विपत्ति से बढ़कर हितैषी नहीं

August 1967

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किन्हीं सफल व्यक्तियों और महापुरुषों के जीवन वृत्त पर दृष्टि दौड़ायें तो एक बात सामान्य रूप से दिखाई देगी और वह यह कि उनमें से प्रायः प्रत्येक का जीवन संघर्षों ने पाला, कठिनाईयों, आपदाओं और विपत्तियों ने सँवारा । मुसीबतों ने ही उनकी आत्म-शक्ति को जगाया, उद्वेलित किया और वह पथ प्रशस्त किया जो साधारण व्यक्तियों के लिये अचरज प्रतीत होता है।

राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर, कबीर, नानक, ईसा, सुकरात, टॉलस्टाय, गान्धी, शिवाजी, महाराणा प्रताप, किसी व्यक्ति को उदाहरण बनाइये एक भी महापुरुष ऐसा न मिलेगा जिसने वैभव विलास के बीच महा पौरुष सार्थक किया हो। राकफेलर, हेनरी फोर्ड , मार्सेल बोजाक आदि प्रसिद्ध उद्योगपतियों ने भी असाधारण सफलतायें परिस्थितियों से लड़ते और टक्कर खाते हुये पाई हैं।

साधारण व्यक्ति कठिनाइयों और प्रतिकूल परिस्थितियों से बचना चाहते हैं इसलिये घिसावट और टकराव से जो प्रेरणादायी शक्ति उत्पन्न होनी चाहिये थी, हिम्मत, साहस और पुरुषार्थ जागृत होना चाहिये वह नहीं हो पाता। मनुष्य कठिनाइयों से बचता है वैसे ही बड़ी सफलतायें उससे बचती हैं।

मुसीबतें दर असल बोझ नहीं संकेत हैं जो आत्म-विकास का दिशा निर्देश करती हैं। इन संकेतों को समझना और उनसे लाभ उठाना ही मनुष्य को आ जाय तो कठिनाई से बड़ा देवता नहीं विपत्ति से बढ़कर हितैषी नहीं।

बीमारी और शरीर कष्ट को आप बुरा मानते हैं पर आप कहीं यह जान लें कि प्रकृति आप को असंयम से सावधान कर रही है और आपके शरीर में घुस गये बुरे तत्वों को निकाल रही है तो आपकी आधी घबराहट तत्काल दूर हो जाये।

यही तो वह अवसर होता है जब अपने आत्मीयजनों की पहचान होती है। जो अपना है, जिसके प्रति हमें अपने दायित्वों का परिपालन करना है, वे व्यक्ति ऐसे समय सिमट कर आपके समीप आ जाते हैं। आत्मीयता जाग उठती है और वर्षों का मनोमालिन्य दूर हो जाता है। दाम्पत्य जीवनों में अकसर वैमनस्य और गुबार भर जाते हैं अपने साथी की पीड़ा में बीमारी में वह कैसे दूर हो जाते हैं, यह हर गृहस्थ अनुभव करता है। आत्मीयता को सजग करने वाली, बिछुड़ों के हृदय जोड़ने वाली, शरीर का गर्द गुबार निकाल फेंकने वाली और भविष्य के लिये “स्वस्थ जीवन अपनाओ” शिक्षा देने वाली बीमारी को फिर क्या आप बुरा कहेंगे?

आप रह-रह कर बीमार होते हैं तो देखिये कहीं आपकी आदतें तो खराब नहीं हो रहीं। आपने आहार-विहार के असंयम को तो नहीं अपना रखा। तम्बाकू , सिगरेट, शराब आदि किसी दुर्व्यसन के आदी तो नहीं हो गये किसी मादक द्रव्य ने तो कहीं यह विकृति नहीं लादी। जरूर कोई इन्हीं में से कारण होगा। उसे मिटाने का संकेत ग्रहण कर सकें तो विश्वास कीजिये वह बीमारी आपके लिये वरदान ही होगी।

अपनी स्वास्थ्य संरक्षण की भावना जगाइये, संकल्प कीजिये आगे आप बलवान बनेंगे। स्वस्थ सुडौल शरीर बनायेंगे। दीर्घजीवन प्राप्त करेंगे बीमारी का इशारा इन्हीं की ओर था। यदि नहीं समझ पाये तो आपकी भूल थी । समझ गये तो अपनी जीवन दिशा बदल कर देखिये लाभ होता है या नहीं।

आप नहीं आपके घर का कोई सदस्य, आपकी धर्म-पत्नी, बच्चा, भाई, पिता बीमार है तो क्या आपको निराश होना चाहिये? नहीं, इससे अच्छा सेवा का, परिजनों का हृदय जीतने का और अच्छा अवसर न मिलेगा। आप उनकी एक बार हृदय से सेवा कर देखिये आपके जीवन में वही बीमारी वरदान लाती है या नहीं। दाम्पत्य जीवन में प्रगाढ़ मैत्री, बच्चों में आज्ञापालन की भावना, भाई का प्रेम, सहयोग और पिता का स्नेह दिलाती है या नहीं।

चलिये आपकी आर्थिक कठिनाईयों पर भी सोचें। धन की तंगी से, कर्ज से, आजीविका की समस्या से आप घबराये बैठे हैं, पर आपको पता नहीं वह विपत्ति आपका सौभाग्य द्वार खोलने आई है केवल आपके समझने की देर है।

आर्थिक तंगी के अवसर पर देखा गया है कि मानसिक क्रियाशीलता सजग हो उठती है। भले ही वह बेचैनी और घबराहट के रूप में व्यक्त होती हो पर इतना निश्चित है आदमी के दिमाग में हलचल पैदा होती है। चाहे तो इस सजगता को विधिवत विचार का रूप देकर सोचें कि ऐसे गाढ़े समय आप कोई अन्य नौकरी या धन्धा कर सकते हैं क्या? कहीं से पूँजी उपलब्ध कर कोई उद्योग चला सकते हैं क्या? अपने घर में जेवर पड़ा है, जमीन है, पुराना मकान पड़ा है इनमें से कोई ऐसी वस्तु है क्या जो आपको पूँजी देकर कर्ज से बचा सकती हो? केवल धन्धा अपने लिए निकाल सकें तो आप विश्वास कीजिये ऐसी परिस्थिति जन्य कठिनाईयों से ही बड़े-बड़े पूँजीपति पैदा हुये हैं।

ऋण का बोझ सवार है? मनः स्थिति सचमुच बहुत दुःखद होती है। नौकरी में पैसा बचता नहीं तो क्या यह संभव नहीं मोमबत्ती, रबड़ की मोहर, लिफाफा, सिलाई, साबुन, चर्खा आदि से आप कोई सहायक आजीविका की व्यवस्था कर लें और उस ऋण को धीरे पटा डालें। अच्छा तो यह हो कि जेवर-जकड़े का मोह त्याग कर आप उसे एक मुश्त चुका डालें। यह भी देखेंगे कि दुबारा कर्ज लेने से आप बचेंगे ही। फिजूल खर्ची से भी बचेंगे और बेकार के भोज, उत्सव, रंग-रेली मनाने की, जो आदतें पड़ गई थीं उनसे भी बचेंगे। भविष्य में बजट बना कर चलेंगे। सावधानी से खर्च करेंगे। इतनी सारी सूझ समझ और योग्यता कब आई? जब ऋण या आर्थिक घाटे की विपत्ति आई!

कई बार परिस्थितियाँ अपनी नहीं औरों की बनाई हुई भी होती हैं। संसार में फूहड़ और राह चलते रोड़ा अटकाने वाले भी कम नहीं। मान लीजिये कोई ऐसा व्यक्ति आपको परेशान कर रहा है तो बड़ा अच्छा अवसर है अपना शौर्य, साहस जगाने का। शक्ति और संगठन बनाने का इससे सुन्दर अवसर कब आता? धन्यवाद दीजिये इस विपत्ति को जिसने आप में यह वीरोचित गुण जगा दिये।

बच्चा कहना नहीं मानता-धर्मपत्नी सहयोग नहीं करती, भाई खिन्न रहते हैं तो आप कुछ अपने आप पर भी विचार कर डालिये। आप को मालूम न होगा महात्मा गाँधी जी की पूर्व में कस्तूरबा से नहीं पटती थी, पर आत्मचिंतन के द्वारा बापू ने अपने आपको सुधारा तो कस्तूरबा स्वयमेव उनकी सच्ची सहचरी बन गई। दाम्पत्य जीवन में वह आनन्द आया कि मृत्युपर्यन्त कोई मनोमालिन्य न आया। सुकरात को दार्शनिक बना देने में उनकी धर्मपत्नी की कर्कशता ही थी। ऐसे अवसर मनुष्य को जीवन-दर्शन की गहराइयों तक पहुँचा सकते हैं, साथ ही पारिवारिक प्रेम, ईमानदारी, सद्व्यवहार, स्नेह, प्रेम, आत्मीयता, प्रसन्नता, प्रफुल्लता की आवश्यकता और उपयोगिता का पाठ सिखा सकते हैं। मनुष्य जीवन की गहराइयों का ज्ञान उपलब्ध करा सकते हैं।

परीक्षा में असफल वोपदेव आचार्य वोपदेव बने। स्वयं पाँडित्य उनके पैरों गिरा क्योंकि उन्होंने घबराकर अपनी सारी बौद्धिक लगन उधर लगा दी। यह पाठ आप के लिये भी वैसा ही। हारे हुये मनुष्यों के अनेक जीवन चरित्र आप पढ़ सकते हैं जिनको कठिनाईयों में ही पाथेय मिला है।

यदि आप मानसिक संतुलन न खोयें, विचारशक्ति को जगाकर सूझ बूझ से काम लें तो इसमें किंचित संदेह नहीं कि विपत्तियाँ मनुष्य को परिश्रमी, उद्योगी, संतोषी, सहिष्णु और शक्तिशाली बनाती हैं। उनसे लाभ उठाने का दृष्टिकोण समझ में आ जाय तो मुसीबत मनुष्य जीवन के लिये वरदान ही होती है।


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