस्थितियाँ उत्पन्न करने के लिए शक्ति भर प्रयत्न किया करेंगे।

हमारा कार्यकाल अब से पाँच वर्ष बाद सन 72 की बसंत पञ्चमी को पूर्ण हो जायेगा। तब हमारी स्थूल गतिविधियाँ समाप्त होकर सूक्ष्म सक्रियता आरंभ होगी। इस पाँच वर्ष की अवधि में जो कार्य हमें तथा सहचरों को करने हैं, उनकी यह सुनिश्चित रूपरेखा बना ली गई है। इसे हमारी प्रथम पंचवर्षीय योजना चाहिए। इस योजना के प्रथम वर्ष में परिजनों के जिनमें तीन काम सौंपे गये हैं 1. अपना नव-निर्माण साहित्य 10 व्यक्तियों को नियमित रूप से पढ़ाने का ब्रह्म विद्यालय एवं ज्ञान-यज्ञ 2. नियंत्रित दैनिक उपासना 3. युग-निर्माण परिवार के सदस्यों का जन्म दिन मनाने की सामूहिक पुण्य प्रक्रिया। ये तीनों ही कार्य हर सदस्य को उस वर्ष आरंभ में ही देने चाहिए। अगले वर्ष का कार्यक्रम अगले वर्ष इन्हीं दिनों प्रस्तुत करेंगे।

प्रस्तुत पाँच वर्षीय योजना में मथुरा केन्द्र से भी तीन प्रक्रियाओं का शुभारंभ अगली गायत्री जयंती के जून 67 से शुरू किया जा रहा है। परिजनों का कर्त्तव्य है कि उन्हें सफल बनाने में सहयोग प्रदान करे।

1. जो सज्जन पारिवारिक उत्तरदायित्वों से निवृत्त हो चुके हैं वे 4 वर्ष के लिए मथुरा आकर प्रशिक्षण प्राप्त करें। इस अवधि में उन्हें वेद, उपनिषद्, दर्शन, गीता रामायण एवं धर्मशास्त्रों का निर्धारित पाठ्यक्रम के अनुसार ऐसा अध्ययन करायेंगे, जिससे उनका ज्ञान इतना उच्चस्तरीय हो जायेगा कि स्वयं अन्तःतृप्ति प्राप्त करेंगे और दूसरों को धर्म एवं संस्कृति का वास्तविक प्रकाश देकर कल्याण पथ पर अग्रसर कर सकेंगे। प्रवचन, लोकसेवा आदि के कितने ही व्यावहारिक पहलू उन्हें यहाँ सीखने को मिलेंगे।

इस 4 वर्ष की अवधि में एक 24 लक्ष का महा-पुरश्चरण गायत्री तपोभूमिका सिद्ध पीठ में हमारे सान्निध्य एवं मार्गदर्शन में करने का अवसर मिलेगा। इसका प्रतिफल हर दृष्टि से आशाजनक होगा।

डॉक्टर, इंजीनियर आदि को इन दिनों 4 वर्ष का ही ‘थ्योरी सहित प्रेक्टिस’ सहित कोर्स पूरा करना पड़ता है। आत्मिक प्रगति का यह भी एक समृद्धिपूर्ण पाठ्यक्रम होगा जिससे जीवनोद्देश्य की पूर्ति में भारी सहायता मिलेगी। जो जीवन का बहुत-सा भाग ऐसे ही गंवा चुके, ढलती उम्र वालों आदि के लिए यह प्रशिक्षण का अनुपम अवसर है। जो थोड़ा समय बचा है उसके सदुपयोग का इससे बढ़कर दूसरा सुयोग शायद ही कभी आये। इसलिए जिनकी स्थिति 4 साल तक मथुरा रहकर आत्म-कल्याण की साधना करने की है उन्हें विशेष अनुरोधपूर्वक आमंत्रित किया जा रहा है। उनका एक साधना सत्र इसी वर्ष आरंभ होने जा रहा है।

2. नवयुवकों के लिये 4 वर्षीय प्रशिक्षण भी इसी अगली गायत्री जयंती से आरंभ होने जा रहा है। उससे 15 से अधिक आयु के छात्र विश्वविद्यालय स्तर की शिक्षा करने का प्रयत्न करेंगे कि जिन्हें नौकरी प्राप्त करने के लिए सरकारी सनद प्राप्त करने की आवश्यकता न हो, जिनके घर में अपनी कृषि, तिजारत आदि गुजारे का प्रबंध हो-जिनके माँ-बाप अपने बच्चों को पराई गुलामी कराते हुए जगह-जगह के चूल्हे काले कराते रहने को नापसंद करते हों-ऐसे छात्रों का एक 4 वर्षीय पाठ्यक्रम चलाने का हमारा मन है। गृह-निवृत्तवान् गृहस्थियों की तरह ब्रह्मचारी किशोरों का भी एक बैंच हम अपने प्रशिक्षण में ही निकालना चाहते हैं। जो समुन्नत, सुसंस्कृत एवं सफल सद्गृहस्थ बनाकर जनसाधारण के सामने यह उदाहरण प्रस्तुत कर सके कि जीवन जीने की कला से परिपूर्ण शिक्षा ही वास्तविक शिक्षा कहलाने की अधिकारिणी है।

इस 4 वर्षीय पाठ्यक्रम को इन गायत्री जयंती में ही आरंभ करेंगे। शरीर, मन, कुशलता, परिवार, समाज, व्यवसाय, धर्म, संस्कृति हर क्षेत्र में वह छात्र सर्वतोमुखी प्रतिभा रख सके और हर क्षेत्र में प्रकाश उत्पन्न कर सके ऐसा पाठ्यक्रम बनाया गया है। माँग की गई है कि ऐसे छात्र मिलें। आजकल हर व्यक्ति अपने बालकों को नौकरी में काम आने वाली सरकारी डिग्रियाँ दिलाना चाहता है, लड़के भी इसी तरह की बात सोचते हैं, इसलिये वर्तमान परिस्थितियों में ऐसे छात्र मिलना कठिन दीखता है, फिर भी प्रयत्न करेंगे और जितने छात्र मिल सकें उनसे यह पाठ्यक्रम आरंभ करेंगे। इससे भाषा, गणित, इतिहास, भूगोल, संस्कृत, अंग्रेजी, शरीर विज्ञान, मनोविज्ञान, समाज शास्त्र, नीति शास्त्र, राजनीति, कानून, व्यवसाय, धर्म शास्त्र आदि सभी विषयों की ऐसी शिक्षा का समावेश रहेगा, जिसे प्राप्त करके यहाँ से निकला हुआ छात्र किसी भी क्षेत्र में अपनी सफल प्रतिभा का परिचय दें सकेगा। जिसकी योग्यता बी.ए. पास छात्रों की तुलना में हर दृष्टि से कई गुनी अधिक होगी।

3. एक वर्षीय प्रशिक्षण 50 युवा पुरुषों के लिये रखा गया है। उससे जीवन के हर पहलू को समझने और उसमें उत्पन्न होते रहने वाली विविध समस्याओं का हल सिखाया जायेगा। शरीर, मन, परिवार, समजा, व्यवसाय और प्रत्येक क्षेत्र में किस विचारधारा एवं प्रक्रिया का अवलम्बन करने से श्री, समृद्धि एवं प्रगति का पथ प्रशस्त हो सकता है, यह सभी कुछ इस वर्ष तक में सिखाने का प्रयत्न किया जायेगा।

चूँकि आजकल पढ़ाई का अर्थ नौकरी मान लिया गया है। इसलिये इस संबंध में भी ऐसी व्यवस्था कर ली जायेगी, जिसे सीख कर यहाँ से निकलने वाले छात्र आजीविका भी प्राप्त कर सकें। प्रेस व्यवसाय हम स्वयं जानते हैं। उसका पूरा-पूरा शिक्षण जिसे मिल जाए वह 4-5 हजार रुपये की एक छोटी पूँजी लगा कर प्रेस खोल सकता है और 200 रुपये मासिक के करीब आसानी से कमा सकता है। जिसके पास ऐसी व्यवस्था न हो वह किसी प्रेस में कम्पोज या छपाई की नौकरी कर के सौ डेढ़ सौ रुपया आसानी से कमा सकता है। एक व्यवसाय प्रेस का हमारी जानकारी में है। उसके सारे साधन भी यहाँ हैं। इसके अतिरिक्त हमारे एक निकट संबंधी साबुन की फैक्टरी चलाते हैं। पिछले वर्षों में उन्होंने अच्छा पैसा भी कमाया है। उनके द्वारा साबुन बनाना ही नहीं-उसके व्यावसायिक रहस्य व जिनसे मारकीट की प्रतियोगिता में ठहरा जा सके-भली प्रकार सिखा समझा देने की व्यवस्था की गई है। यह व्यवसाय कम पूँजी में भी चल सकता है और अच्छी आजीविका का भी है।

एक वर्ष में वह दो व्यवसाय एक वर्षीय शिक्षण क्रम प्राप्त करने वाले प्रत्येक छात्र को सिखा दिये जायेंगे। इस प्रकार व्वसायात्मक उद्देश्य की भी एक तरह से पूर्ति हो सकेगी। जो छात्र स्कूली शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं, वे अपनी पढ़ाई एक वर्ष रोक कर-एक वर्ष फेल हुआ मानकर यह शिक्षा प्राप्त कर जायें तो भी यह उनके लिये एक बहुत बड़े कार्य की बात रह सकती है।

यह तीनों शिक्षण क्रम गायत्री जयंती 17 जून 67 से आँरभ करेंगे। इन्हीं दिनों दो सप्ताह का शिक्षण शिविर भी गायत्री तपोभूमि होगा। 9 जून से 13 जून तक परिवार के सदस्य व्यावहारिक अध्यात्म की शिक्षा प्राप्त करने के लिये मथुरा पधारेंगे। व्रज की तीर्थ यात्रा की सामूहिक व्यवस्था, जीवन-कला, अध्यात्म, उपासना, आदि सभी आवश्यक विषयों पर प्रशिक्षण के अतिरिक्त शिक्षणर्थियों की व्यक्तिगत समस्याओं को सुलझाने के लिये महत्पवूर्ण परामर्श दिये जाते हैं। अब तक के शिविरों का परिणाम यही रहा है कि जो उनमें सम्मिलित हुआ वह एक नई स्फूर्ति, नई चेतना, नई प्रेरणा एवं नई दिशा लेकर गया। अस्त-व्यस्त जटिल व्यवस्थित बना और चिन्ता के स्थान पर मुसकान का अवसर आया। हम चाहते हैं कि प्रेमी परिजन इस शिविर के अवसर पर हमसे वर्ष में एक बार मिल लिया करें और इतनी स्फूर्ति पा लिया करें जो उनके लिये एक वर्ष तक आवश्यक मनोबल जुटा दिया करें। इस शिविर में आने के लिये भी प्रेमी परिजनों को आमंत्रित किया जा रहा है।

उपर्युक्त तीन शिविरों का तथा शिविर में सम्मिलित होने का जिनका मन हो वे इसके लिये आवश्यक पत्र व्यवहार करके स्वीकृति प्राप्त कर लें। तपोभूमि में स्थान थोड़ा है उसके अनुसार ही सीमित संख्या में स्वीकृतियाँ दी जाती हैं। संख्या पूरी होने पर मना करने के अतिरिक्त और कोई चारा नहीं रहता अतएव उचित यही है कि जिन्हें इन प्रशिक्षणों में सम्मिलित होना हो वे समय से रहते पूर्व ही अपना नाम नोट करा दें और स्वीकृति प्राप्त कर लें। इन सभी शिक्षणों के बारे में नियम एक ही है। हर शिक्षार्थी अपने भोजन आदि का खर्च स्वयं उठाएगा। निवास, रोशनी, फर्नीचर आदि की व्यवस्था निशुःल्क रहेगी और शिक्षा की कोई फीस नहीं है। भोजन, वस्त्र आदि का खर्च सब अपना उठायेंगे। मिलजुल कर तीन-तीन चार शिक्षार्थियों के ग्रुप अपनी रुचि का भोजन आप बना लेते हैं तो वह काफी सस्ता भी पड़ता है। इस महंगाई के जमाने में भी 30 रु- मासिक से काम चल जाता है। थोड़ा बहुत हाथ खर्च, कपड़े आदि का इसके अतिरिक्त कुछ और भी हो सकता है। इसका प्रबंध आप ही कर के लाना चाहिए।

उपर्युक्त प्रशिक्षणों के अतिरिक्त युग-निर्माण योजना का प्रेरणाप्रद साहित्य अगले वर्ष बनाने का निश्चय किया गया है। पिछले दिनों 70 ट्रैक्ट छपे हैं। शाखा संचालकों को नव-निर्माण के लिये किस प्रकार क्या करना चाहिए? किस विचार-धारा का किस प्रकार प्रशिक्षण कराना इस उद्देश्य से उन्हें लिखा गया था। व्यक्ति, परिवार तथा समाज को अनेक समस्याओं के समाधान पर अभी काफी ट्रैक्ट लिखे जाने शेष हैं। अगले दिनों उन्हें लिखा और छापा जायेगा। प्रयत्न यह किया जायेगा कि व्यक्ति एवं समाज की एक भी समस्या ऐसी न हो, जिसका नवयुग के अनुपम प्रखर समाधान प्रस्तुत न किया गया हो। पिछले टै्रक्ट बहुत कर के शाखा संचालकों का मार्गदर्शन करते थे, अगले टै्रक्ट हर व्यक्ति की व्यक्तिगत समस्याओं को सुलझाने में सहायक होंगे तो वे सर्व साधारण के लिए अधिक उपयोगी एवं प्रेरक होंगे।

यह टै्रक्ट साहित्य भारत में बोले जाने वाली समस्त भाषाओं में अनुवाद कराने एवं छापने की भी योजना है। गुजराती, मराठी, बंगाली, उड़िया, आसामी, तमिल, तेलगु, अंग्रेजी अभी इन आठ भाषाओं का कार्य हाथ में लेना है। अखण्ड-ज्योति परिवार के सदस्यों में जो इन भाषाओं को अच्छी तरह जानते हों और उनको अखंण्डता हुआ नहीं, साहित्यिक प्रवाहपूर्ण अनुवाद कर सकते हों, वे सेवा-भाव से थोड़ा समय इस कार्य के लिए देना शुरु कर सकते हैं। अनुवाद तैयार होते रहेंगे और साधनों के अनुरुप उनका प्रकाशन चलता रहेगा।

इन सब कार्यों में अखण्ड-ज्योति परिजनों का आवश्यक सहयोग मिलेगा ऐसी आशा है।


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