अपना संकल्प जगाइये, आपमें वही शक्ति है।

June 1965

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शारीरिक अंग-प्रत्यंग और इन्द्रियाँ संसार में सबको समान रूप से मिली हैं। किन्तु फिर भी मनुष्य के जीवन क्रम और गतिविधियों में भारी अन्तर पाया जाता है। जय-पराजय, सफलता-असफलता, जीवन और मृत्यु के द्वन्द्व निरन्तर चलते रहते हैं। जो व्यक्ति अपने आन्तरिक क्षेत्र में फैली हुई संकल्प शक्ति का प्रयोग नहीं करते उन्हें पराजय, असफलता और मृत्यु प्राप्त होती है पर जिनके संस्कारों में दृढ़ता, तीव्र मनोबल और सुदृढ़ संकल्प शक्ति विद्यमान है जय, जीवन और सफलता सदैव उनकी दासी बनकर काम करती है। संकल्पवान् पुरुष ही जीवन-संग्राम विजय करते हैं, कमजोर इच्छा शक्ति वालों का साथ प्रकृति भी नहीं देती है।

उपरोक्त पंक्तियों में हमारा अभिप्राय गरीबी या अमीरी के साथ उन्नति या जीवन की असफलता का संबन्ध जोड़ने का नहीं है। हमारा अभिप्राय केवल यह बताने का है कि जहाँ जिस वातावरण में संकल्प की कमी रहेगी वहाँ विभूतियाँ न हो सकेंगी। जहाँ दृढ़ इच्छा शक्ति होगी, तीव्र आकाँक्षा या अभिरुचि होगी वहाँ पैसे का, साधन और सहयोग का अभाव भले ही हो पर धीरे-धीरे अनुकूल वातावरण एकत्रित हो जायेगा और मनोवाँछित सिद्धि मिलकर रहेगी।

पुराणों में ऐसा वर्णन आता है कि स्वर्ग में एक कल्प-वृक्ष है जिसके पास जाने में कोई भी कामना अपूर्ण नहीं रहती है। ऐसा एक कल्पवृक्ष इस पृथ्वी में भी है वह है- संकल्प का कल्पवृक्ष। जब किसी लक्ष्य की, ध्येय की, कामना की पूर्ति का हम संकल्प लेते हैं तो सजातीय विचारों, सुझावों की एक शृंखला दौड़ी हुई चली आती है और अपने लिए उपयुक्त रास्ता बनाना सुगम हो जाता है। बरसात का पानी उधर ही दौड़ता है जिधर गड्ढे होते हैं। सफलता के लिए अपेक्षित परिस्थितियाँ ढूंढ़ने की शक्ति संकल्प में है।

संध्या, उपासना, दान, अनुष्ठान, यज्ञ, पुरश्चरण आदि में आचार्य यजमान को संकल्प ग्रहण कराते हैं उससे उनके उद्देश्य में कोई सटिकता भले ही न आती हो पर डडडडसारी मानसिक चेष्टायें एक ही लक्ष्य की ओर लग जाती हैं, फलस्वरूप आने वाली बाधा, कठिनाई का विचार डडडड डडडड करने से आ जाता है, जिससे प्रतिकूल परिणाम डडडड डडडड से डडड आते डडडड हैं मानसिक शक्तियों का विकेन्द्रीकरण करना महत्वपूर्ण होता है कि उसे जिस कार्य में लगा दिया जाय डडडड डडडडउधर ही आशा सन्तोषजनक सफलता मिलने लगती है।

संकल्प क्रिया शक्ति में तन्मय की प्रतिष्ठा का डडडड मार्ग है। “यह मेरा संकल्प है” का अर्थ है अब मैं इस कार्य में प्राण, मन और समग्र शक्ति के साथ संलग्न हो रहा हूँ। इस प्रकार की विचारणा, दृढ़ता ही सफलता भी बनती है। संकल्प तप का, क्रिया शक्ति का विधायक है इसी से उसमें अनेकों सिद्धियाँ और वरदान समाहित हैं।

जिन विचारों से मनोभूमि में स्थायी प्रभाव पड़ता है और जिनसे अन्तःकरण में अमिट छाप पड़ती है वे पुनरावृत्ति के कारण स्वभाव के एक अंग बन जाते हैं। ऐसे विचारों का अपना एक विशेष महत्व होता है। इन विचारों को क्रमबद्ध रीति से सजाने की क्रिया डडडड डडडड जिन्हें ज्ञात होती हैं वे अपना भाग्य, दृष्टिकोण और वातावरण परिवर्तित कर सकते हैं और इस परिवर्तन के फलस्वरूप जीवन में कोई विशेष दृश्य डडडडया स्थिति डडडड उत्पन्न कर सकते हैं।

आवश्यकता को आविष्कार की जननी कहा जाता है, जब क्रिया किसी डडडड बात की तीव्र इच्छा होती है तो उसे पूर्ण करने के लिए साधनों की तलाश आरम्भ होती है, अतः कोई ने कोई उपाय भी निकल ही आता है। यह इच्छा यदि प्रेरक है, उसे पूरा करने की भूख यदि भीतर से उठी है और उसके पीछे डडडड पर्याप्त प्राण और जीवन लगा हुआ है कि “मैं उस वस्तु को प्राप्त करके रहूँगा, चाहे कितनी ही बाधायें क्यों न आयें, प्रयत्न निरन्तर जारी रखूँगा डडडड डडडड डडडड डडडड डडडड डडडड डडडड डडडड निराश करने वाले अक्सर क्यों न आयें इस प्रकार के डडडड संकल्प की यदि मन में रहने और सूक्ष्म डडडड स्थापना हो जाय तो लक्ष्य तक पहुँचना बहुत सरल हो जाता है। डडडड दूसरों के लिए कठिन जान पड़ने वाला डडडड जो कर्म भी उस संकल्पवान् के लिये सामान्य क्रिया से अधिक नहीं रह जाता।

बराबर आगे बढ़ते रहने के लिये, बराबर नई शक्ति प्राप्त करते रहना भी आवश्यक है। उन्नति का क्रम टूटना नहीं चाहिये, आगे बढ़ने से रुकना या हिचकिचाना नहीं चाहिये। पर यह तभी संभव है जब हमारा संकल्प, हमारा उद्देश्य, अटूट साहस, श्रद्धा एवं शक्ति से ओत-प्रोत हो। आधे मन से, उदासीन होकर काम करने वाला फूहड़ कहा जाता है। उसे कोई विशेष सफलता मिल भी नहीं पाती।

“अगर मुझे अमुक सुविधायें मिलती तो मैं ऐसा करता” इस प्रकार की कोरी कल्पनायें गढ़ने वाले आत्म-प्रवंचना किया करते हैं। भाग्य दूसरों के सहारे विकसित नहीं होता। आपका भार ढोने के लिए इस संसार में कोई दूसरा तैयार न होगा। हम यह यात्रा अपने पैरों से ही पूरी कर सकते हैं। दूसरे का अवलम्बन लोगे तो हमारा जीवन कठिन हो जायेगा। हमारे भीतर जो एक महान चेतना कार्य कर रही है उसकी शक्ति अनन्त है, उसी का आश्रय ग्रहण करें तो प्रत्यक्ष आत्म-विश्वास जाग जायेगा। तब तुम दूसरों के भरोसे भी नहीं होगे। संकल्प का ही दूसरा रूप है आत्म-विश्वास। वह जागृत हो जाय तो अपना विकास तेजी से, अपने आप पूरा कर सकेंगे। आज हम जैसे कुछ हैं अपने जीवन को जिस स्थिति में रखे हुये हैं अपने निजी विचारों के परिणाम हैं। जैसे विचार होंगे भविष्य का निर्माण भी उसी तरह ही होगा।

संकल्प का सम्बन्ध सत्य और धर्म से होता है। उसका प्रयोग अधर्म और अत्याचार के लिये नहीं हो सकता। अधर्म पतन की ओर ले जाता है पर यह संकल्प का स्वभाव नहीं है। अधर्म से धर्म की ओर, अन्याय से न्याय की ओर, कामुकता से संयम की ओर, मृत्यु से जीवन की ओर अग्रसर होने में संकल्प की सार्थकता है। आचार्यों ने उसे इसी रूप में लिया है। भारतीय धर्म में अनुशासन की उस उद्दात्त परम्परा का ध्यान रखते हुए ही गुरु जन “सत्यं वद” “धर्म चर” का संकल्प अपने शिष्यों से कराते रहे हैं। आध्यात्मिक तत्वों की अभिवृद्धि की तरह ही भौतिक की नैतिक आकाँक्षा को बढ़ाना भी संकल्प के अंतर्गत ही आता है। अपने स्वार्थों के लिये अधर्माचरण शुरू कर दिया जाता है वहाँ संकल्प का लोप हो जाता है और वह कृत्य अमानुषिक, आसुरी, हीन और निकृष्ट डडडड बन जाता है। संकल्प के साथ जीवन-शुद्धता की अनिवार्यता भी जुड़ी हुई है। संकल्प की इस परम्परा में अपनी उज्ज्वल गाथाओं डडडड को ही जोड़ा जा सकता है। निकृष्टता के, पाप के, स्वार्थ की संकीर्णता और अत्याचार द्वारा संकल्पमयी डडडड डडडड नहीं बना जा सकता।

डडडड डडडड डडडड अन्यमनस्कता, पराधीनता और डडडडमुर्दादिली को छोड़कर ऊँचे उठने की कल्पना मन क्षेत्र को डडडड सतेज करती है। इससे साहस, शौर्य, कर्मठता, उत्पादन शक्ति निपुणता आदि गुणों का आविर्भाव होता है। इन गुणों में शक्तियों का वह स्रोत छुपा हुआ है जिससे सांसारिक सुख और आनन्द का प्रति क्षण रसास्वादन किया जा सकता है। निकृष्टता मनुष्यों में दुर्गुण पैदा करता है और इससे चारों ओर से कष्ट और क्लेश, के परिणाम ही दिखाई दे सकते हैं। संकल्प का इसी लिये जीवन की उत्कृष्टता का मन्त्र समझना चाहिये, उसका प्रयोग मनुष्य जीवन के गुण विकास के लिये होना चाहिये।

अपने को असमर्थ, अशक्त डडडड एवं असहाय मत समझिये। “साधनों के अभाव में हम किस प्रकार आगे बढ़ सकेंगे” ऐसे कमजोर विचारों का परित्याग कर दीजिये। स्मरण डडडड रखिए शक्ति का स्रोत साधनों में नहीं संकल्प में है। यदि उन्नति करने की, आगे बढ़ने की इच्छायें तीव्र हो रही होंगी तो आप को जिन साधनों का आज अभाव दिखाई पड़ता है केवल निश्चय ही दूर हुये दिखाई देंगे। संकल्प में सूर्य रश्मियों का तेज है, वह जागृत चेतना का शृंगार है, विजय का हेतु और सफलता का जनक है। संकल्प से प्राप्त मन डडडड के बल द्वारा स्वल्प साधनों में भी मनुष्य अधिकतम विकास कर सकता है, और मस्ती का जीवन बिता सकता है।

उन्नति की आकाँक्षा रखना मनुष्य का स्वाभाविक गुण है, उसे आगे बढ़ना भी चाहिये, पर यह तभी संभव है जब मनुष्य का संकल्प बल जागृत हो। जो लोग अपने को दीन, हीन, असफल और पराभूत समझते हों संकल्प उनके लिये अमोघ अस्त्र है। संकल्प के द्वारा प्रत्येक मनुष्य जय जीवन और सफलता प्राप्त कर सकता है।


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