रवीन्द्रनाथ की गुरु परीक्षा-
विश्व-कवि रवीन्द्रनाथ टैगोर बचपन में जिस समय कलकत्ता के नार्मल स्कूल में पढ़ते थे उस समय वे एक वार्षिक परीक्षा में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुए।
शिक्षक को सन्देह हुआ कि परीक्षक ने रवींद्रनाथ के साथ पक्षपात किया है। उनके सन्देह का मुख्य कारण यह था कि रवीन्द्रनाथ पढ़ने-लिखने में कभी भी इतने तेज नहीं रहे जिससे कि उनके प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होने की आशा ही नहीं की जा सकती थी।
निदान उन्होंने अपना सन्देह मिटाने के लिए रवीन्द्रनाथ को बुलाया और कहा-बच्चे यह बात ठीक है कि परीक्षा फल के अनुसार तुम प्रथम उत्तीर्ण हुए हो। तथापि मुझे सन्देह है कि परीक्षक ने तुम्हारे साथ पक्षपात किया है। मैं स्वयं तुम्हारी परीक्षा लेकर अपना सन्देह मिटाना चाहता हूँ।
रवीन्द्रनाथ ने तुरन्त उत्तर दिया-बहुत अच्छा श्रीमान जी। मैं स्वयं पक्षपात के आधार पर प्राथमिकता का श्रेय नहीं लेना चाहता। आप अवश्य मेरी परीक्षा ले सकते हैं।
निदान शिक्षक ने स्वयं परीक्षा ली और फिर भी रविन्द्रनाथ को प्रथम पाकर यह विश्वास कर लिया कि फिसड्डी रवीन्द्र ने अब जी लगा कर पढ़ना शुरू कर दिया है।